धार्मिक आयोजन के अलावा गौकाष्ठ का अंतिम संस्कार में भी उपयोग

सांभर गौशाला में बन रहे गौकाष्ठ के प्रति लोगों का रूझान बढा

सांभर में गौकाष्ठ से अंतिम संस्कार किया गया


शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील (जयपुर)। सांभर के समीप पानवां में करीब सौ साल से अधिक समय से संचालित श्रीगोपाल गौशाला में गायों के गोबर से बन रहे गोकाष्ठ के उपयोग के प्रति लोगों का लगातार रूझान बढ रहा है, वहीं अब गौशाला को इससे अतिरिक्त आय भी होना शुरू हो गयी है। श्रीगोपाल गौषाला को गायों के गोबर से गोकाष्ठ बनाने के लिये काला मार्ग निवासी विनोद जैन पु़त्र स्व. मूलचन्द जैन की ओर से निःशुल्क मशीन भेंट भी की जा चुकी है, जिसके बाद से लगतार इस गौशाला में अनेक कर्मचारी इस काम में जुटे हुये हैै। 

गोकाष्ठ का उपयोग करने के लिये यहां के पदाधिकारियों की ओर से लोगों में जागृति पैदा करने के लिये लगातार प्रयास भी किये जा रहे है। इस गौशाला में तैयार की जाने वाली गोकाष्ठ की अब अनेक गांवों से लगातार मांग भी बढती जा रही है, इसी को दृष्टिगत रखते हुये इस काम में और तेजी लायी जा रही है। बता दें कि अभी हाल होलिका दहन के अलावा कुछ दिनों पहले ताराचंद नागला के निधन पर पहली दफा अंतिम संस्कार के लिये इसी गोकाष्ठ का उपयोग किया गया तो इसके बाद इसकी बेहतर परिणाम को देखते हुये आज सांभर मेें पुराना किला निवासी गुलाबदेवी धर्मपत्नी धन्नालाल प्रजापत की भी इसी गौकाष्ठ से चिता सजायी गयी और उनका अंतिम संस्कार किया गया। 

इस मामले में गौशाला के सचिव पवन कुमार से बात करने पर उन्होंने बताया कि केवल अंतिम संस्कार के लिये गौशाला की ओर से कोई राशि नहीं ली जा रही है, परिवारजन की इच्छानुसार वे अपने सामथ्र्य के अनुसार गोशाला को राशि/अंशदान दिये जाने पर उसकी रसीद दी जाती है, अन्य धार्मिक कार्यों में गोकाष्ठ के उपयोग पर राशि निर्धारित की गयी है। समाजसेवी किशनलाल कुमावत (केमिस्ट) का कहना है कि गौशाला की ओर से उठाया गया यह कदम सराहनीय तो है ही साथ ही इससे पर्यावरण के संरक्षण पर भी बल मिलेगा तथा ऐसे कार्यों में जब लकडी की जरूरत ही नहीं रहेगी तो वृक्षों को भी बचाया जा सकेगा। मृतक परिजनों ने भी इस मामले में लोगों से अपील की है की वे भविष्य में इस गौकाष्ठ का उपयोग करें ताकि पर्यावरण को भी शुद्ध रखा जा सके।