कैसे बचें अब कोरोना से...?

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं)

http//daylife.page

आप सबसे पहले तो यह संकल्प लें कि आप खाली पेट नहीं रहेंगे। उपवास नहीं करेंगे। एयर कंडीशन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। रोजाना एक घंटे या फिर जबतक संभव हो धूप लीजिएगा। गरम पानी पीजिएगा। कोशिश करें कभी भी गला सूखा न रह पाये। उसे गीला रखियेगा। सरसों का तेल घर में रहता ही है, उसे नाक में लगायें। घर में कपूर या गूगल जलाइयेगा। रोजाना कपूर व लौंग डाल कर धूनी दें। आधा चम्मच सौंठ को हर सब्जी में पकते हुए डालिए। रात को दही कभी भी न खायें व हर रोज रात में हल्दी पडा़ हुआ एक गिलास नहीं तो एक कप दूध अवश्य पीजिए। संभव हो तो एक चम्मच च्यवनप्राश खायें। चाय में लौंग डालकर पियें। ज्यादा से ज्यादा संतरा खायें। आंवले का किसी भी रूप में वह चाहे अचार हो, मुरब्बा हो या फिर चूर्ण ही क्यों न हो, अवश्य लीजिएगा। यह ध्यान रखियेगा कि दूध में हल्दी आपके शरीर में इम्युनिटी बढा़ने में मदद करती है। इन सुझावों को जरूर अपनाइयेगा। 

कोरोना संक्रमण देश में अब भयावहता की सीमा पार कर चुका है और संक्रमितों का आंकडा़ तेरह लाख को भी पार कर गया है। बीते चौबीस घंटों में एक लाख अस्सी हजार लोगों का कोरोना संक्रमित होना यह साबित करता है कि कोरोना अब घर के दरवाजे पर आकर खडा़ हो गया है तो कुछ गलत नहीं होगा। हालत इतनी खराब है कि मरीज ले जाने के लिए एंबुलैंस नहीं हैं, एंबुलैंस है तो उसमें आक्सीजन नहीं है, अस्पतालों में बैड तक नहीं हैं, वहां डाक्टर नहीं हैं, डाक्टर हैं तो नर्स नहीं है, नर्स है तो वार्ड बॉय नहीं हैं, दवाई नहीं हैं, इंजैक्शन नहीं हैं, जेब में रुपये हैं लेकिन बाजार में इंजेक्शन नहीं हैं, रोगी दर-दर भटकने को मजबूर हैं। रोगी को घर पर रखकर आक्सीजन दें तो बाजार में आक्सीजन का सिलैंडर नहीं है। अस्पतालों और टीकाकरण सेंटर पर वैक्सीन नहीं है। 

हालात से जूझते आखिरकार मरीज मर जाये तो उस हालत में शमशानों और कब्रिस्तानों में जगह नहीं है। इन हालातों ने कोरोना से निपटने के सरकारी दावों की पोल खोल कर रख दी है।  इस सबके बावजूद हम विश्व गुरू बनने का दावा करते घूम रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक में टीकाकरण केन्द्रों पर वैक्सीन खत्म होने और टीका लगवाने आये लोगों द्वारा शोर-शराबा किये जाने की खबरें आ रही हैं। ऐसी हालत में देश के दूरदराज ग्रामीण इलाकों की तो बात ही दीगर हैं। ऐसी स्थिति में देश में बहुतेरे राज्यों में सैकडो़ं टीकाकरण केन्द्रों को बंद करना पडा़ है। अब यह तो जगजाहिर है कि देश में वैक्सीन की कमी का संकट है। शायद यही वजह है कि अब टीकाकरण की दूसरी डोज का समय बढा़कर अट्ठाइस से पेंतालीस दिन कर दिया गया है। दुर्भाग्य तो यह है कि इतने प्रयास और प्रचार के बावजूद वैक्सीनेट का आंकडा़ बीस फीसदी के करीब भी नहीं पहुंच पाया है। 

सबसे चिंतनीय बात तो यह है कि हमारी लोकप्रिय सरकार ने एक सौ पैंतीस करोड़ की आबादी को दो कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के भरोसे छोड़ रखा है। जबकि फिलीपींस जैसे छोटे देश में जानसन एण्ड जानसन सरीखी छह कोरोनारोधी कंपनियों के विकल्प मौजूद हैं। इससे ज्यादा बात क्या होगी कि जब देश कोरोना संक्रमण के भयावह दौर से गुजर रहा है, दिनोंदिन कोरोना संक्रमितों की मौत के मुंह में जाने का आंकडा़ सुरसा के मुंह की भांति बढ़ रहा है, उस हालत में मोदी जी विश्व के महानायक बनने की चाह में कोरोना वैक्सीन दुनिया के 86 देशों को निर्यात कर रहे हैं। है ना गर्व करने वाली बात।

 इसलिए अब सरकार के भरोसे रहने से कुछ नहीं होने वाला। यदि कोरोना को हराना है, अपनी और अपने परिवार की जिंदगी बचानी है तो घर में रहकर देश के जाने माने डाक्टरों के इन सुझावों पर अमल कर लीजिए। इसमें आपका कुछ नहीं जायेगा। प्रायवेट अस्पतालों में जाकर चौदह से अट्ठाइस हजार रुपये रोजाना खर्च करने से बेहतर है आप इन सुझावों पर ध्यान दीजिएगा। आप सबसे पहले तो यह संकल्प लें कि आप खाली पेट नहीं रहेंगे। उपवास नहीं करेंगे। एयर कंडीशन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। रोजाना एक घंटे या फिर जबतक संभव हो धूप लीजिएगा। गरम पानी पीजिएगा। 

कोशिश करें कभी भी गला सूखा न रह पाये। उसे गीला रखियेगा। सरसों का तेल घर में रहता ही है, उसे नाक में लगायें। घर में कपूर या गूगल जलाइयेगा। रोजाना कपूर व लौंग डाल कर धूनी दें। आधा चम्मच सौंठ को हर सब्जी में पकते हुए डालिए। रात को दही कभी भी न खायें व हर रोज रात में हल्दी पडा़ हुआ एक गिलास नहीं तो एक कप दूध अवश्य पीजिए। संभव हो तो एक चम्मच च्यवनप्राश खायें। चाय में लौंग डालकर पियें। ज्यादा से ज्यादा संतरा खायें। आंवले का किसी भी रूप में वह चाहे अचार हो, मुरब्बा हो या फिर चूर्ण ही क्यों न हो, अवश्य लीजिएगा। यह ध्यान रखियेगा कि दूध में हल्दी आपके शरीर में इम्युनिटी बढा़ने में मदद करती है। इन सुझावों को जरूर अपनाइयेगा। 

इसके अलावा डाक्टरों की राय है कि दिन में भरपूर पानी पियें। गर्म पानी में नीबू मिलाकर रोजाना पीने से वायरस फेफडो़ं तक पहुंचने से पहले ही खत्म हो जाते हैं। साथ ही विटामिन ए व विटामिन सी लें। दिन में दो संतरे जरूर खायें। चार कप चाय जरूर पीजिए। इससे सोडियम पोटेशियम मिलेगा। सुबह शाम दो गिलास दूध लीजिए। जिंक की कमी के लिए एक अंडा रोज लीजिए। रोजाना दाल लें।  प्रोटीन की कमी को पूरा कीजिए। भाग दौड़ न करें और बिस्तर पर आराम करें। सबसे बडी़ बात घर से बाहर न निकलें। घर में रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे। बहुत ही जरूरत हो तो मास्क पहनकर ही बाहर निकलें व दो गज की दूरी अवश्य बनाये रखिए। हाथ न मिलाइयेगा। 

याद रखियेगा कि यदि हम जिंदा रहेंगे तभी कोरोना नामक महामारी से लड़ पायेंगे। हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि हम भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। जो लोग आस्था के वशीभूत हो कुंभ में गंगा स्नान कर वापस आये हैं, उनके संपर्क में न आयें, न उनसे मिलें। उनसे दूरी बनाये रखें। कारण यह कहना कि कुंभ में गंगा में स्नान करने से कोरोना नहीं होगा, यह सरासर जनता, परिवार और अपने सगे-संबंधियों के साथ धोखा है। समझ नहीं आता कि जब धारा 144 के तहत चार से अधिक लोग एक जगह इकट्ठे नहीं हो सकते, तो धार्मिक आस्था के बहाने करोडो़ लोगों को कुंभ में जाकर गंगा स्नान की इजाजत देना कहां का न्याय है। यह साफ तौर पर निरीह धर्म परायण जनता को मौत के मुंह में झौंकने जैसा है। इससे जाहिर हो जाता है कि सरकार को जनता के जीवन की कोई चिंता नहीं है। विडम्बना देखिए जो सरकार पिछले साल तबलीगी जमात के जलसे को कोरोना के विस्तार के लिए जिम्मेदार मान रही थी, वही सरकार कुंभ में करोडो़ हिंदू भक्तों के इकट्ठे होने को कैसे जायज करार दे सकती है। जबकि सच यह है कि कुंभ से कोरोना के विस्तार के लिए कोई खतरा नहीं है। गंगा में डुबकी लगाकर तो कोरोना मर जाता है।

बहरहाल अब यह तो तय है कि अब कोरोना से बचने के लिए हमें ही कुछ करना है। यदि अब भी हम बीते छह सालों की तरह झांसे में ही रहे तो फिर यह साफ नजर आ रहा है कि हमारी जिंदगी खतरे में है। ऐसी विकट परिस्थिति में जब हमारी जिंदगी ही दांव पर है, उस हालत में हमें आखिरकार प्रख्यात गीतकार गुलजार साहब की सलाह मान लेनी चाहिए तभी मेरे देशवासियो तुम्हारी ये जिंदगी बच सकती है। उनके शब्दों को मैं फिर से लिख रहा हूँ...

"बे वजह घर से निकलने की जरूरत क्या है,

मौत से आंखें मिलाने की जरूरत क्या है,

सबको मालूम है बाहर की हवा है कातिल,

यूंही कातिल से उलझने की जरूरत क्या है,

जिंदगी एक नेमत है उसे संभाल के रखो,

कब्रगाहों को सजाने की जरूरत क्या है,

दिल बहलाने को घर में वजह हैं काफी,

यूंहीं गलियों में भटकने की जरूरत क्या है।"

(लेखक का अपना अध्ययन, अनुभव एवं अपने विचार हैं)