सचमुच प. बंगाल में टीएमसी सुप्रीमो ,और लगातार दो बार मुख्यमंत्री रहीं ममता बैनर्जी अपनी पार्टी को ऐतिहासिक फ़तेह हासिल करवाने में तो कामयाब रहीं मग़र उनका ही किला नन्दीग्राम ही क्यों ढह गया ?
पार्टी में उनके खिलाफ बगावत का बिगुल सबसे पहले उन्हीं के सेनापति रहे शुभेन्दु अधिकारी ने उन्हें भाजपा के टिकट पर करीब 2000 वोट से कैसे हरा दिया ? हो सकता है ,जब बंगाल में ममता दीदी की सुनामी चल रही थी, तब इस तरह के हैरतअंगेज कारनामा कर दिखाने पर खुद शुभेन्दु अधिकारी को ही विश्ववास न हो पा रहा हो।
प. बंगाल की सियासत की नब्ज़ हाथ रखने वालों का मानना है कि इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है, बल्कि यह तो होना ही था। भाजपा ने सबसे अधिक शक्ति नन्दीग्राम पर ही लगा दी थी। पीएम नरेंद्र मोदी ने बार-बार दीदी को ही निशाने पर लिया। फिर क्या तो अमित शाह, क्या जेपी नड्डा, क्या आदित्यनाथ योगी, क्या शिवराज सिंह चौहान, क्या ज्योदित्यादित्य सिंधिया जैसे धुंआधार नेताओं ने ममता के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। उक्त सीट की ग्राउंड रिपोर्ट करने वालों की माने तो ऐन वक्त पर थैलियां खोल दी गईं।
भारत के लोकतंत्र में इस आचरण ,को तो कई बार सभ्य आचरण भी माना जाता रहा है। शुभेन्दु अधिकारी के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उनके पिताजी इसी इलाके से लोकसभा सदस्य रहे हैं। उनके बड़े भाई का भी खासा राजनीतिक दबदबा बताया जाता रहा है।
शुभेन्दू अधिकारी ने दावा किया था कि मैं ममता दीदी को हजारों के अंतर से मात दूँगा। इसके पीछे राज यह माना जा रहा है कि ममता दीदी के पिछले कार्यकाल में नन्दीग्राम इलाके में जितने भी विकास कार्य हुए उनकी योजना ममता बैनर्जी ने बनाई लेकिन उन्हें ज़मीनी स्तर पर लाने में शुभेन्दु अधिकारी का श्रम रहा।इसीलिए नन्दीग्राम के मतदाताओं ने अधिकारी के टीएमसी से पाला बदल कर भाजपा में जाने को अन्यथा नहीं लिया। मीडिया के लोगों को इस देस दुनिया की सबसे चर्चित या हाई प्रोफाइल सीट के मतदाताओं ने यह कहा कि ममता बैनर्जी से हमें गिला नहीं है हम तो शुभेन्दु अधिकारी से इसलिए प्रभावित हुए कि यहाँ की सड़कें, बिजली, पानी, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज वगैरह के लिए अधिकारी ने दिन रात पसीना बहाया।
हाँ, उन लोगों को टीएमसी ने धता बता दी जो ऐन वक़्त पर भाजपा की ओर गोता खा गए। इनमें कई दिग्गज भी थे। इस व्यक्तिगत हार के बावजूद पार्टी ममता दीदी की सियासी सेहत पर लेश मात्र भी असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि पिछली तीन टर्म में पार्टी का असली और एकमात्र चेहरा उन्हीं को माना गया। ऐसे में यदि ममता बैनर्जी को तृणमूल कांग्रेस की आत्मा या आइरन लेडी का तमगा भी दे दिया जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। करीब 32 वर्ष साल पहले ममता दीदी ने शपथ ले ली थी कि अब उनके जीवन का एकमात्र इरादा है पश्चिम बंगाल में स्व. ज्योति बसु की वाम सरकार को गिराकर कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग की शान की सवारी करना। जुमले की अदा में कहें तो अपने लक्ष्य को पाने के लिए उन्होंने मौत से खेलने में भी डर नहीं लगा। दरअसल वे समाज सेवा करना चाहती थीं लेकिन महिलाओ पर अत्याचारों ने उनके जीवन को राजनीति की तरफ़ मोड़ दिया। वे अविवाहित मानी जाती हैं। दो सूती साड़ियाँ एक जोड़ा हवाई चप्पल, साधारण सा घर, एक गाड़ी और सामान्य खान पान उनकी खास पहचान है। उन पर सोनिया गाँधी का परम विश्ववास है और स्व. राजीव गांधी की तो तस्वीर उनके ऑफ़िस में लगी हुई। स्व. अटलजी के आगे तो वे नत मस्तक रही हैं।
भारत में ऐसा नहीं के बराबर हुआ है कि विधानसभा चुनाव वन वुमन आर्मी का ऐसा जलवा दिखा हो। ममता दीदी ने व्हील चेयर पर बैठकर भाजपा की छाती पर जो मूँग दले उसी के कारण टीएमसी ने न सिर्फ़ सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा ऊर्फ़ मैजिक फिगर तक पाया बल्कि एक नया ही कीर्तिमान स्थापित कर दिखाया। टीएमसी को जितवाने में मुस्लिम समाज के 30 से 36 फ़ीसद मतुआ संगठन ऊर्फ़ मतवाला संगठन, वाम और कांग्रेस की एक तरफा वोटिंग, ममता के पैर में चोट आने के बाद व्हीलचेयर करीब पूरे सूबे में प्रचार, महिला वोटर्स का समर्थन तो जादू जैसा काम आया ही मगर दो तथ्यों की ओर कदाचित बहुत कम लोगों का ध्यान गया होगा। खुद पीएम नरेन्द्र मोदी दी ओ दी जैसी मजाकिया शैली में भाषण दे रहे थे। बंगाल के लोगों ने कहते हैं इसे आत्मसम्मान से जोड़ा। यह सूबा यदि रक्त रंजित राजनीति के लिए दुनिया भर में जाना जाता है तो अपनी भद्रता, सभ्यता, संस्कृति, विद्वता आदि के लिए दुनिया भर में नामवर है।
इसी सूबे ने कुल आठ में से चार नोबल पुरस्कार दिए, शान्ति निकेतन यहीं है, मदर टेरिसा का आश्रम यहीं है, बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि कोलकाता को सिटी ऑफ जॉय कहा जाता है, नेताजी सुभाष बाबू, स्वामी विवेकानंद, फिल्मकार सत्यजीत रे, श्याम बेनेगल, विश्व प्रसिद्ध पत्रकार एम .जे . अकबर, एस.पी. सिंह, फिल्मकार, पूर्व राज्यसभा सदस्य, कवि, टी वी शो मेकर प्रीतीश नंदी आदि इसी प्रदेश के है। कहा जाता है कि मारवाड़ी समुदाय का तो राजस्थान के बाद पश्चिम बंगाल ऐतिहासिक रूप से दूसरा घर है। इस सूबे के कुल कारोबार का क़रीब 70 मारवाड़ी समुदाय के हाथों में खासकर साड़ियों का उत्पादन। वहाँ की लगभग 25 सीटों पर मारवाड़ी असर रखते है मग़र चुनावी चंदे के अलावा पश्चिम बंगाल के विश्वसनीय दैनिक सन्मार्ग के संपादक विवेक गुप्ता को टीएमसी ने पहली बार टिकट देकर लड़वाया। लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री की शपथ तो दीदी ममता बैनर्जी ही लेंगी। संविधान के अनुसार उनके लिए आगामी छ्ह महीनों में कोई भी टीएमसी विधायक अपनी सीट खाली करके ममता बैनर्जी को जितवा देगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखक : नवीन जैन वरिष्ठ पत्रकार
इंदौर