पश्चिम बंगाल में दीदी, तमिलनाडु में स्टालिन और केरल में विजयन की जीत लोकतंत्र की जीत

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अंततोगत्वा जैसी कि संभावना थी और चुनावी विश्लेषकों, जानकारों के चुनावी आंकलनों, कुछ सत्ताधारी लंपट दलाल प्रवृत्ति के विशेषज्ञों-पत्रकारों-चैनलों की धारणाओं को दरकिनार कर पश्चिम बंगाल के चुनावी महाभारत में दीदी ममता बनर्जी ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अहंकार और हर उस दावे को धूल धूसरित कर दिया है। साथ ही यह साबित कर दिया है कि बंगाल में उनका जादू अभी भी बरकरार है, वह खत्म नहीं हुआ है जिसे मटियामेट करने में भाजपा ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, केन्द्र सरकार के मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, राज्यों के नेताओं की फौज भी अनेकानेक आरोपों-प्रलापों और बदजुबानी के बाबजूद नाकाम साबित हुयी और बंगाल की जनता के भरोसे पर खरा उतरते हुए वह विजय पताका फहराने में कामयाब हुयीं। 

इस विजय के लिए ममता बनर्जी कोटि-कोटि बधाई की पात्र हैं कि उन्होंने भाजपा के इतने विरोधी कुप्रचार, चरित्र हननऔर मतों के ध्रुवीकरण के प्रयासों के बाद भी यह साबित कर दिया कि देश में वह एकमात्र ऐसी नेता हैं जो झूठों के बादशाह के हर हथकण्डों को धता बताकर विजयश्री पाने की क्षमता रखती हैं। अपने कुशल नेतृत्व और रणनीतिक क्षमता से उन्होंने यह साबित भी कर दिखाया है। विपक्षी नेताओं के लिए यह एक सबक भी है कि अब भी समय है आपसी मतभेद, अहंकार और स्वार्थों को तिलांजलि देते हुए एक हो जाओ अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब देश की जनता तो कंगाल होगी ही, देश का अन्नदाता किसान बदहाल हो जायेगा , वह अपनी जमीन पर गुलाम हो जायेगा,देश का टुकडा़-टुकडा़ देश के गिने-चुने उद्योगपतियों के हाथों बिक जायेगा और देश जिस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी का गुलाम हुआ, उसी तरह मोदी के प्रिय पूंजीपतियों का गुलाम हो जायेगा। इसलिए देश के विपक्षी दलों के लिए यह चुनौती का समय है। अब भी संभलो, ममता दीदी ने तो बंगाल बचा लिया, स्टालिन ने तमिलनाडु बचा लिया और विजयन जी ने केरल बचा लिया , तुम अपने-अपने प्रदेश संभालो ,उन्हें बचाओ अन्यथा बहुत देर हो जायेगी और तुम सब हाथ मलते रह जाओगे। इसलिए एकता बेहद जरूरी है तभी देश बचेगा।

वह बात दीगर है कि आसाम और पुडुचेरी में भाजपा सरकार बनाने के करीब है और वहां सरकार बना भी लेगी जिसमें कोई संदेह भी नहीं है लेकिन पश्चिम बंगाल के साथ भाजपा तमिलनाडु और केरल में भी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त थी। केरल में तो 89 वर्षीय मेट्रो मैन ई श्रीधरन को मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी बना दिया था लेकिन वह खुद चुनाव हार गये और पार्टी भी डूब गयी। तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी में भितरघात करा पलानीसामी को मुख्यमंत्री बना उनसे गठजोड़ कर चुनाव लडी़ भाजपा वहां द्रुमक नेता स्वर्गीय एम करुणानिधि के बेटे एम के स्टालिन से बुरी तरह हार गयी। पश्चिम बंगाल का तो परिदृश्य ही अलग रहा जो ऐतिहासिक कहा जायेगा।

गौरतलब यह है कि पश्चिम बंगाल में तैंतीस दिन में आठ चरण में संपन्न हुए चुनाव में राज्य में प्रधानमंत्री मोदी ने बाईस केन्द्रीय मंत्रियों, छह मुख्यमंत्रियों, तीन केन्द्रीय एजेंसियों यथा-सीबीआई, ईडी, ईसी, एक कोबरा फोर्स सहित दस हजार सुरक्षा बलों के जवानों, तमाम मीडिया हाउसों, दर्जनों उड़न खटोलों व लाखों कार्यकर्ताओं के साथ इस प्रतिष्ठा के चुनाव में एक हवाई चप्पल पहने महिला से पटखनी खा गये। इसे क्या कहा जायेगा। बस यही कि दंभ हार गया और सच जीत गया। असलियत में यही आखिरी सच है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)