(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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दक्षिण के लगभग सभी राज्यों में बड़ी संख्या में प्राचीन और एतिहासिक मंदिरों और मठों का प्रबंधन राज्य सरकारों के पास है। इनके रख-रखाव, विस्तार, दैनिक पूजा अनुष्ठान, पुजारिओं और अन्य कर्मचारियों के वेतन आदि राज्य सरकारों के हिन्दू धर्मस्थान विभाग द्वारा दी जाती है। इसके लिए बजट में अच्छी खासी राशि का प्रावधान किया जाता है। वास्तव में इन सभी पुराने मंदिरों को आज़ादी से पूर्व रियासत काल में राज दरबार की ओर से अनुदान दिया जाता था। मंदिरों और मठों को जमीनें भी दी गयी थी ताकि इससे होने वाली आय से मंदिर का खर्चा आदि चल सके।
आज़ादी के बाद राज्य सरकारों ने इस व्यवस्था को जारी रखा। उत्तर भारत के तुलना में दक्षिण में प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों की संख्या काफी है जिन्हें राज्य सरकारों से अनुदान मिल रहा है। केवल कर्नाटक में लगभग 27,000 ऐसे मंदिर है जिनको सरकारी अनुदान मिलता है। इस साल के बजट में इसके लिए 133 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है। जो विभाग इन मंदिरों और मठों का अनुदान देता है उसका नाम कर्नाटक हिन्दू रिलीजियस इंस्टीचूशन एंड चैरिटीबल इंडोवमेंट विभाग है। लेकिन बोलचाल की भाषा में इस मज़ुराई विभाग ही कहा जाता है और इसके द्वारा मंदिरों के दिया जाने वाला अनुदान को "तस्दीक” कहा जाता है। मज़ुराई और तस्दीक दोनों ही उर्दू, फ़ारसी भाषा के शब्द है जो मुग़ल काल में दरबार की भाषा थी।
पता नहीं किस समय और किन कारणों से इस विभाग ने चुपचाप मस्जिदों और चर्चों को भी ये अनुदान देना शुरू किया। किस के लिखित अथवा मौखिक आदेश पर ऐसा किया गया इसकी भी सही उपलब्ध नहीं हैं। हाँ, इस मुद्दे को कभी भी किसी ने नहीं उठाया। लेकिन पिछले कुछ सप्ताहों से राज्य में इसको लेकर एक विवाद सा आरंभ हो गया है। प्राप्त सूचना के अनुसार कुछ सप्ताह पूर्व राज्य विश्व हिन्दू परिषद् के कई नेता मजुराई विभाग के मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी से मिले थे। इन नेताओं ने पुजारी से भेंट कर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा था। इस ज्ञापन में मंत्री महोदय का ध्यान हिन्दू मंदिरों के लिए रखे गए बजट में से राज्य की और राज्य के बाहर की कुछ मस्जिदों और चर्चों को अनुदान दिए जाने की ओर दिलाया गया।
उनका कहना था जब राज्य में वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाएं है, जो मस्जिदों की देखभाल तथा इनके मौलवियों का वेतन आदि देने के लिए जिम्मेदार है, जिनके बजट से उनको अनुदान दिया जाना चाहिये ना कि मज़ुराई विभाग से। उनका दावा था की किसी भी राज्य का ऐसा विभाग हिन्दू मंदिरों के अलावा किसी मस्जिद अथवा चर्च को किसी प्रकार का अनुदान नहीं देता। उनका यह भी तर्क था की राज्य के वक्फ बोर्ड ने आज तक किसी भी गैर मुस्लिम संस्थान, मंदिर अथवा मठ को अनुदान नहीं दिया। . इसलिए हिन्दू मंदिरों के फण्ड को भी गैर हिन्दू संस्थानों को किसी भी हालत में अनुदान नहीं जाना चाहिए।
सरकारी जानकारी के अनुसार मज़ुराई विभाग पिछले कुछ वर्षो से 700 से अधिक मस्जिदों और चर्चों को अनुदान देता आ रहा है। कुछ मामलों में तो मस्जिदों के मौलवियों का नियमति रूप से वेतन भी यही विभाग देता आ रहा है।
पुजारी ने इस मामले में तुरंत कार्यवाही करने का आश्वासन दिया। उन्होंने उसी दिन विभाग के अधिकारियों को गैर हिन्दू संस्थानों को अनुदान नहीं दिए जाने संबधी आदेश जारी करने को कहा। उसी दिन देर रात इस आशय की अधिसूचना भी जारी कर दी गयी।
जब पुजारी ने विभाग के अधिकरियों से यह जानना चाहा कि इस प्रकार गैर हिन्दू धार्मिक स्थलों को अनुदान देने का सिलसिला कब शुरू हुआ और ऐसा किसके आदेश से हुआ तो अधिकारियों ने कोई साफ़ उत्तर नहीं दिया। हाँ यह जरूर स्वीकार किया कि अनुदान के लिए योग्यता संबधी नियमों में कहीं भी गैर हिन्दू संस्थाओं का उल्लेख नहीं है। पर यह माना जा रहा है कि विभाग द्वारा गैर हिन्दू धार्मिक संस्थानों को अनुदान का सिलसिला पिछली कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में आरंभ हुआ। चूँकि टोटल बजट की बहुत ही कम राशि मस्जिदों और चर्चों को दी गयी इसलिए किसी का इस ओर ध्यान नहीं गया।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन गैर हिन्दू संस्थाओं को दिए गए अनुदान की राशि कभी भी इस मद के कुल बजट के 3 से अधिक नहीं थी। यह भी कहा गया की कोरोना की वजह से राज्य सरकार के राजस्व में कमी आई हैं इसलिए कुछ मौलवियों को इस मद से वेतन दिया गया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)