जगत् कल्याण : धर्म का मतलब है जो प्रजा के हित को धारण करे वही धर्म है
लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
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विश्व में जितने भी प्रकल्प किये जा रहे है, वे सब जगत् कल्याण के लिए है। जगत् कल्याण की भावना एक बहुत ही अच्छी भावना है। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना इससे जुड़ी हुई है। मानव जीवन बहुत ही बहुमूल्य है। संसार में जितने ही प्राणी है उसमें मानव ही सर्वश्रेष्ठ है। अतः संसार के हितचिंतन की बात सोचना सबसे अधिक मानव पर है। मानव ही संसार को स्वर्ग बना सकता है और अपने बुरे कामों से इसको नरक भी बना सकता है। यह मानव तन ईश्वर सत्संग के लिए प्राप्त हुआ है। ईश्वर में आस्था रखना, पुरुषार्थ चतुष्ट्य का पालन करना, धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष के अनुसार जीवन व्यतीत करना, अहिंसा का आचरण करना, और बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय की कामना करना, मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। मानव को जीवन में प्रमाद नहीं करना चाहिए। प्रमादवश अज्ञान या मिथ्यात्व का आलम्बन कर मनुष्य इस भवचक्र में भटक रहा है। सौभाग्य से उसकी दृष्टि जब मिथ्यात्व पराङ्मुख होती है, तब वह अपने लक्ष्य की ओर उन्मुख होता है और उसकी यह भावना बलवती हो जाती है तथा वह श्रुतिवचनों का अनुसरण कर उसके लिये विहित आचरण का अनुष्ठान करता है। जीवन में निवृत्ति और प्रवृत्ति दो मार्ग है। सांसारिक विषय भोगों से बचना ही निवृत्ति है।
यह जीवन कुश की नोक पर टिके हुए अस्थिर एवं वायु से प्रकम्पित होकर गिरने वाले जलकण की भांति क्षणभंगुर है। भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि सबको अपना जीवन प्रिय है अतः न किसी को मारें, न किसी पर शासन करें, न किसी को दास बनाएं, न किसी को परिताप दें और न किसी का प्राण वियोजन करें। प्राचीनकाल में इसका जो महत्त्व था आज उससे कहीं अधिक महत्त्व है, क्योंकि उस समय हिंसा के साधन उतने व्यापक नहीं थे, किन्तु आज के युग में परमाणविक अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग मानव-संस्कृति के सारे विकास को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता है। शोषण मुक्त समाज के निर्माण के लिए अपरिग्रह सिद्धान्त का आचरण आवश्यक है। अतः व्यक्ति के जीवन दर्षन में अहिंसा का प्रमुखतम स्थान है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपने जीवन में अहिंसा का पालन किया। अहिंसा उनके लिए जीवन का आधार थी। अहिंसा के बल पर उन्होेंने अंग्रेजी शासन से भारत को मुक्त करा लिया। उनका विश्वास था कि जब तक समाज का अंतिम व्यक्ति विकास की मुख्यधारा से नहीं जुड़ता तब तक सम्यक् विकास नहीं हो सकता। उन्होंने छुआछूत, गरीबी, ऊँच-नीच आदि को दूर करने के लिए जीवन भर प्रयास किया। महात्मा गांधी ने जगत् कल्याण के सर्वोदय, ट्रस्टीशिप, सत्याग्रह, उपवास और सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। उनका मानना था कि समाज के धनी व्यक्ति धन को व्यक्तिगत न मानकर ट्रस्टी के रूप में कार्य करें और आश्यकतानुसार समाज के लोगों पर खर्च करे तभी धन का सदुपयोग है।
महात्मा गांधी सर्वधर्म समभाव में विश्वास करते थे। सर्वधर्म प्रार्थना सभा किया करते थे। सर्व धर्म समभाव अर्थात् सभी धर्मों के साथ समान रूप से व्यवहार करना। जगत कल्याण के लिए समभाव आवश्यक है। धर्म का मतलब है जो प्रजा के हित को धारण करे वही धर्म है। समभाव का तात्पर्य है आदर का भाव। अतः सर्व धर्म समभाव का अर्थ है सभी धर्मों के प्रति आदर का भाव। भारतीय संविधान में भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। भारत में अनेक जातियों के लोग, अनेक धर्मों के लोग, अनेक मत-मतांतरों के अनुयायी रहते है। सभी सहिष्णुता पूर्वक जीवन व्यतीत करते है कोई किसी के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता जिसकी जैसी मान्यता है वह वैसा ही धार्मिक अनुष्ठान करता है। अनेकता में एकता भारत की सबसे बड़ी विशेषता है।
यहां पर हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, ईसाई, मुस्लिम, पारसी आदि अनेक धर्मों के लोग रहते है। सभी की पूजा पद्धति अलग-अलग है। अपने आस्था और विश्वास के आधार पर सहिष्णुता पूर्वक धर्म में आस्था व्यक्त करते है। भारतवर्ष धर्म प्रधान देश है। यहां आचार की महत्ता प्राचीन काल से ही मान्य रही है। आचार सम्पन्न व्यक्ति का ही जीवन परिष्कृत एवं व्यवस्थित होता है। आचार के आधार पर अवलम्बित विचार जीवन का परिष्कारक होता है। मानव-मानव से प्रेम सबसे बड़ा धर्म है। धर्म में बहुजन हिताय ओर बहुजन सुखाय की कामना की जाती है।
भारतीय धर्म की यह विशेषता रही है कि अनेक आक्रान्ता इस धर्म को नष्ट करने का प्रयास किये किन्तु यह धर्म इतना उदारवादी था कि सब इसीमें समाहित हो गये। इसका मूल कारण है भारतीय धर्म अहिंसावादी है। अहिंसा का तात्पर्य है मन, वचन, काया से किसी को दुःख न देना। सबके साथ प्रेम का व्यवहार करना, सबके साथ सहिष्णुता का व्यवहार करना, सबके साथ समानता का व्यवहार करना इस धर्म के मूल में है। यहां गुणों की पूजा होती है व्यक्ति की नहीं। वैदिक दर्षन में सर्वे भवन्तु सुखिनः का सिद्धान्त लोक कल्याण का सिद्धान्त है। इसमें लोकहित की कामना की गयी है।
इसी प्रकार जैन दर्षन का अनेकान्त वाद, बौद्ध दर्षन का मध्यम मार्ग, ईसाई धर्म का भाई चारा और इस्लाम धर्म का परस्पर प्रेम धार्मिक सहिष्णुता और जगत् कल्याण की षिक्षा देते हैं। जैसे एक शरीर के अवयव भिन्न-भिन्न हो कर भी कार्य निष्पादन में एक साथ कार्य करते है वैसे ही विभिन्न धर्मावलंबी यदि अपने विरोध भाव को छोड करके एक साथ काम करे तो यह धार्मिक सहिष्णुता और जगत् कल्याण का सबसे अच्छा उदाहरण हो सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)