कांग्रेस पार्टी में कपिल सिब्बल के मायने










लेखक : नवीन जैन

वरिष्ठ पत्रकार, इंदौर (एमपी)

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क़रीब क्ररीब तय हो चुका है कि रोज़ ब रोज़ कांग्रेस टूट फूट रही है। इसमें पलीता मध्यप्रदेश के पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह लगा रहे हैं। जिन्होंने हाल  में जम्मू कश्मीर के बारे में चर्चित बयान देकर अपनी अदा का एक और फटाका फोडा है। कांग्रेस के इतने बुरे दिन, तो शायद कभी नहीं आए कि कभी का बेदम साबित हो चुका नेता जितिन प्रसाद कांग्रेस को चमकाकर भाजपा का बाना ओढ़ ले। खबरों पर विश्वास करें तो सूंघा जा सकता है कि राजस्थान में पार्टी के मुख्यमंत्री अशोक पायलट से क़रीब सवा साल से खिन्न चल रहे सचिन पायलट चाहे जब पाला बदल लें। पंजाब में गुरु नवजातसिंह का गुस्सा भी फ़िर ज़ोर पकड़ रहा है। बहरहाल। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना कांग्रेस देखना भूल चुकी है। राजनीति के गहरे गोताखोर कहते हैं कि तमाम विपरीत माहौल में  आवश्यकता इस बात की है कि पस्त पड़ चुकी देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को 2024 के आम चुनाव में इतनी सीटें तो मिलें जाए कि वह सदन में दमदारी से पेश आ सके। इसी के चलते यदि केन्द्र में विपक्ष की सरकार आ जाए तो कांग्रेस जो मिला है अच्छे बालक की तरह ज़िद न करे। विशेष रूप से राहुल गांधी और सोनिया गांधी 2024 में लाल किले से तिरंगा फहराने का सपना देखना बंद कर दे। पूरा विपक्ष राहुल गांधी से अघा चुका है। 

कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि जून 12 को एनसीपी अध्यक्ष शरद पँवार और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जो मुलाकात हुई, उसमें राहुल गांधी को परे रखने तक की बात हुई। दरअसल कहा जाता है कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व डिफेंस मिनिस्टर शरद पँवार स्व. चरणसिंह और स्व. चंद्रशेखर की तरह एक बार तो देश के मुखिया की पगड़ी पहनना ही चाहते हैं। लेकिन यह दिवास्वप्न न जाने कितने लम्बे समय से वे देख रहे हैं। अब तो वे इतने बुजुर्ग हो चुके हैं कि उन्हें सामान्य रूप से चलने फिरने में भी मुश्किल आती है। उन्हें मुँह का लकवा भी हुआ बताया गया था, जो अपने असर छोड़ गया है। जोड़ तोड़ की राजनीति में उनसे ज़्यादा नाम शायद ही किसी ने कमाया हो। जो पूर्व रक्षा मंत्री स्व. यशवंतराव चौहान उनके राजनीतिक गुरु थे, उन्हें ही शरद पवार को पक्का चालबाज़ बताया था। पीएम नरेंद्र मोदी तक उन्हें गुरू कहते रहे हैं। स्व. चंद्रशेखर से उनका कोई पार्टीगत रिश्ता नहीं था, मग़र मात्र 58 या 60 साँसदों के बूते वे स्व. राजीव गांधी से समर्थन लेकर चंद्रशेखर का राज तिलक निकलवाने में कामयाब हो गए थे। 

बॉलीवुड तथा कारपोरेट जगत, बॉम्बे डाइंग के मालिक नुस्ली वाडिया से लेकर एक्सप्रेस के मालिक स्व. रामनाथ गोयनका तक की सरपरस्ती उन्हें हासिल थी। कहा, तो यहाँ तक जाता रहा है कि शरद पवार अपनी जेब में हरदम सौ करोड़ रुपए लेकर चलते हैं। यानी सौ साँसदों को इधर से उधर कर सकते हैं। इन सभी बातों के बाद भी माना जाता है कि भारतीय समाज में शरद पँवार की इमेज अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन रूजवेल्ट जैसी नहीं है। जान लें कि रूजवेल्ट बुरी तरह से पोलियो ग्रस्त थे। वे तीन किताबें तक रोज़ पढ़ जाया करते थे। इसीलिए उनकी दृष्टि विश्वव्यापी होती गई ।फलतः उन्हें राजनीति के बाहर भी पूजा जाता रहा। इस तरह की कोई कशिश शरद पँवार शायद ही कभी देखी गई हो। गुलाम नबी आजाद एक ऐसे नेता हैं, जो कमान सम्हालने लायक माने जा सकते हैं, मग़र सर्वमान्य नेता के रूप कपिल सिब्बल दूर तक पकड़ रखते हैं। यूँ, यह खूबसूरत नेता मूलतः सुप्रीम कोर्ट का सीनियर मोस्ट वकील है। 

उन्होंने ही कांग्रेस को कई गम्भीर मुकदमे जितवाएँ हैं। यह पक्का है ,कि वे राजनीति छोड़ सकते हैं ,लेकिन भाजपा के गले नहीं लगेगें। सबसे बड़ी बात यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के निमंत्रण पर वे कांग्रेस में शामिल हुए थे। वे ही सर्व प्रथम ईवीएम वोटिंग मशीन की जाँच करवाने इंग्लैंड गए थे, हालांकि उन्हें बेरंग लौंटना पड़ा था। यूपीए सरकार में कई मंत्रालयों का काम सम्हाल चुके कपिल सिब्बल की पार्टी के प्रति ईमानदारी का प्रमाण है कि जब पिछले वर्ष कांग्रेस विशेष रूप से बिहार विधानसभा चुनावों में चारों खाने चित हो गई थी, तो पार्टी आला कमान के सामने कपिल सिब्बल ने अन्य  नाराज नेताओं के साथ गुहार लगाई थी। इस सम्बंध में, जो पत्र लिखा गया था वह मीडिया को लीक हो गया था। खूब ले दे हुई। कपिल सिब्बल को राहुल गांधी ने इशारो में कह दिया, आप भाजपा के कहने पर यह सब कर रहे हैं। यही बात सिब्बल को खली। इस पत्र पर कुल जमा 23 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के दस्तखत थे।  कोई बैठक में रो रहा था, तो कोई इस सम्बंध में हुई बैठक से उठकर जा रहा था। तब भी दिग्विजयसिंह यही कह रहे थे, कि हमारे नेता राहुल गाँधी ही हैं। 

इन सबके बावजूद कपिल सिब्बल की मीडिया को कही यह बात नई सी लगती है कि हमारे संविधान का ढांचा इतना कमजोर हो चुका है कि कोई सत्ता के खिलाफ खड़ा होना ही नहीं चाहता। अब वो दिन फ़ना हो चुके, जब विचारधारा आधारित राजनीति चलती थी। अब हर तरफ़ लाभ धारी सियासत का बोलबाला है। सिब्बल का कहना है कि यदि भाजपा के विकल्प की बात सोची जा रही है तो सभी विरोधी दल साथ आ जाएं और एक सर्व सम्मत प्रोग्राम बनाएं। इस साझा न्यूनतम कार्यक्रम के बाद 2024 के आते-आते लीडरशिप पर अंतिम निंर्णय लिया जा सकता है। कपिल सिब्बल जो कह रहे हैं, उस पर ईमानदारी से विचार की गुंजाइश प्रत्येक दल के लिए बनती है। आखिर डॉक्टर मनमोहन सिंह को भी तो यूपीए ने सर्वसम्मत ढंग से निरंतर दस सालों तक के लिए देश का कलश पुरुष  बनाया था, जबकि डॉ. मनमोहन सिंह रिमोट संचालित प्रधानमंत्री कहे जाते रहे। उनके प्रखर विरोधियों ने भी उन पर पाँच पैसे के गलत काम का आरोप नहीं लगाया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपना नज़रिया है)