आदर्श जीवन शैली के सूत्र
लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
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प्रकृति के साथ तालमेल बैठाना, प्रकृति के साथ जीना, प्रकृति का संरक्षण करना, मानव मात्र के साथ मैत्री का व्यवहार करना, सभी जीवों को अपने समान मानना, और सर्वभूत हित चिन्तन करना, बड़ों का सम्मान करना आदर्श जीवन शैली के मूलमंत्र है। 84 लाख जीव योनियों में मानव सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए मनुष्य को ऐसा आचरण करना चाहिए कि उसका सब अनुकरण करे। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पंचमहाभूतों की पूजा हमारे देश में अनादिकाल से हो रही है। हमारे पूर्वजों को यह ज्ञात था कि यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ किया जायेगा तो प्रकृति रूष्ट होकर के मानव को उसका दंड अवश्य देगी। प्रकृति के जितने भी अवयव है वे सभी प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर जीवन-यापन करते है।
मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो प्रकृति के प्रतिकूल आचरण करता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की सभ्यता में प्रकृति पूजा के चिह्न मिले है। प्रकृति के जितने भी उपादान है वे सभी समान बर्ताव करते है। रात दिन का होना, सूर्य और चन्द्रमा का अपने गति के अनुसार पथ पर चलना, षड ऋतुओं का होना और जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन ये सब क्रियाएं प्रकृति अपने आप करती रहती है। रात और दिन की रचना के पीछे सिद्धांत यह है कि दिन में मनुष्य काम करे और रात में शयन करे। यह मानव के लिए है। यदि इसके विपरीत आचरण किया जाता है तो यह दानव का काम होता है। किन्तु आजकल भिड़मभाड़ वाली जिन्दगी में रात दिन का अन्तर ही समाप्त हो गया है। इसलिए जीवन-यापन करने के लिए लोग रातों दिन काम करते है। अंग्रेजी भाषा में एक कहावत है-
Early to bed and early to rise
Makes a man healthy wealthy and wise
समय का नियोजन स्वस्थ जीवनचर्या के लिए बहुत आवश्यक है। जब शरीर स्वस्थ रहेगा तो दिमाग भी स्वस्थ रहेगा। समाज मे रहनेवाले हर वर्ग के लिए समय का नियोजन आवश्यक है। विद्यार्थी को चाहिए कि वह समय से अध्ययन करें और अपने लक्षित मंजिल का प्राप्त करें। अध्यापक का कत्र्तव्य है कि वह अपने अध्यापन के कार्य को पूर्ण मनोयोग के साथ करें। किसान का कार्य यह है कि वह समय के अनुकूल फसलों को बोये और अधिक से अधिक अन्न उत्पन्न करे। इसी प्रकार राजनेता, अधिकारी, डाॅक्टर, इंजीनियर और व्यवसायी सभी अपने-अपने उत्तरदायित्वों को समझते हुए कार्य करे जिससे समाज में एक रूपता बनी रहे और राष्ट्र का विकास हो। समय के नियोजन के बिना उन्नति होना असंभव है। जिस मौसम में जो फसल बोनी जानी है यदि उसको न बोकर अन्य फसल का उत्पादन करने का प्रयास किया जायेगा तो सफलता नहीं मिलेगी। इसी प्रकार विद्यार्थी अपने विद्यार्थी जीवन में यदि विद्यार्जन करने में लापरवाही दिखायेंगे तो जीवनभर उनकों कष्ट उठाना पड़ेगा।
इससे यह सिद्ध होता है कि समय का जीवन में कितना अधिक महत्व है। गया हुआ समय फिर जीवन में लोटकर नहीं आता। समयानुकूल आचरण करने से जीवनचर्या नियमित रहती है। मानव स्वस्थ रहता है। पशु-पक्षी, जलचर, नभचर आदि प्राणी प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करके स्वस्थ रहते है। मानव को भाव क्रिया का पालन करना चाहिए। भाव क्रिया का तात्पर्य है भाव के अनुकूल क्रिया। वर्तमान में जीना, पढ़ते समय केवल पढ़ने में मन लगाना, खेलते समय केवल खेलने में मन लगाना आदि क्रियाएं भावक्रिया कहलाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस समय जो कार्य किया जा रहा है उसे पूर्ण मनोयोग के साथ किया जाना चाहिए। आदर्श जीवनशैली के लिए प्रतिक्रिया विरति आवश्यक है। प्रतिक्रिया विरति का तात्पर्य है कि किसी के कार्य पर तत्काल प्रतिक्रिया न करना। मान लीजिए कोई आप पर क्रोध करता है तो उस क्रोध करने वाले व्यक्ति के उपर तत्काल क्रोध करके उसका प्रतिकार नहीं करना चाहिए। यह चिन्तन करना चाहिए कि इस व्यक्ति ने मेरे उपर क्यों क्रोध किया। यदि क्रोध का प्रतिकार क्रोध से किया जायेगा तो मारपीट होना अवश्यंभावी है।
आदर्श जीवन शैली का अगला सूत्र है मैत्री भावना। सभी प्राणियों के साथ मैत्री का भाव रखना चाहिए। मैत्री का भाव दिखलाने से शत्रु भी मित्र हो जाते है। मैत्री भावना, प्रमोद भावना स्वस्थ रहने का एक बहुत ही सुंदर प्रकल्प है। जो व्यक्ति सदैव प्रसन्न रहता है, निषेधात्मक विचार अपने मन में नहीं लाता वह सदैव स्वस्थ रहता है। आदर्श जीवनशैली का अगला सूत्र है मितभाषण। मितभाषण का अर्थ है कम बोलना। जो व्यक्ति कम बोलता है, वाणी पर संयम रखता है उसकी बात को सब महत्व देते है। मिताहार भी आदर्श जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण सूत्र है। मिताहार का तात्पर्य है आवश्यकता के अनुसार ही भोजन करना। जो व्यक्ति परिमाण से ज्यादा भोजन करते है वे अस्वस्थ रहते है। किन्तु जो शरीर की आवश्यकता के अनुकूल भोजन करते है। उनका शरीर स्वस्थ रहता है, मन स्वस्थ रहता है और उन्हें किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती। इस प्रकार आदर्श जीवनशैली जीने के लिए मानव को प्रयास करना चाहिए। आदर्श जीवनशैली जीने वाला व्यक्ति ही समाज और राष्ट्र को सुदृढ़ बनाता है। किसी रुग्ण व्यक्ति से समाज हित चिन्तन की कामना नहीं की जा सकती। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)