दिलीप कुमार : अभिनय को हर बार नई तहज़ीब

 
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दिलीप कुमार के युसुफ़ खान से दिलीप कुमार बन जाने की कथा ,और उनकी लटों वाले बाल की कहानी बड़ी रोचक है। कई जगह हवाले मिल जाएंगे कि एक शूटिंग के दौरान उन्हें नाम बदलने की सलाह दी गई ।दिलीप  साहब ने कहा, जहांगीर नाम कैसा रहेगा ? बात बनी नहीं कुछ। दिलीप कुमार ने कहा दिलीप कुमार रख लूँ। यह नाम आगे चलकर हिंदी फिल्मों का सरमाया तो बन  ही गया ,उक्त अदाकार को ट्रेजेडी किंग भी कहा जाने लगा।एक बार दिलीप साहब बरसात में भीगते हुए स्टूडियो पहुंचे। साथी अभिनेत्री ने कहा ,तुम्हारी ज़ुल्फ़ें बड़ी रोमांटिक लग रही हैं। चाहो, तो इसे अपनी सिग्नेचर हेयर स्टाइल भी बना सकते हो। बस, तभी से दिलीप साहब की इस हेयर स्टाइल पर गाने तक लिखे गए। जैसे, उड़ें जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी क्वारीयों  का दिल मचले। 

फिलहाल, मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में एडमिट दिलीप साहब के बारे में कहा यह भी जाता है कि वे अपनी याददाश्त लगभग खो चुके हैं।बढ़ती उम्र  यानी लगभग 95 वर्ष में ऐसा होता है। ऐसे में सालों से उनकी पत्नी पूर्व  सिनेतारिका सायरा बानू हर पल उनका खयाल रखती हैं। कहते हैं, श्रीलंका की तत्कालीन प्रधानमंत्री सिरोमाय भंडार नायके ने जब उनकी फिल्म देवदास देखी, तब मुंबई एअर पोर्ट पर उनसे मिलने के लिए के लिए लंबे समय तक इंतज़ार करती रहीं। कहा जाता है कि दिलीप  कुमार को दुखांत बादशाह उर्फ ट्रेजेडी किंग पहली बार बनी देवदास के बाद कहा जाने लगा था। उक्त फ़िल्म, तो हिट हो गई, मग़र देवदास की भूमिका में दीलिप साहब ऐसे डूबे कि गहरे अवसाद यानी डिप्रेशन में चले गए। उन्हें इलाज के लिए करीब एक साल तक इंग्लैंड में रहना पड़ा। 

जब भारत लौटे, तो डॉक्टर्स का परामर्श था, अब आपको देवदास जैसी फिल्में नहीं करनी हैं । बाद में दीलिप साहब ने कोहिनूर जैसी हल्की फुल्की फिल्में दीं ।उनका फ़िल्म मशाल में पत्रकार या संपादक वाला रोल हो या फ़िल्म कर्मा में  पोलिस ऑफिसर वाला अभिनय भुलाए से नहीं भूलता। फ़िल्म शक्ति इसलिए लोगों को यादों में ठहर चुकी है ,कि उनके बेटे के रूप में सामने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन थे। अमिताभ ने एक बागी बेटे के  तथा उसूलों के पक्के पुलिस ऑफिसर के रूप में दीलिप साहब ने  इस फ़िल्म में स्क्रीन को नई तहजीब दी थी। दिलीप साहब ने बॉलीवुड में जितना सम्मान पाया, उसकी भी मिसालें दी जाती रहेगी। वे जब संजय लीला भंसाली  द्वारा निर्मित और अमिताभ बच्चन द्वारा अभिनीत मूवी ब्लैक का प्रीमियर देखने गए ,तो समाप्ति के बाद अमिताभ को गले लगाकर ज़ार ज़ार रोए। पास में ही सायराजी ,और शाहरुख खान बैठे हुए थे। उन्होंने किसी तरह दिलीप साहब को सम्हाला। उक्त अभिनेता  निजी जीवन मे भी कितना संवेदनशील रहा है ,इसका एक निराला उदाहरण। हुआ यूँ था कि तबके मशहूर हास्य अभिनेता स्व. मुकरी गम्भीर रूप से बीमार होकर अस्पताल में दाखिल थे। 

दिलीप  कुमार सायरबानु के साथ उनकी मिज़ाज पुर्सी के लिए गए। पलंग पर लेटे मुकरी ने कहा ,आइए दिलीप  साहब। युसुफ़ बोलो युसुफ़। दिलीप साहब डपटते हुए कहा। दरअसल, दोनों सालों पुराने दोस्त थे। कहते हैं, सायराजी ने स्कूल के ज़माने से ही तय कर लिया था, कि वे दिलीप कुमार के साथ ही निकाह पढेंगी।दिलीप  साहब ने सायरबानु के घर जाकर उनके प्रस्ताव को मान लिया था। जान लें कि दोनों की उम्र में क़रीब 20 साल का फासला है ।एक और  किस्सा बड़ा रोचक है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ,और आडवाणी जी की जोड़ी को दिलीप साहब की फिल्में बेहद पसंद थीं। एक बार जब अटलजी मथुरा से लोकसभा का चुनाव हार गए, तो आडवाणी जी के साथ दिलीप  कुमार की फ़िल्म देखने चले गए। एक फ़िल्म के ,तो उन्होंने लगभग 25 रीटेक दिए ,लेकिन अंततः पहले टेक को ही पास किया। अपनी निराली डायलॉग डिलीवरी के लिए मशहूर फनकार स्व. राजकुमार अक्सर कहा करते थे। इस बॉलीवुड में अदाकार सिर्फ़ दो ही हैं। एक ,वो योसुफ़ खान। दूसरे ,हम ।शिव सेना संस्थापक  स्व . बाल ठाकरे की सदाबहार अभिनेता स्व .देवानंद ,और दिलीप  साहब के साथ गप्पा गोष्ठी मशहूर थी ,पर इसी बीच पाकिस्तान ने दिलीप कुमार को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान ए इम्तियाज़ से नवाज़े जाने की घोषणा कर दी। 

बाला साहब ने  दिलीप साहब को उक्त सम्मान नहीं लेने को कहा, मग़र दिलीप कुमार पाकिस्तान चले ही गए। बस ,तभी से दोनों के रिश्तों में दरारें पड़ गईं। एक बार तो तबके  बाल ठाकरे के दिमाग़ और ज़बान माने जाने वाले पत्रकार ,एवं राज्यसभा सांसद संजय निरुपम, जो फ़िलहाल कांग्रेस में रहकर ज़्यादा वाचाल होने लगे हैं ने, एक बम दागा। बयान दे दिया, कि दिलीप कुमार की कमाई का 80 फ़ीसद पाकिस्तान के विभिन्न कारखानों में लगा हुआ है। जब उनसे पत्रकारों ने प्रमाण माँगे, तो वे एक मंजे ,लेकिन एक खास दृष्टिकोण के पत्रकार होने के कारण अटपटी बातें करने लगे। हाँ ,यह सही है कि पूर्व डॉन ,और दाऊद इब्राहीम के गुरू माने जाने वाले स्व. हाजी मस्तान की पॉलिटिकल पार्टी के उम्मीदवारो चुनावी प्रचार करना दिलीप  कुमार के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। इसी तरह इमरजेंसी के नायक स्व. संजय गाँधी की भी वे सार्वजनिक रूप से तारीफ़ करते रहने खासे  विवादों में आए। यदि दिलीप कुमार की याद में सदियों रोना है तो उनकी मात्र एक फ़िल्म का सिर्फ एक गाना सुनें जिसके बोल है न तू जमीं के लिए है न आसमां के लिए, तेरा वजूद है सिर्फ दास्तां के लिए। इस गाने के दौरान दिलीप कुमार जिस तरह फूट फूटकर रोए है, वैसा तो शायद कोई नाराज बच्चा भी न रो पाए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)











लेखक : नवीन जैन

वरिष्ठ पत्रकार, इंदौर 

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