आखिर येद्दियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से जाना ही पड़ा

लेखक : लोकपाल सेठी

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने आज से लगभग छह महीने पहले ही कर्नाटक में अपने मुख्यमंत्री, बी.एस. येद्दियुरप्पा को यह कह दिया था कि अब उन्हें अपने पद से हट जाना चाहिए ताकि इस पद अपेक्षाकृत युवा को यह स्थान दिया जा सके। पार्टी के केंद्रीय नेताओं की यह सोच है कि नई पीढी को आगे ला कर ही  दो  साल बाद पार्टी फिर सत्ता में आ सकती है। इसका लाभ पार्टी को 2024 लोकसभा चुनावों में भी प  मिल सकता है। पर उनके इस्तीफे में विलम्ब इसलिए क्योंकि एक तो वे अपने पसंद के व्यक्ति को इस पद पर बैठाना चाहते थे। दूसरा वे इस बात को पुख्ता करना चाहते थे कि नया मुख्यमंत्री उनके लिंगायत समुदाय का ही हो। 

जब पार्टी आलाकमान ने उनकी इन दोनों को शर्तों को मान लिया तो उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से दो साल पूरा होने के दिन ही अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। हालांकि उन्होंने इस बात को जोर दे कर कहा कि उन पर कोई दवाब नहीं था और अपने इच्छा से यह पद छोड़ा है। पर सच्चाई यह है कि जब जुलाई के मध्य उन्हें अचानक दिल्ली बुलाया गया था और उनकी भेंट पार्टी के केंद्रीय नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई तो तो उन्हें साफ़ कह दिया  गया था कि अगर वे पद से इस्तीफ़ा नहीं देंगे तो पार्टी उनको खुद ही पद से हटा देगी। 

बीजेपी नेतृत्व ने येद्दियुरप्पा को लेकर कई प्रकार समझौते किये थे यहाँ तक की परी के नियमों और परम्परायों का ताक रख दिया। जब 2017 बीजेपी में लौटे तो उनकी उमर 75 साल से अधिक थी। पार्टी नियमों के अनुसार 75 से अधिक उमर वाला किसी पद पर नहीं रह सकता। फिर भी उन्हें राज्य पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। केवल इतना ही नहीं विधान सभा चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया गया। इस समय वे लगभग 79 साल के हैं। 

पार्टी इस पद पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले और अपने विश्वास के किसी व्यक्ति को इस पद पर लाना चाहती थी। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पार्टी के येद्दियुरप्पा की पसंद के बसवराज बोम्मई को  इस पद बैठाना स्वीकार कर लिया। वे समाजवादी पृष्ठभूमि के है तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एस. आर. बोम्मई के बेटे हैं। अपने पिता के तरह उन्होंने ने भी अपना राजनीतिक सफर जनता पार्टी से शुरू किया था। लेकिन लगभग 12 वर्ष पहले वे बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद वे बीजेपी के इतने पक्के हो गए कि जब  2013 में जब येद्दियुरप्पा ने बीजेपी छोड़ अपनी पार्टी जनता पक्ष पार्टी बनाई तो  तब भी बसवराज बोम्मई उनके साथ नहीं गए। 

2018 विधान सभा चुनावों से पूर्व जब येद्दियुरप्पा को वापिस बीजेपी में लाने में कोशिशें शुरू हुई तो बोम्मई ने उनका वापिस लाने में बड़ी भूमिका निभायी थी। तब से वे येद्दियुरप्पा के बहुत करीब होते चले गए थे। इसलिए जब येद्दियुरप्पा 2019 में दोबारा मुख्यमत्री बने  तो उन्होंने  बोम्मई को न केवल अपने मंत्रिमंडल में लिया बल्कि उन्हें गृह विभाग का मंत्री बनाया। इसके अलावा उन्हें संसदीय कार्य विभाग भी दिया गया। 

येद्दियुरप्पा यदयपि चार बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं लेकिन उनका कुल कार्यकाल पांच साल से अधिक नहीं रहा। दो बार तो वे केवल कुछ ही दिन के  मुख्यमंत्री रहे। दिल्ली से लौटने के बाद ही राज्य बीजेपी के नेताओं को यह संकेत मिल गया कि उनको पद छोड़ने के लिए कहा है हालांकि येद्दियुरप्पा ने बार-बार खंडन किया कि उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा गया है या वे खुद ही पद छोड़ रहें है। 

राज्य में  लिंगायत समुदाय कुल आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है लेकिन संख्या के तुलना में इस समुदाय का प्रभाव कहीं अधिक है। विधान सभा की 224 सीटों में से सौ से अधिक सीटों पर इसी समुदाय या इसके समर्थन से ही कोई जीत सकता है। 1990 तक यह समुदाय कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा और सबसे मज़बूत वोट बैंक था। उस समय राज्य के मुख्यमंत्री वीरेन्द्र पाटिल थे जो समुदाय के कद्दावर नेता थे। अचानक तब प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने उनको इस पद से हटा दिया तब इस समुदाय के नेता कांग्रेस पार्टी से दूर हो होकर बीजेपी के नज़दीक आना शुरु हो गए। 

येद्दियुरप्पा  ने जब बीजेपी में शामिल होकर अपना राजनीतिक सफ़र शुरू किया तो उन्हें अपने समुदाय का पूरा साथ मिला और उन्होंने ने भी समुदाय के संतो आदि की खुल कर सहायता की। जब वे पहली  बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने वीर शैव लिंगायत के मठों को विकास ने नाम पर 152 करोड़ रूपये का अनुदान दिया था। 2019 वे जब फिर मुख्यमत्री बने तो उन्होंने अलग अलग जातियों के लिए बनी निगमों को धन आवंटन करने की घोषण की। इसमें में भी सबसे अधिक आवंटन लिंगायत विकास निगम को दिया गया। यह राशि 500 करोरड़ रूपये थी। इसलिये जब येद्दियुरप्पा को हटाने की ख़बरें आने लगी तो इस समुदाय के संतो का बंगलुरु  में जमावड़ा होना शुरू हो गया। उन्होंने प्रधानमत्री सहित बीजेपी के नेताओं को पत्र लिख कर मांग कि येद्दियुरप्पा हटाया नहीं जाये। वे इसमें सफल तो न नहीं हुए लेकिन  अगला मुख्यमंत्री भी इसी समुदाय का बनवाने में सफल रहे।