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हमारे पूर्वज़ों ने अपने परिवारों के लोगों की कुर्बानी देकर स्वतंत्रता की पहली हवा में सांस ली और आज़ादी कायम रहे इस विचार को उत्तराधिकार के रूप में आने वाली पीढ़ी को उपहार स्वरूप दिया क्योंकि आज़ादी व्यवस्था के बिना संभव नहीं और व्यवस्था युवा पीढ़ी के कंधों पर होती। इसलिए दोनों के साथ-साथ चले बिना, आज़ादी का अर्थ नहीं क्योंकि जहाँ व्यवस्था होती वहाँ सर्वथा स्वतंत्रता होती और यह एहसास होता है, देश के प्रति। 15 अगस्त 2021 को भारत की आज़ादी की 74वीं वर्षगांठ और हम आज़ादी की डायमंड जुबली पर दस्तक देने वाले पर इस स्वतंत्रता के सही मायने क्या?
बी.बी.सी. न्यूज से उक्त प्रश्न जानी-मानी हस्तियों से पूछा-
किरण वेदी कहती हैं ‘‘आज़ादी का मतलब है, मैं बिना डरे कहीं भी घूम सकूं, मर्जी से अपना जीवनसाथी चुन सकूं। ऑनर किलिंग जैसी घटनाएँ युवाओं को डरा देती हैं। मानसिकता गुलाम बना देती है और डरा हुआ आदमी भला देश के किस काम आयेगा? बीजिंग ऑलंपिक में भारत को कांस्य पदक दिला चुके मुक्केबाज़ विजेन्द्र सिंह आज़ाद देश में भ्रष्टाचार को बेहद गम्भीर मुद्दा मानते हैं।
नीलम कटारा जिनके बेटे की हत्या कर दी गई थी वो कहती हैं स्वतंत्र भारत में न्याय दिलवाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी यानि इन्साफ के लिए लड़ाई लड़नी पड़े तो ये दुर्भाग्य पूर्ण मानती हूँ।
हम स्वतंत्र है, और भी अच्छा होगा यदि स्वतंत्र रहें और उससे भी अच्छा यदि अन्य को स्वतंत्र कर सकें, गरीबी, भ्रष्टाचार, अज्ञानता और कुरीतियों के बंधनों से क्योंकि जब तक मन सुसंस्कारों से रचा बसा नहीं होगा, तब तक कैसी आज़ादी? (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)