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जब से भारत ने एक गोल्ड सहित सात पदक जीते हैं तब से तोताराम नेताओं की तरह बिना कुछ किये जिस-तिस को बधाई देता फिर रहा है, गौरव और गर्व के नशे में मस्त घूम रहा है। आज बरामदे में आ बैठा लेकिन न तो चाय की कोई जल्दी और न ही चर्चा की कोई सुरसुरी।
हमने ही शुरुआत की- देखा तोताराम, मोदी जी कभी मास्टर नहीं रहे लेकिन क्या मास्टर स्ट्रोक मारा है !
बोला- इसीलिए कहा है 'नीम हकीम खतरा-ए-जान'। अंग्रेजी नहीं आती तो क्या ज़रूरी है बोलना। क्या सचिन ने कभी कहीं ब्लास्ट किया है, क्या कभी मास्टर रहा है ? लेकिन सभी कहते हैं- 'मास्टर-ब्लास्टर'। नेहरू जी कौन जन्मपत्री बांचते थे, कहाँ फेरे करवाते फिरते थे लेकिन कहलाते थे पंडित नेहरू। गांधी जी थे तो गृहस्थी, चार-चार बच्चे भी हुए लेकिन लोग उन्हें कहते थे महात्मा। मोदी जी तन, मन और वेश से महात्मा हैं लेकिन खुद को मानते हैं सेवक। जब मन की बात करते हैं तो अच्छे-अच्छे मास्टरों को मात करते हैं। स्ट्रोक का मतलब हार्ट स्ट्रोक, हीट स्ट्रोक अथवा फ़ुटबाल, क्रिकेट, हॉकी की गेंद को हिट करना ही 'स्ट्रोक' नहीं होता बल्कि ऐसी 'चाल' चल देना जिसके सामने वाले सभी निरुत्तर हो जाएँ उसे भी 'मास्टर स्ट्रोक' कहते हैं।
खैर, आज मोदी जी ने क्या स्ट्रोक मार दिया।
हमने कहा- राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार' का नाम बदलकर 'मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार' कर दिया है. ठीक भी है, राजीव गाँधी कौन से खिलाड़ी रहे हैं। खेल के पुरस्कारों और स्टेडियमों के नाम खिलाड़ियों के नाम पर ही होने चाहियें. लेकिन अब लोग कहने लगे हैं कि अहमदाबाद के स्टेडियम का नाम भी मोदी जी के नाम की जगह किसी खिलाड़ी के नाम पर होना चाहिए।
बोला- यह तो ठीक नहीं है। खेलों के विकास के लिए जितना काम मोदी जी ने किया है उतना तो सत्तर साल में किसी पार्टी और प्रधानमंत्री ने नहीं किया। शुभकामनाएं देने से बधाई देने तक सभी काम समय पर और विधिवत किये तभी इस ओलम्पिक में देश का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हुआ है।
हमने कहा- तो क्या किसी और ने कुछ भी नहीं किया ?
बोला- किया होगा, हमें क्या पता. हम तो पदकों से पहचानते हैं. हॉकी में तो देश की टीम आज़ादी के पहले से ही मैडल ला रही थी। नेहरू जी के १७ साल में दो गोल्ड और एक रजत- सब हॉकी में; शास्त्री जी के अल्पकाल में हॉकी का 1 स्वर्ण, इंदिरा जी के 15 साल में 3 कांस्य, एक स्वर्ण, राजीव जी के काल में कोई मैडल नहीं, अटल जी के समय में 1 कांस्य। लेकिन मोदी जी के केवल सात साल में नौ पदक हो गए हैं। 1 स्वर्ण, 2 रजत और 6 कांस्य। क्या प्रोग्रेस है। अब तो नेहरू जी और इंदिरा जी वाले स्टेडियमों और खेल पुरस्कारों के नाम भी बदल देने चाहिये।
हमने कहा- लेकिन मनमोहन जी के कार्यकाल में भी तो कुल दस पदक थे- 1 स्वर्ण, 4 रजत और 5 कांस्य
बोला- तभी तो मनमोहन जी के नाम से जितने भी खेल पुरस्कार और स्टेडियम हैं उनके नाम मोदी जी कहाँ बदल रहे हैं।
हमने कहा- जब हैं ही नहीं तो बदलेंगे क्या ?
(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपनी विचारशैली है, पढ़िए और आनंद लीजिये)
लेखक : रमेश जोशी
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंगकार)
सीकर (राजस्थान)
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.