लेखिका : ममता सिंह राठौर
बड़ी तब्दीलियां हैं, बड़ी रंगीनियां हैं
खामोशियों के साये में अनकही कहानियाँ हैँ
बड़ी मसरूफियत है, बड़ी रोमानियत है
दबी जुबां में उलटती पलटती, तन्हाइयां हैं
बड़ी बड़ी ऊंचाइयां हैं, उतनी ही गहराइयां हैं
मन जनता हैं, कितनी बड़ी खाईयां है
बढ़ता ही जा रहा है, इन आँधियों का जोर,
कोई क्यों नहीं देखता सिर्फ अपनी ओर