केरल में बाढ़ बादल फटने, भूस्खलन और कम दबा़व का परिणाम

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं)

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बीते दिनों केरल में आयी लगातार मूसलाधार बारिश ने भीषण तबाही मचाई । बारिश ने सितम्बर में जहां महाराष्ट्र-गुजरात, उ०प्र०,बिहार, असम आदि कुछ दूसरे राज्यों में कहर बरपाया। नदियां खतरे के निशान को पार कर गयीं। सैकडों-हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। हाई अलर्ट जारी हुआ। मुम्बई में लगातार तीसरे साल 3000  मिलीमीटर के पार बारिश का आंकडा़ पहुंच गया। वहीं बीते दिनों केरल में आयी भीषण बारिश, उसके साथ विनाशकारी भूस्खलन और फिर अचानक आयी बाढ़ ने कोट्टायम और इड्डुक्की जिले में भारी तबाही मचाई। दरअसल कोरोना की मार से अभी यह राज्य उबरा भी नहीं था कि भीषण बारिश के चलते आयी बाढ़ ने इस राज्य की मुश्किलें और बढा़ दी हैं। इसमें बारिश के दौरान आये भूस्खलन ने अचानक आयी इस तबाही को बढा़ने में और अहम भूमिका निबाही। 

हालात की भयावहता का पता इसी से चल जाता है कि बाढ़ से नदियां उफनकर खतरे के निशान को पार कर बहने लग गयीं, नदी किनारे के पेड़ पानी के भारी दबाव से उखड़कर नदी में बहने लगे, नदी किनारे के घर भर- भराकर गिरने लगे, लोग सुरक्षित जगहों पर पहुंचने की खातिर भागने लगे, सड़कें पानी से लबालब दिखीं, उनमें कारें बह रहीं थीं, तैर रहीं थीं, सड़कें बह गयीं, पुल छतिग्रस्त हो गये, नतीजतन आवागमन बाधित हुआ, लोग जहां थे, वहीं के वहीं फंसे रह गये। अधिकतर बांध क्षमता से ऊपर भर गये, बांध वाले इलाकों में जलस्तर बढ़ने से पानी छोड़ने की आशंका के चलते रेड अलर्ट जारी करना पडा़। बीते शनिवार को राज्य में चौबीस घंटे के अंदर पीरमादे में सबसे ज्यादा चौबीस से.मी, चेरूतोनि, पलक्कडी़ और पुंजार में चौदह-चौदह से.मी, घोडुपुझा में तेरह और सीताथोडि में बारह व कोच्चि में ग्यारह से.मी. बारिश हुयी। कोट्टायम, इड्डुक्की, पथनमथिट्टा जिले के पहाडी़ इलाकों में 2018-2019 की विनाशकारी बाढ़ जैसे हालात बने। इड्डुक्की में दस बडे़ पुल और लगभग इतने ही लकडी़ के पुल बह गये। यहा बारिश के चलते पहाड़ तो टूटा ही, ऐसा भी हुआ कि इसके साथ ही पहाड़ के टूटने से नदी बन गयी।

असलियत में केरल की इस बाढ़ को वैज्ञानिक बादल फटने की घटना से जोड़कर देख रहे हैं। कोचीन स्थित विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय भी इस बात की पुष्टि करता है कि इसके पीछे छोटे बादलों का फटना अहम वजह है। देखा जाये तो केरल के पश्चिमी घाट का ऊंचाई वाला पहाडी़ इलाका भूस्खलन की दृष्टि से अति संवेदनशील है। फिर कोट्टायम जिले के पर्वतीय इलाके में सबसे ज्यादा भूस्खलन की घटनाएं हुईं हैं। सबसे बडी़ बात यह कि कोट्टायम और इड्डुक्की जिले के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में केवल दो घंटे के भीतर ही 5 से.मी. से अधिक बारिश का होना एक तरह से छोटे बादल फटने का ही संकेत देता है। यदि मौसम विभाग की भी मानें तो एक छोटी सी अवधि में 5 से  10 से.मी. की बारिश होने के पीछे छोटे बादल फटने की घटना ही अहम है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। इससे स्थिति न केवल भयावह हो गयी बल्कि उसने हालात को विकराल बनाने में प्रमुख भूमिका निबाही। इसमें अरब सागर में बनने वाले हवा के कम दबाव ने हालात को और बदतर बनाया। 

भारी बारिश के चलते पातनमथिट्टा, कोट्टायम, एरनाकुलम, इड्डुक्की, त्रिशूर जिलों में रेड अलर्ट और तिरवनंतपुरम, कोल्लम, अलापुझा, पलक्कड़, मल्लापुरम, कोझिकोड और वायनाड जिलों में आरेंज अलर्ट जारी किया गया है। भूस्खलन के कारण कोट्टायम जिले में स्थानीय पुलिस और फायर ब्रिगेड के दस्ते को मार्ग अवरुद्ध होने की वजह से घटना स्थल तक पहुंचना दुश्वार हो रहा है। लेकिन राहत और बचाव कार्य के लिए सेना ने मोर्चा संभाल लिया है। सेना राहत कार्यों को बखूबी अंजाम दे रही है। सेना व वायु सेना हर स्थिति का मुस्तैदी से सामना कर रही है। दक्षिणी कमाण्ड के वायुसेना के सभी केन्द्रों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। वायु सेना के एम आई-17 व सारंग हैलीकाप्टर राहत कार्य में लगे हुए हैं। 

इनका अतिरिक्त बेडा़ षडमुगम वायुसैनिक अड्डे पर हर स्थिति के लिए तैयार खडा़ है।प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री को आपदा की इस घडी़ में हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है। राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बारिश से बचने के लिए लोगों से सभी एहतियात बरतने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि राज्य में 105 से अधिक राहत शिविरों की तात्कालिक व्यवस्था की गयी है और इनकी तादाद बढा़ई जा रही है। पाथनमिथिट्टा,कोट्टायम, एरनाकुलम, इड्डुक्की और अल्लाकुझा जिलों में एनडीआरएफ की टीमें और कोट्टायम व तिरवनंतपुरम में सेना की दो टीमें तैनात कर दी गयी हैं। भारी बारिश को देखते हुए त्रावनकोर देवस्थानम बोर्ड ने भगवान अयप्पा के भक्तों से पट्टानमथिट्टा जिले के सबरीमाला मंदिर में जाने से परहेज रखने का अनुरोध किया है। राज्य की 18 अक्टूबर को होने वाली हायर सैकेण्डरी की परीक्षा फिलहाल टाल दी गयीं हैं।

जहां तक इस बारिश में मरने वालों का सवाल है, राज्य द्वारा दिये आंकडो़ं के अनुसार अभी तक 36 लोगों की मौत हुई है। गैर सरकारी सूत्र सरकारी दावों से संतुष्ट नहीं हैं। वह मरने वालों की तादाद सौ से अधिक बताते हैं।लापता लोगों की संख्या अभी तक भी स्पष्ट नहीं है। हां अभी तक आठ महिलाओं समेत तकरीब सौ से अधिक लोगों को बचा लिया गया है। ऐसा दावा किया जा रहा है। एक जगह तो आठ, सात और चार साल की उम्र के तीन बच्चों जो एक दूसरे के हाथ पकडे़ हुए थे, के शव बरामद हुए हैं। कोट्टायम के कोट्टिकल इलाके में मरने वालों की तादाद सबसे ज्यादा है। मरने वालों में महिलाओं और बच्चों की तादाद सबसे ज्यादा है। घायलों की तादाद सैकडो़ं में है। तिरुवल्ला में तो अब भी घर डूबे हुए हैं। कोट्टायम के मुंडकायम में नदी के बहाव में घर के घर बह गये जबकि बाढ़ प्रभावित इलाकों में अब भी सैकडो़ं लोग फंसे हुए हैं और बचाव दल के आने की बाट जोह रहे हैं।

कुछ ऐसा ही नजारा सितम्बर महीने में देखने को मिला। अक्सर सितम्बर के आखिर में मानसून का प्रभाव कम हो जाया करता था और  बारिश भी खत्म हो जाती थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और देश में सितम्बर के आखिर तक बारिश का प्रकोप जारी रहा । इससे सर्वत्र हाहाकार मच गया। वैसे देश में बारिश के चलते आयी बाढ़ कोई नयी बात नहीं है। बाढ़  तो हमारे देश की स्थायी समस्या बन चुकी है। देश का तकरीब बारह फीसदी हिस्सा बाढ़ से बेहद प्रभावित रहता है। इसमें असम, आंध्र, उ०प्र०, ओडिसा, बंगाल, बिहार, केरल, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पंजाब मिलाकर कुल तेरह राज्य शामिल हैं जो बाढ़ की विभीषिका को झेलने को अभिशप्त हैं। सच कहा जाये तो बाढ़ इन राज्यों की नियति बन चुकी है। असलियत में देश में बारिश के मौसम में रावी, गंगा, यमुना, साहिबी, गंडक,घग्गर, कोसी, तीस्ता,ब्रह्मपुत्र, महानदी, महानंदा, दामोदर, गोदावरी, मयूराक्षी और साबरमती आदि की सहायक नदियों का पानी इनके किनारों को छोड़कर बहुत बडे़ पैमाने में मीलों दूर दूर तक जाकर फैल जाता है जो खडी़ फसलों, मवेशियों, मानव आबादी, घर-बार सहित करोडो़ं की राशि की तबाही का कारण बनता है।

यदि भौगौलिक दृष्टि से देखें तो हमारा देश तीन ओर से यथा पूरब में बंगाल की खाडी़, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है। अक्सर मानसून के मौसम में बहुत अधिक मात्रा में होने वाली बारिश का पानी भारत की नदियों के किनारे बसे राज्यों की बहुत बडी़ तादाद में बसी आबादी के लिए खतरा और विनाश का पर्याय बन जाता है। यही वह अहम कारण है जिसके चलते यह समूचा इलाका बाढ़ को लेकर अति संवेदनशील है। जबकि राजस्थान जो सूखे के लिए जाना जाता है, वह भी इस बार भीषण बारिश के प्रकोप से अछूता नहीं रहा। देश में अमूमन हर साल लगभग 33.516 लाख हेक्टेयर इलाका बाढ़ से प्रभावित होता है लेकिन जब बारिश की अधिकता होती है तो यह रकबा काफी बढ़ जाता है। सबसे ज्यादा बाढ़ से प्रभावित होने वाला इलाका है गंगा बेसिन, ब्रह्मपुत्र-बराक का बेसिन और मध्य भारत व दक्षिण भारत की नदियों का बेसिन। यदि बाढ़ से होने वाले नुकसान की बात करें तो हर साल आने वाली बाढ़ से 13 अरब 40 करोड़ की राशि का नुकसान होता है। सबसे बडी़ बात यह कि यह बाढ़ 81.11 लाख हेक्टेयर जमीन को प्रभावित करती है और इससे तकरीब  35.7 लाख हेक्टेयर फसलें तबाह हो जाती हैं।

यदि इस साल सितम्बर महीने में हुयी भारी बारिश की बात करें तो इसका प्रमुख कारण मानसून का देरी से विदा होना, निम्न दबाव प्रणाली का जल्दी बनना और जलवायु परिवर्तन के चलते हिंद महासागर और बंगाल की खाडी़ में लगातार होने वाली हलचलें हैं। इसका एक और कारण चक्रवाती तूफान 'गुलाब' और कम दबाव का क्षेत्र भी है जिसे नकारा नहीं जा सकता। मौसम विभाग की मानें तो इसका पहला कारण पैसिफिक ओसियन के ऊपर बना अलनीनो का असर जिसने मानसून को दबाया, दूसरा ठीक उसी वक्त हिंद महासागर में मानसून के अनुकूल वातावरण बना, और तीसरा है बंगाल की खाडी़ में बना कम दबाव का क्षेत्र। इसके चलते ही लम्बे समय तक भारी बारिश हुयी। इतना सच है कि इस रिकार्ड तोड़ हुयी भारी बारिश से किसानों की फसलों पर तो बुरा असर पडा़ ही, खेतों में जल जमाव की समस्या का भी सामना करना पडा़, फसल तबाह हुई सो अलग । इसका सर्दियों के मौसम पर भी दुष्प्रभाव पडे़ बिना नहीं रहेगा यानी इस बार सर्दी ज्यादा पडे़गी। निष्कर्ष यह कि इस बार कडा़के की सर्दी से देशवासियों को दोचार होना होगा। दरअसल सितम्बर का महीना मानसून का सबसे आखिरी महीना माना जाता है। 

इस बार पिछले साल की तरह  देश ने भारी बारिश का सामना किया। इस साल सितम्बर महीने की शुरूआत से ही बंगाल की खाडी़ में पहले कम दबाव बना, जो आगे चलकर दक्षिण गुजरात तक रहा। इसके अलावा ओडिसा और आसपास के राज्यों में दबाव ज्यादा बना रहा जो धीरे -धीरे उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ चला। नतीजतन ओडिसा के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में बारिश बढी़, गुजरात के आसपास और महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में भी भारी बारिश हुयी। कुल मिलाकर कम दबाव का क्षेत्र बनने के कारण देश के अधिकांश इलाके में जरूरत से ज्यादा बारिश हुयी। कहीं-कहीं तो बारिश ने कई-कई दिनों तक थमने का नामतक नहीं लिया और देश की राजधानी सहित अधिकांश इलाकों में वहां के लोगों को जलभराव का सामना करना पडा़। मीलों जाम में जूझते रहे लोग। खासियत यह कि देश की राजधानी दिल्ली में बारिश का 77 बरसों का रिकार्ड टूटा और 11 सितम्बर तक वहां 384.4 मिलीमीटर बारिश हुयी जबकि सितम्बर 1944 में 417.3 मिलीमीटर बारिश हुयी थी। जो 2021 में अबतक 404.1 मिलीमीटर रही जो पिछले छह सालों में सबसे ज्यादा थी। गौरतलब यह कि बारिश का यह रिकार्ड 1901-2021 के दौरान सर्वाधिक था। 16 सितम्बर को तो दिल्ली में सबसे अधिक 172.6 मिलीमीटर बारिश हुयी।

सच तो यह है कि इस साल मानसून के पूरी तरह फैलने में हुयी देरी ने बीते 19 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया। यह भी कि मानसून की देरी से वापसी की स्थिति में नम हवा का द्रव्यमान लम्बे समय तक बना रहता है। यह स्थिति ही अधिक समय तक भारी बारिश का कारण बनती है। इस सच्चाई को दरगुजर नहीं किया जा सकता। केरल की भीषण बारिश के पीछे भी इन कारणों को नकारा नहीं जा सकता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)