लेखक : लोकपाल सेठी
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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लगभग तेरहवी शताब्दी में न केवल भारत में बल्कि आस पास के कई देशों में बौध धर्म का इतना अधिक प्रसार हो गया था कि भारत में हिन्दू धर्म, यानि सनातन धर्म, के विल्पुत होने के बादल मंडराने लगे थे। उसी समय देश के सूदूर दक्षिण के इलाके केरल के वर्तमान कोचि नगर पास कलाडी गाँव के ब्राहमण परिवार में एक बालक का जन्म हुआ जो बाद में आदि शंकराचार्य के नाम से विख्यात हुआ। उसने हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित का बीड़ा उठाया। उनका देहावसान महज़ 32 वर्ष की ऊमर हो गया लेकिन मरने से पूर्व हिन्दू धर्म का फिर जागरण होना शुरू हो गया था। अल्प जीवन में उन्होंने देश का भ्रमण किया, हिन्दू धर्म का प्रचार किया और देश के चार स्थानों पर ऐसे मठ स्थापित जो बाद के काल में हिन्दुओं के चार धाम बन गए।
हालांकि आदि शंकरचार्य की सही जन्म तिथि और मृत्यु दिवस पर एक राय नहीं हैलेकिन आम तौर पर यह माना जाता है कि उनका जन्म ईस्वी 788 में हुआ था और उनकी मृत्यु 820 में हो गयी थी। उन्होंने अंतिम साँस उत्तराखंड के केदारनाथ धाम, जिसकी स्थापना उन्होंने ने ही की थी, में ली थी। उनकी एक छोटी सी समाधि केदारनाथ मंदिर के कुछ दूर बनाई गई थी। लगभग आठ वर्ष पूर्व जब राज्य के इस इलाके में कई दिन तक मूसलाधार वर्षा से आस पास के पहाड़ों में भूस्खलन और नदी में बाढ़ के चलते यहाँ इतनी तबाही हुई थी कि मंदिर के आस पास वाले आबादी के इलाके एक दम बह गए। हालांकि यहाँ पुनर्वास की योजना जल्दी ही बन गयी थी लेकिन इस पर सही मायनों में काम 2016 में ही आरम्भ हुआ। उस समय केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बन गई थी। नए प्रधान मंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने इस सारी योजना को नया रूप दिया। एक युवा साधू के रूप में नरेंद्र मोदी ने यहाँ लम्बी अवधि तक वास किया था और यहाँ की चप्पे, चप्पे का भ्रमण किया था। पुनर्वास योजना को नया और बड़ा रूप देने के साथ साथ यहाँ आदि शंकराचार्य के नष्ट हुए समाधि स्थल, जो केवल एक चबूतरा सा ही था, पर उनकी एक बड़ी मूर्ति लगाने का निर्णय किया गया।
कुछ समय बाद प्रधान मंत्री कार्यालय ने विज्ञापन के जरिये मूर्तिकारों से आदि शंकराचार्य की प्रस्तावित मूर्ति का प्रारूप और निर्माण के लिए आवेदन सहित अन्य विवरण माँगा गया। उधर निजी क्षेत्र की एक कंपनी जिंदल स्टील कंपनी ने प्रस्तावित मूर्ति के निर्माण का पूरा खर्च उठाने की जिम्मेदारी ली। देश के विभिन इलाकों से इस तरह की पत्थर की मूर्तियाँ बनाने वाले मूर्तिकारों ने अपने अपने डिजाईन और अन्य विवरण पेश किया। लगभग दो वर्ष पूर्व जिस डिजाईन को स्वीकार किया गया वह मैसूरू के एक मूर्तिकार अरुण योगीराज का था। लगभग 37 वर्षीय अरुण का परिवार पिछली पांच पीढ़ियों के मूर्ति निर्माण के काम से जुड़ा हुआ है। इस परिवार ने इस इलाके के कई बड़े मंदिरों में लगी मूर्तियों को गढ़ा. यह परिवार मैसूरू के राज परिवार की सेवा में रहा है तथा इस राज परिवार की विभिन शासकों की मूर्तियों की बनाया है। अरुण पढ़ाई की दृष्टि से एम् बी ए है। वे चार पांच वर्ष एक नौकरी मेंभी रहे रहे। लेकिन फिर उन्होंने नौकरी छोड़ इस पुश्तैनी काम से जुड़ने न निर्णय किया। आदि शकंराचार्य की प्रस्तावित मूर्ति का एक छोटा रूप बना कर प्रधान मंत्री कार्यालय को भेजा गया जो अंतिम चयन के बाद स्वीकार कर कर लिया गया। इसमें आदि शंकराचार्य को एक चट्टान पर ध्यान मुद्रा में बैठे दिखाया गया है इसे श्री चक्र मुद्रा कहा जाता है।
इस इलाके में होस्लया राजवंश के काल में जब विशाल हिन्दू मदिर बने तो उनमें लगाई गयी भगवान के अलग अलग अवतारों की मूर्तियों कृष्ण शिला कहे जाने वाले पत्थर की बनी है . इसे सामान्य भाषा में ग्रेनाइट कहा जा सकता है .इस पत्थर के बारे में कहा जाता हैकि यह धूप, बारिश सहित सभी मौसमो को सह सकता है. अरुण और इनके सथियों ने पास के एक इलाके कोटे में एक बड़ी चट्टान को चुना तथा अपने पिता की कार्यशाला में कुछ सहयोगियों के साथ इसे छैनी और हथोड़े से घड़ना शुरू किया। उन्होंने बातचीत में बताया कि शंकराचार्य मुद्रा को आलौकिक रूप देने के उन्होंने कई दिन तक एकांत में रह कर कल्पना की थी। यह मूर्ति 12 फीट ऊची है तथा इसकाव ज़न लगभग 28 टन है। इसे एक विशेष हेलीकाप्टर से केदारनाथ धाम में ले जाया गया था। वे खुद इसके साथ गए थे। समाधि स्थल पर इसे उनकी देखरेख में स्थापित किया गया था। इसी बीच उनके पिता की मृत्यु हो गयी इसलिए वे चाह कर भी 5 नवम्बर को केदारनाथ नहीं जा सके जहाँ मोदी ने इसका अनावरण किया था। इसी मूर्ति को नरेंद्र मोदी सहित हर उस व्यक्ति ने सराहा है जिसने इसकी झलक देखी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)