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अभी पांच-चार दिन पहले की बात है जब तोताराम ने हमें कार्तिक मास में सुबह-सुबह ताज़ा पानी से स्नान करके कीर्तन करते हुए मंदिर न जाने के लिए धिक्कारा था। लगा हमें ही क्या ठण्ड खा जायेगी। क्यों न पुण्य कमा ही लिया जाए। इसी चक्कर में आँख जल्दी खुल गई। सोचा स्नान करके मंदिर जाने से पहले थोडा घूम ही लें। सो तोताराम को उसके घर से लेते हुए जयपुर रोड़ की तरफ निकल गए।
देखा, 18-20 साल छह-सात किशोर दौड़ते हुए बगल से निकल गए। थोड़ी देर बाद वे सभी लौट पड़े और मंडी के गेट नंबर 1 के सामने बनी पक्की और साफ़ जगह पर दंड-बैठक लगाने लगे।
मन प्रसन्न हो गया। पता नहीं लोग आजकल के बच्चों को क्यों आलसी और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह कहते हैं। स्वास्थ्य के प्रति हम भी इतने सजग नहीं थे। पिताजी ज़बरदस्ती लानत-मलामत भेज कर उठाते थे जिससे समय से जंगल-दिशा हो आयें और स्कूल के लिए लेट न हों। उन दिनों किसी के घर में शौचालय नहीं हुआ करता था।
तोताराम ने उन किशोरों से पूछा- क्या भी जवानो, क्या मोदी जी की तरह तुम्हें भी किसी विराट कोहली ने 'फिटनेस चेलेंज' तो नहीं दे दिया?
उनमें से एक बोला- नहीं, अंकल हम आजकल के ऐसे नाटकों में शामिल नहीं हैं। हमें कौनसा ट्विट्टर पर खेल खेलना है। हम तो रोटी के लिए दौड़ रहे हैं। रन फॉर रोटी।
हमने कहा- भई, मोदी जी ने 'रन फॉर यूनिटी' का आयोजन करवाया था, पुलिस वालों ने भी एक बार 'रन फॉर पीस' भी किया था, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने एक बार 'रन फॉर दिल्ली' भी करवाया था। बस्ती जिले के कलक्टर ने एक बार योगी जी के लिए 'रन फॉर सी.एम' भी किया था। एक राम भक्त के एक भजन का वीडियों ज़ारी किया था 'रन फॉर राम'। लेकिन यह 'रन फॉर रोटी' समझ में नहीं आया।
उसके साथ का एक और किशोर बोला- अंकल, इसमें समझ न आने जैसी क्या बात है. मेरे विचार से तो इस दुनिया की सारी चहल-पहल ही 'रन फॉर रोटी' है. अब खेती में तो कोई दम है नहीं. या तो खेती में घाटा हो तो ख़ुदकुशी करो, न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए आन्दोलन करो तो किसी मंत्री का बेटा जीप से कुचल देगा। अब तो या तो सेना में नौकरियाँ हैं या फिर किसी खेल कोटे में. सोने का तो हमारा मन भी करता है लेकिन क्या करें सेना की नौकरी के लिए फिटनेस के चक्कर में भाग रहे हैं। यह 'रन फॉर रोटी' नहीं है तो क्या है। आप लोग भी तो चालीस साल जाने कहाँ-कहाँ ट्रासफर पर भागते रहे। वह भी तो 'रन फॉर रोटी' ही तो था। पुजारी भगवान के लिए नहीं भक्तों के चढ़ावे के लिए भागता है. दुकानदार सुबह-सुबह दुकान पर क्या पूजा करने आता है ?नेता जो चुनावों के समय भागते-दौड़ते हैं वह रन फॉर सेवा नहीं रन फॉर कुर्सी है. और कुर्सी मतलब कमाई. हुआ कि नहीं 'रन फॉर रोटी'।
हमने कहा- क्या बताएं, नया ज़माना है जो न हो जाए सो कम है. अब कोई इनसे पूछने वाला हो, क्या भागने से या किसी को पाकिस्तान भगाने से एकता आएगी ? अरे भाई, एक दूसरे के साथ बैठो, बातें करो, सुख-दुःख बांटो तो अपने आप एकता आ जाएगी।
तोताराम ने उन किशोरों को उलझाने के लिए कहा- लेकिन सेना में जाकर एक अच्छा सैनिक बनाने के लिए भागना ही क्यों ज़रूरी है ? वीर कभी भागते नहीं. अंतिम समय तक डटे रहते हैं।
उन्हीं में से एक और किशोर बोला- अंकल, चोर का पीछा करके उसे पकड़ने के लिए सिपाही को भी तो उससे अच्छा धावक होना चाहिए।
तोताराम ने कहा- पकड़ कर जेल भेजने के लिए या अपना कमीशन लेने के लिए।
सभी किशोर एक साथ बोले- दोनों ही स्थितियों में. सुशासन के लिए समयानुसार दोनों ही ज़रूरी हैं।
(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
लेखक : रमेश जोशी
(वरिष्ठ व्यंग्यकार है)
सीकर (राजस्थान)
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प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.