शराबबंदी के साथ जन जागरण बेहद जरूरी
लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत की क़लम से   

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)

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बीते बारह दिनों में बिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों का आंकडा़ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। सरकारी सूत्रों की मानें तो अभी तक 42 लोग जहरीली शराब पीने से राज्य के सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, समस्तीपुर, पश्चिमी चंपारण आदि जिलों में मौत के मुंह में जा चुके हैं जबकि दूसरे जिलों से जहरीली शराब पीने से मरने वालों की सूचना लगातार आ रही हैं। बहुतेरे लोगों की तो जहरीली शराब पीने से आंख की रोशनी तक चली गयी है। गैर सरकारी सूत्रों की मानें तो अभी तक राज्य में जहरीली शराब पीने से तकरीब कई सौ लोगों की मौत हो चुकी है। 

ऐसा जानकार लोगों के अलावा विरोधी दलों द्वारा भी दावा किया जा रहा है और इसके उलट सरकार और प्रशासन मरने वालों की असली तादाद जनता के सामने न आ पाये, यह छिपाने का हरसंभव भरसक प्रयास कर रही है। यह सब उस हालत में हो रहा है जबकि राज्य में नशाबंदी लागू है। अब सवाल यह है कि राज्य में पूर्ण नशाबंदी लागू होने के बावजूद शराब की आपूर्ति कहां से हो रही है। गौरतलब है कि यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि शराब की आपूर्ति राज्य में कहां से होती है और फिर उसे किस तरह राज्य के दूसरे जिलों के ग्रामीण अंचल में पहुंचाया जाता है। 

इसमें नेता, प्रशासन, पुलिस और ग्राम पंचायत स्तर तथा वहां के चौकीदार तक की मिलीभगत जगजाहिर है। सरकार में बैठे राजनेताओं तक से यह तथ्य छिपा नहीं है। मृतकों के परिजन भी इसकी पुष्टि करते हैं कि राज्य के शहरी इलाकों की बात दीगर है, ग्रामीण इलाकों में भी आज मात्र फोन करने से ही घर-घर शराब माफिया के लोग शराब पहुंचा दिया करते हैं और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। जिला प्रशासन और पुलिस इससे भलीभांति वाकिफ है। इसमें गांव के चौकीदार तक शामिल हैं। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता।

विडम्बना तो यह है कि राज्य के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का जहरीली शराब पीने से हुई मौतों के बारे में कहना है कि लोगों की गलत चीज पीने से मौतें हुई हैं। यह कहना कितना हास्यास्पद है और राज्य के मुखिया द्वारा इस बाबत यह कहा जाना समझ से परे है। उनके बयान पर टिप्पणी करते हुए राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि राज्य के लोग गलत चीज ना पीयें, यह राज्य के मुखिया की जिम्मेवारी है कि वे राज्य के लोगों को पीने के लिए अच्छी चीज मुहैय्या करायें और जब राज्य में पूर्ण शराबबंदी है, उस हालत में राज्य में शराब कहां से आती है। 

यह साबित करता है कि राज्य में शराबबंदी केवल नाम की है। यहां  पर व्यवस्था नाम की कोई चीज है ही नहीं। पुलिस, प्रशासन और अधिकारियों-कर्मचारियों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। जहरीली शराब सेआये दिन हो रही मौतों से ऐसा लगता है कि यह रोग अब छोटी महामारी का रूप ले चुका है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कहते हैं कि यह कितना शर्मनाक है कि राज्य के मुखिया नितीश कुमार प्रशासन, पुलिस और शराब माफिया पर कार्यवाही के बजाय पीने वालों को कडा़ सबक सिखाने की बात करते हैं। सरकार में शामिल भाजपा प्रवक्ता श्री निखिल आनंद कहते हैं यह विपक्ष की साजिश है। 

खनन मंत्री जनक राम भी निखिल आनंद की हां में हां मिलाते हैं। पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद कहते हैं कि किस किस गांव में सरकार पुलिस रखेगी। घर वालों की जिम्मेवारी है कि वे इस बारे में पुलिस को सूचना दें। उसके बाद कार्यवाही न हो, तब सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस बारे में पश्चिमी चंपारण जो राज्य भाजपाध्यक्ष संजय जायसवाल और उप मुख्यमंत्री रेणु कुमारी का गृह जिला है, वहां के दक्षिणी तेल्हुआ गांव की महिलाओं का आरोप है कि पुलिस को सूचना देने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती। हमारी कोई मदद नहीं करता। उल्टे हमारे आदमी हमसे मारपीट और करते हैं। असलियत यह है कि राज्य में आने वाले समय में पंचायत चुनाव होने वाले हैं जिसकी वजह से राज्य में शराब का धंधा जोरों पर चल रहा है। उसपर कोई रोक टोक नहीं है। 

वहीं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष श्री संजय जायसवाल कहते हैं कि राज्य में शराबबंदी का कानून तो सख्त है लेकिन लोग जागरूक नहीं हैं और पुलिस-माफिया पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। राज्य के काबीना मंत्री श्री अशोक चौधरी का कथन भी समस्या से पल्ला झाड़ने जैसा है। उनका कहना कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह मौतें किस वजह से हुई हैं। उसके कारणों का पता लगाया जाना बाकी है। जद यू का दावा है कि राज्य में शराबबंदी का कानून काफी हदतक प्रभावी है और इसे और प्रभावी बनाया जायेगा। जबकि आबकारी मंत्री श्री सुनील कुमार का कहना है कि यह जांच का विषय है। इसके लिए जांच टीम गठित की जा रही है। थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। वह इसके लिए जिम्मेदार आबकारी निरीक्षक, अधिकारियों पर क्या कार्यवाही हुई, इस बारे में मौन साधे हैं।

गौरतलब है कि राज्य में जहरीली शराब पीने से हुई मौतों की यह घटना 2016 के बाद दूसरी है। 2016 में गोपालगंज के खजूरबन्नी गांव में जहरीली शराब पीने से तकरीब  21 लोगों की मौत हुई थी। इस मामले में इसी साल स्थानीय अदालत ने 9 को फांसी व 4 को आजीवन कारावास की सजा दी है। इनमें चार महिलाएं भी शामिल हैं। 31 जनवरी से 31 अक्टूबर तक जहरीली शराब से राज्य में तकरीब 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि सरकार यह संख्या केवल 40 ही बताती है । यही नही 187 लाख लीटर अवैध शराब की बरामदगी का सरकार दावा करती है। 

जहां तक राज्य में इस दौरान शराब की आपूर्ति का सवाल है, हरियाणा से सबसे अधिक शराब की आपूर्ति बिहार में होती है।सबसे पहले पश्चिमी बिहार को लें, यहां के छपरा, सिवान, गोपालगंज, चंपारण,  मुजफ्फरपुर, सासाराम आदि जिलों में अधिकतर 75 फीसदी हरियाणा से  और 25 फीसदी उत्तर प्रदेश से शराब की आपूर्ति होती है। उत्तरी बिहार में उत्तर प्रदेश और नेपाल से और पूर्वी बिहार में पश्चिम बंगाल और ओडिसा से शराब की आपूर्ति होती है। इन राज्यों से यहां सड़क और नदियों के रास्ते शराब की आपूर्ति की जाती है। इसकी जानकारी नेता, पुलिस और प्रशासन को बखूबी है। फिर भी इसकी रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं है। 

सबसे बडी़ बात तो राज्यों की सीमाओं पर चौकसी की है। भ्रष्ट मशीनरी के रहते इस पर अंकुश की बात बेमानी है। फिर जहांतक शराब के जहरीले होने का सवाल है, भट्टी में कच्ची शराब बनाने वाले इसमें नशे के लिए जानवरों को लगाने वाले इंजैक्शन लगाते हैं, और तो और वे इसमें कुत्ते मारने वाले पाउडर और इंजैक्शनों तक का इस्तेमाल करते हैं। उनके लिए शराब ज्यादा से ज्यादा नशीली हो, इसलिए वे इन चीजों का इस्तेमाल करते हैं।इसके लिए कौन जिम्मेदार है। यह जानते-समझते सरकार का मौन क्या दर्शाता है। गौर करने वाली बात यह भी है कि शराब पीने वालों को नशा चाहिए, वह भी सस्ता, इस चाहत की खातिर वह ऐसी शराब लेकर पीते हैं। ऐसी शराब पीकर नतीजन मौत को वह खुद दावत देते हैं।

फिर सुशासन, बेरोजगारी के खात्मे और भ्रष्टाचार पर अंकुश के दावे कुछ भी किये जायें, असलियत में इन दावों में कोई सत्यता नहीं है। समाजविज्ञानी और शिक्षाविद डा. जगदीश चौधरी की मानें और यदि पश्चिमी बिहार की ही बात करें, तो यहां का आलम यह है कि यहां के जिलों में एक भी उद्योग नहीं है। नतीजन यहां के नौजवानों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है। बीते सालों में भले वह महिलाओं की स्थिति का सवाल हो, उसमें सुधार हुआ है। घरेलू हिंसा का सवाल हो, उसमें कमी आई है। 

पारिवारिक समरसता का जहांतक सवाल है, उसमें भी सुधार हुआ है और अपराधों में भी कमी दिखायी दे रही है। लेकिन नशाबंदी के साथ नशा मुक्ति केन्द्रों के खोलने का सवाल अनसुलझा ही रहा। जो खोले जाने बेहद जरूरी थे। नशे के आदी लोगों की काउंसलिंग की जानी जरूरी थी, उनको नशे से होने वाली हानियों-दुष्प्रभावों के बारे में बताना जरूरी था। इस बारे में अभियान चलाया जाना चाहिए,जो नहीं हुआ। केवल किसी क्षेत्र या राज्य विशेष में नशाबंदी लागू करने से कुछ नहीं होने वाला। यह व्यावहारिक भी नहीं है। इसके लिए पूरे देश में कानून लागू करना होगा। 

जागरूकता अभियान चलाना होगा। आजादी के बाद हमारे देश में राज्यों में नशाबंदी लागू करने का इतिहास काफी पुराना है और वहां नशाबंदी के बाबजूद शराब की आपूर्ति और पीने वालों पर अंकुश की बात सपना ही रहा है। तमिलनाडु, गुजरात आदि का इतिहास प्रमाण है कि यह मात्र एक दिखावा और नारा बनकर रह गया है। शराबबंदी वाले राज्यों में नेता तक शराब पीते पाये गये हैं, जनता शराब पीकर मरती भी रही है वह चाहे जहरीली हो या फिर सस्ती कच्ची शराब। यह अब इतिहास बन चुका है। नेतृत्व में दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव, भ्रष्ट मशीनरी के चलते और इस दिशा में जागरूकता के अभाव के बीच नशाबंदी कारगर हो पायेगी, इसमें संदेह है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)