फिर न बने मासूम, वृद्ध और बीमारों की मौत का कारण हमारी चंद घंटों की खुशी...!

लेखक : अतुल मलिकराम 

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पटाखों की गगनभेदी आवाज़, और हजारों की तादाद में जान बचाकर एक साथ उड़ते पक्षी.... चकाचौंध भरी रोशनी, कानों को परेशान कर देने वाली आवाज़ें और आतिशबाजी.... ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जिन्हें हम बहुत ही ज्यादा मजेदार मानते हैं, लेकिन मूक जानवरों, पक्षियों और बुजुर्गों के लिए ये किसी बुरे सपने से कम नहीं हैं। पटाखे जलाने को ही खुशी मनाने का जरिया मान बैठे हम, हमारे अवाक पालतू जानवर और अन्य पशु-पक्षियों की पीड़ा की अनदेखी कुछ यूँ करते हैं, जैसे कि हमें इसका अंदाज़ा तक न हो। क्या पटाखे जलाना ही खुशी मनाने का माध्यम मात्र है? दूसरे पहलु को देखें, तो महीनों की खून-पसीना एक कर कमाई गई मोटी रकम जलाकर कोई कैसे खुश हो सकता है?

सनातन धर्म के सबसे बड़े पर्वों में से एक, दिवाली प्रभु श्रीराम के चौदह वर्ष का वनवास काटने के बाद अयोध्या वापसी की खुशी में सदियों से मनाई जा रही है और अनंत काल तक मनाई जाती रहेगी। प्रभु के घर लौटने की खुशी में शहर वासियों द्वारा लाखों दीप प्रज्वलित कर रोशन किया गया आयोध्या नगरी का यह उजियारा कब तलक पटाखों की चकाचौंध और शोरगुल रुपी अंधियारे में तब्दील हो गया, इसका जवाब इंसान तो कतई नहीं दे सकता है। इसका जवाब देते हैं वे बेज़ुबान, जो इन पटाखों की आवाज़ से इधर-उधर जा छिपने और अपनी जान बचाने को दिख पड़ते हैं, और यहाँ तक कि कई बार अपनी जान तक गवाँ बैठते हैं। 

किस ग्रंथ में लिखा है कि भगवान महज़ इंसानों के हैं? क्या अन्य प्राणियों का भगवान से कोई संबंध नहीं है? यदि नहीं, तो गिलहरी, गाय, सर्प, कुत्ते, शेर, मोर, गरुड़, हाथी, बन्दर, मूषक जैसे सैकड़ों प्राणियों के सूत्र पौराणिक कथाओं में क्यों मिलते हैं? इससे तो यही सिद्ध हुआ न कि भगवान हर एक प्राणी के हैं, लेकिन इंसान यह बात कहाँ मानता है? माँ बनने वाली हथिनी, उसकी कोख में पल रही नन्हीं-सी जान और मासूम गाय के जीवन का अंत करने वाला इंसान ही तो है। ये मुद्दे प्रमुखता से उछाले गए तो इसकी बात की जा रही है, लेकिन जो मुद्दे रोशनी में आते ही नहीं, उनका क्या? कुछ लोग पटाखों का उपयोग आवारा कुत्तों और अन्य जानवरों से मज़ाक करने के लिए करते हैं और व्यावहारिक रूप से उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। 

भगवान राम ने कभी-भी अन्य प्राणियों को कष्ट पहुँचाकर उनकी वापसी का जश्न मनाने के लिए नहीं कहा। एक बार गौर जरूर करें कि क्या उन्होंने ऐसा कहा है? वे हमारे आराध्य हैं, और हमेशा रहेंगे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने कभी किसी को दुःख पहुँचाने की मंशा नहीं रखी, फिर हम क्यों अपने ही आराध्य के नाम की आड़ में किसी को तकलीफ देने और यहाँ तक कि पशु-पक्षियों और हजारों की तादाद में सूक्ष्मजीवों की जान लेने का पाप अपने सिर मोल ले रहे हैं? हम इस शुभ अवसर को हर वर्ष जानवरों, पक्षियों और बुजुर्गों के लिए एक दर्दनाक अवधि बना देते हैं। पंखों वाली प्रजातियाँ तेज रोशनी के अचानक फटने से गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं। हर वर्ष, आसमान में जाकर चमकने वाले पटाखे कई पक्षियों को मारने के हथियार बन जाते हैं, जबकि कई बार उनके पंख या शरीर के अन्य भाग जल जाते हैं। 

कैसी विडंबना है कि हम किसी ऐसी चीज का समर्थन करके बुराई की हार का जश्न मनाते हैं, जो अन्य प्राणियों के लिए तकलीफ तथा मौत का कारण है। प्रभु श्रीराम अपनी सम्पूर्ण प्रजा के रक्षक हैं, चाहे वे पशु हों, पक्षी हों या लोग हों। उन्होंने सदैव सभी के साथ न्याय किया। क्या हमें उनके उदाहरण का अनुसरण नहीं करना चाहिए और कम से कम अपने सभी साथियों के प्रति विचारशील नहीं होना चाहिए? हमें इन बेज़ुबानों की आन बरकरार रखने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर कदम उठाने की जरुरत है। दीवाली को हम बिना किसी प्रजाति को नुकसान पहुँचाए और भी कई तरीकों से मना सकते हैं। इस दीपावली, आइए पटाखों के बजाए दीप जलाने की सदियों पुरानी प्रथा को ही जीवंत रखते हैं, दीपों के पर्व को जीवंत रखते हैं, और अन्य प्राणियों को भी 'राम राज्य' देते हैं..!! (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)