लेखक : लोकपाल सेठी
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनितिक विश्लेषक)
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जब 2014 में आन्ध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना बनाया गया तो अविभाजित आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद तेलंगाना के हिस्से में आया थी। उस समय आंध्रप्रदेश में तेलगुदेशम पार्टी की सरकार थी तथा इसके सुप्रीमो चन्द्रबाबू नायडू राज्य के मुख्यमंत्री थे। उस समय यह पार्टी केंद्र में बीजेपी नीत एन डी ए का हिस्सा थी। नायडू सरकार ने राज्य के अमरावती इलाके को नई राजधानी बनाने के लिए चुना। उन्होंने यह दावा किया की यह एक हरित और विश्व स्तरीय राजधानी होगी। उनका कहना था कि इसके लिए विश्व बैंक से कर्जा लिया जायेगा तथा केंद्र सरकार भी नई राजधानी के निर्माण के लिए विशेष आर्थिक सहायता देगी। यह भी तय किया गया कि जब तक अमरावती पूरी तरह से राजधानी के रूप में विकसित नहीं होती आंध्र प्रदेश की सरकार हैदराबाद से काम करती रहेगी।
सत्तारूढ़ दल के रूप में तेलेगु देशम पार्टी चाहती थी कि मई 2019 में होने वाले विधान सभा चुनावों से पहले नई राजधानी, पूरी तरह से तो नहीं लेकिन इतनी विकसित हो जाये कि सभी सरकारी कार्यालय वहां बन जाएँ। लेकिन किन्हीं कारणों से राज्य सरकार को विश्व बैंक से क़र्ज़ नहीं मिल पाया और न ही केंद्र से उतनी विशेष आर्थिक सहयता नहीं मिल सकी जितनी उम्मीद की गयी थी। लेकिन फिर भी सरकार ने नई राजधानी के निर्माण के लिए तेज़ी से भूमि अधिग्रहण किया और निर्माण कार्य शुरू कर दिया।
निजी क्षेत्र की निर्माण कंपनियों ने भी वहां माल आदि बनाने और आवासीय काम्प्लेक्स बनाने के लिए बड़े स्तर पर किसानो से उनकी भूमि खरीदी। इसके चलते इस इलाके में जमीनो के दाम आसमान को छूने लगे। सरकार ने भी उन किसानों, जिनकी भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा था, से वायदा किया कि उनकी जमीन बाज़ार भाव से ली जाएगी। अगर वे चाहें तो उनकी जमीन के चलते कमर्शियल इलाके में भी जमीन प्लाट दिए जायेंगे। चुनाव आते आते सचिवालय भवन तथा कई और सरकारी भवन बन गए. मुख्यमंत्री का सरकारी आवास भी न केवल तैयार हो गया बल्कि नायडू साहेब ने वहां बड़े स्तर पर पूजन करवा गृह प्रवेश भी कर लिया।
लेकिन राजनीतिक माहौल के चलते तेलगु देशम पार्टी फिर सत्ता पर काबिज़ नहीं हो पाई। कांग्रेस से अलग हो कर बनी वाईएसआर कांग्रेस भारी बहुमत जीती वाईएस जगन मोहन रेड्डी राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। पद ग्रहण करने के बाद उन्होंने जो घोषणाएं की उनमें एक यह भी थी कि अमरावती राज्य की राजधानी नहीं होगी। सत्ता का विकेंद्रीकरण करने के लिए तीन राजधानियां बनेगी। विशाखापत्तनम में कार्यपालिका, यानि सरकार का मुख्यालय होगा। अमरावती विधायिका की राजधानी होगी यानि यहाँ विधानसभा बनेगी।
इसी प्रकार न्यायपालिका, यानि राज्य का हाईकोर्ट, करनूल में होगा। कुछ समय बाद सरकार ने विधान सभा से तीन व विधेयक पारित करवा लिए जिसमें एक अमरावती का राजधानी का दर्ज़ा खत्म करना भी था। इसके चलते अमरावती में जमीनों के दाम अर्श से फर्श पर आ गए। हाई कोर्ट में इन तीन कानूनों को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दाखिल की गयी जिसके चलते तीन राजधानियां बनाने के काम कोई प्रगति नहीं हुई। लेकिन इस महीने जब कोर्ट ने इस पर नियमित सुनवाई का निर्देश दिया तथा ऐसा लगा कि इस मामले पर जल्दी फैसला सुनाया सकता है।
कानूनी विशेषज्ञ इस राय के थे की कोर्ट तीनो विधेयकों को अवैध घोषित कर सकता है। इसी को देखते हुए मुख्यमंत्री रेड्डी नेआनन फानन घोषणा कर दी कि सरकार तीन राजधानियां बनाने का प्रस्ताव वापिस लेती है। यह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी दवारा तीन कृषि कानून वापिस लेने के घोषणा की तरह था। चूँकि विधान सभा अभी चल रही थी इसलिये तीन राजधानियां बनाने के कानून को वापिस ले भी लिया गया। वास्तव में जिस तीन जजों वाली खंड पीठ में मामले की सुनवाई हो रही थी उनमें से दो ने अमरावती राजधानी इलाके में रिहायशी भू-खंड ख़रीदे थे इसलिए यह मान कर चला जा रहा था कि खंडपीठ तीन राजधानियां बनाने वाले तीन कानूनों को रद्द करने का निर्णय देगा। इसकी भनक पाते ही मुख्यमंत्री रेड्डी हैदराबाद में उपलब्ध अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों से विचार विमर्श किया और तीनों कानून वापिस लेने का निर्णय किया। रेड्डी ने इस मामले में हार नहीं मानने की मुद्रा में कहा कि सरकार ने तीन राजधानियों के प्रस्ताव को पूरी तरह से नाकारा नहीं है। वे जल्दी ही इस बारे में एक नया प्रस्ताव लायेंगे।
जानकारों को कहना है वे अब अमरावती के स्थान पर विशाखापटनम को राजधानी बनाना चाहते है लेकिन इसमें भी कई कानूनी पेच है। अमरावती में हाई कोर्ट की स्थापना राष्ट्रपति, यानि केंद्र सरकार के आदेश पर हुई तथा इसे राष्ट्रपति ही रद्द कर सकते न कि कोई राज्य सरकार। राज्य सरकार का लगभग आधा कार्यकाल पूरा हो चुका है इसलिए बचे हुए समय में नई राजधानी बन जाना असंभव सा लगता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)