लेखक : लोकपाल सेठी
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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लगभग सात साल पहले जब आंध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना बनाया गया था तब तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के चंद्रशेखर राव, जो बाद नए बने प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, चाहते थे कि चित्तूर का इलाका, जहाँ विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर है, तेलंगाना में आये। लेकिन भाषाई आधार पर हुए इस विभाजन के चलते यह संभव नहीं था। नए बने तेलंगाना प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह संकल्प किया कि राज्य में भी तिरुपति जैसा एक विशाल मंदिर बनेगा।
उनकी सरकार ने जल्दी ही नए मंदिर की दिशा में काम भी शुरू कर दिया। हैदराबाद से लगभग 70 किलोमीटर दूर ययाद्री-भुवनगिरी जिले में एक ऊंची पहाडी पर पौराणिक महत्व का ययाद्री लक्ष्मी नरसिंह मदिर है, जो लगभग हज़ार वर्ष पुराना बताया जाता है। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार ने इसी मदिर को विशाल और भव्य रूप में विकसित करने का निर्णय किया। उस समय यह मंदिर मात्र 25,00 वर्गफुट में ही था, लेकिन इसकी वास्तु कला गज़ब की थी तथा मंदिर ठीक ठाक स्थिति में था। एक समिति का गठन किया गया जिसका काम इस प्रस्तावित भव्य मंदिर का प्रारूप तैयार करना था। इसकी लागत का भी अनुमान लगाया जाना था। समिति ने जो रिपोर्ट दी उसके अनुसार, इस मंदिर के आस पास 9 और मंदिर बना कर बड़ा मंदिर परिसर करने का सुझाव दिया गया।
नया मदिर लगभग 15 एकड में बनाया जाना था। लेकिन समिति ने कुल मिलाकर 19,00 एकड जमीन का अधिग्रहण करने की सिफारिश की। समिति का कहना था की इस पर तिरुपति मंदिर के समान संस्थाएं बनाये जाने को सामने रखते हुए इतनी भूमि की जरूरत पड़ सकती है . नया मंदिर सरकार ने बनाना था इसलिए सरकार की ओर से 18,00 करोड़ रूपये केबजट का प्रावधान रखा गया। मंदिर का निर्माण 2016 में शुरू हुआ तथा इसे 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन कोरोना के चलते परियोजना में विलम्ब हो गया और अब यह अगले साल के मध्य में पूरा हो जायेगा। योजना के अनुसार ग्रेनाइट पत्थर से बनाने वाले सारे परिसर का मूल ढांचा 2018 के अंत तक पूरा कर लिया गया। इसके बाद मंदिर के दरवाजो तथा दीवारों पर चांदी की परत चढाने के काम शुरू हुआ। इस पर लगभर पौने दो टन चांदी लगी। बाद में छोटे गोपुरामों पर सोने की परत चढाने का काम शुरू हुआ। यह सब सरकारी खजाने से हुआ।
कुछ सप्ताह पूर्व चंद्रशेखर ने घोषणा की कि मुख्य मंदिर विमान गोपुरम (विशेष द्वार) को सोने से मढ़ा जायेगा। इसके लिए कुल 125 किलो सोने की जरूरत होगी जिसकी कीमत लगभग 65 करोड़ होगी। सोने की शुद्धता को बनाये रखने के लिए उन्होंने कहा कि यह सारा सोना भारतीय रिज़र्व बैंक से ख़रीदा जायेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह सोना लोगों के आर्थिक योगदान से ही ख़रीदा जायेगा। इसके लिए उन्होंने सरकारी अधिकारियों से आम लोगों तक पहुँचने को कहा। उन्होंने अपील की कि वे सोना दान करने केबजाये नकद राशि का योगदान दें। फिर भी लोगों ने सोना देने को ही प्राथमिकता दी। खुद मुख्यमंत्री राव और उनके परिवार ने सवा किलो सोना दान देने की घोषणा की। इसके साथ ही राज्य की कुछ बड़ी कम्पनियों ने 6 से दस किलो सोना देने की घोषणा की है। देश में धार्मिक स्थलों के कलशों और दरवाजों पर सोना मढने का काम सिखों के अमृतसर के स्वर्ण मदिर, यानि हर मंदिर साहेब, से शुरू हुआ। इसके लिए लिए लगभग 200 वर्ष तब पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने लगभग 17 लाख रूपये की “सोने दी सेवा“ की थी।
चूँकि दरवाजों और गोपुरम पर सोना मढना एक विशेष कला है जो सामान्य स्वर्णकारों को नहीं आती इसलिए इस मंदिर का निर्माण कार्य में लगे अधिकारियों ने तिरुपति के प्रबंध बोर्ड से संपर्क कर वहां से विशेषज्ञ भेजने को कहा। वहां से आये कारीगरों ने विमान गोपुरम पर ताम्बे की परत लगाने का काम शुरू कर दिया है क्योंकि ताम्बे के ऊपर ही सोने के परत मढी जाती है। उनका कहना है कि जब तक 125 किलो सोना नहीं आता तब तक ताम्बे के परत मढने का काम पूरा कर लिया जायेगा।
मंदिर के यह विमान गोपुरम लगभर 50 फुट ऊंचा होगा तथा कई किलोमीटर दूर से नज़र आयेगा। नज़दीक के मुख्य रेलवे स्टेशन सिकंदराबाद से आने-जाने वाले यात्री गाड़ी में बैठे-बैठे ही गोपुरम को देख सकेंगे। अभी तक जो कार्य पूरा हुआ है उसे देखते हुए यह मंदिर भी दक्षिण में दूसरे तिरुपति मंदिर से कम नहीं होगा। ग्रेनाइट पत्थर से बनायह देश का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)