लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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कोविड महामारी के चलते गत वर्षो में देश की अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगा। 2020-2021 में जीडीपी का 7.3 प्रतिशत का संकुचन हुआ। 2020-2021 में अर्थव्यवस्था पटरी पर आती दिखाई दी परन्तु सितम्बर में जीडीपी वही है जो दो साल पहले थी। महामारी के चलते भवन निर्माण, विनिर्माण, पर्यटन, होटल व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुए। लाकडाउन पाबंदियों से प्रवासी मजदूर बेरोजगार हो गये। नौकरियां कम हुई, छटनियां हुई, वेतन कम हुआ, लघु उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए। कृषि संबंधी गतिविधियां बेहतर मानसून से अप्रभावित रही। नरेगा ने ग्रामीण जीवन की गाड़ी चलाने में सहायता की। परिवहन, पर्यटन सेवाओं में जीवीए महामारी के पहले के स्तरों पर रहा।
गरीब तबको की आजीविका और आय में भारी व्यवधान उत्पन्न हुआ। राज्यों के घरेलू उत्पाद में संकुचन हुआ। व्यापार में मंदी, उत्पादन, मांग में कमी रही। पैट्रोल, डीजल के भावों में वृद्धि हुई। महंगाई चरम पर पहुंच गई, नवम्बर में थोक मंहगाई दर बढ़कर 14.23 फीसदी हो गई। यह 12 साल में सबसे ज्यादा है। वृद्धि का असर आम भारतीयो के जीवन पर पड़ रहा है। अनाज, साग सब्जी, फल की कीमत 15.50 फीसदी तक बढ़ गई। सब्जियों की कीमत 100 रूपये प्रतिकिलों से उपर पहुंच गई। खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ गई। 1970 तक देश खाद्य तेलों का निर्यात करता था, अब आयात कर रहा है। लघु व मझौले उद्योगों को सरकारी योजनाएं व प्रोत्साहन अपर्याप्त रहे। 43 प्रतिशत लोगों ने काम धाम बदल दिये। उपभोक्ता सामान सात से दस फीसदी मंहगे हो गये। नियोक्ताओं का मुनाफा कम होने पर तनख्वाहें कम हो गई। नये लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा, बेरोजगारी बढ़ गई। ईंधन व बिजली के दामों में 39.81 फीसदी वृद्धि हुई है। रूपया का अवमूल्यन हो गया। 14 फीसदी उपभोक्ता ब्रंाड बाजार से बाहर हो गये। मदद करने के मौजूदा सरकारी योजनाएं व प्रोत्साहन अपर्याप्त रहे। सरकार को 2022-23 तक इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना को बढ़ाना होगा, लाभ उठाने वाले उद्यमियों-दुकानदारों के लिए योग्यता मानदण्ड में छूट देनी होगी। असन्तोष का समय है, स्थिति आम भारतीयों और हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं है। वर्ष 2020 गिरावट का रहा, 2021 में मामूली बहाली हुई। सर्वाधिक वित्तीय संकुचन उत्तर प्रदेश व पंजाब रहा।
आईएमएफ का अनुमान है लघु अवधि में आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं भारत के पक्ष में है। 2021-22 व 2022-23 के दौरान भारत की जीडीपी में क्रमशः 9.5 और 8.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया। ओमिक्रोन के बाद के अनुमान कितने सही होंगे यह कहना मुश्किल है। चन्द दिनों में ही डेल्टा वेरियंट पर हावी हो चुका है वायरस। जहां ओमिक्रोन फैल रहा है वहां पुनः पाबंदियां लगाई जा रही है। चिकित्सा उपाय करने की जरूरत पड़ेगी। टीकाकरण को लेकर सरकार को फिर से अभियान मोड में आना होगा, तीसरा टीका बूस्टर डोज लगाना होगा।
प्रदूषित राजनीति से लोकतंत्र की सेहत बिगड रही है। देश की सुरक्षा पहले स्थान पर है, पड़ोसियों की नीयत ठीक नहीं है। सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकी कानून व्यवस्था भंग करते रहते हैं। भारत की सेना में एक लाख से अधिक पद रिक्त है। ऐसे में सुरक्षा प्रयत्न व जनकल्याणकारी कार्य साथ-साथ चलाने होंगे। विदेशी निवेश बढ़ाना होगा, आयात घटाकर निर्यात बढ़ाना होगा। अभी तो सरकार पैट्रोल-डीजल पर एक्साइज बढ़ाकर, मानटाइजेशन व निजीकरण कर वित्तीय साधन एकत्रित कर रही है। भूमाफिया सक्रिय है, आपराधिक गतिविधियां बढ़ रही है। असमानता बढ़ रही है, गरीबी बढ़ रही है, कुपोषण बढ़ रहा है। देश में टाप 100 कंपनियों ने पिछले 5 साल में 71 लाख करोड़ से अधिक संपत्ती अर्जित की है। रिलायन्स व अडानी की कंपनियां तेजी से बढ़ रही है, इनका रिटर्न 25 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि के हिसाब से रहा। रिलायन्स ने 2016 से अब तक 9.66 लाख करोड़ रूपया वैल्थ क्रिएट किया है। सरकार चाहे तो इन मसालों का समाधान निकल सकता है। शहरी विकास के लिए ट्रिलीयन डालर पूंजी निवेश की जरूरत है। कृषि व किसानों के मामलों की शीघ्र व सुविचारित फैसलों की आवश्यकता है। 2030 तक लगभग 59 करोड़ लोग भारत के शहरों में रह रहे होंगे, 27 करोड़ कामकाजी उम्र की आबादी में होंगे। शहरों में रोजगार की समस्याएं बढ़ेगी।
जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 7935 शहर थे जिनमें दस लाख से अधिक आबादी वाले 53 थे। भारत में ऐसे शहरों की संख्या 2030 तक 68 हो जायेगी। भारत में शहरी विकास की तरफ ध्यान नहीं है, मास्टर प्लानों का बार-बार उल्लंघन होता है। हर छठा शहरी झुग्गियों में रहता है, इनमें 40 प्रतिशत को तो उपचारित पानी भी नहीं मिलता। वायु गुणवत्ता सूचकांक में दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत में है। स्मार्ट सिटीज मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना अभी सफल नहीं हो रहे। शहरों के लिए 12 ट्रिलीयन डालर की आवश्यकता है, शहरों की वित्तीय हालत खराब है। एएसआईसीएस रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसदी शहर वेतन लागत हेतु राजस्व भी नहीं जुटा पाते।
सरकार को कारपोरेट को राहत देने की बजाय आम लोगों को राहत देने के बारे में सोचना होगा। महंगाई और बेरोजगारी के कारण देश में गरीबी बढ़ रही है। आम आदमी को कर्ज का सहारा बड़े पैमाने पर लेना पड़ता है। रिजर्ब बैंक को क्रिप्टो करेंसी मसले पर ध्यान देने की बजाय रोजगार बढ़ाने की नीति अपनानी होगी। पुलिस अनुसंधान में दोषियों को सजा मिले, यह सुनिश्चित करना होगा। पोषण व शिक्षा में असमानता रोकनी होगी। कुपोषण व भुखमरी के मामले में देश नीचे के एक दर्जन देशों में है। भूख सूचकांक में भारत दुनिया के 116 देशों में सात अंक गिरकर 101 वें स्थान पर है। पोषण व शिक्षा की असमानता सरकार के लिए वेकअप काल है। साधन सुविधा विहीन शिक्षण संस्थान शिक्षा के लक्ष्य को निराश कर रहे है। हर साल करोड़ो युवा जैसे तैसे उत्तीर्ण होकर आजीविका के लिए रोजगार की तलाश में घूमते रहते है। बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी के कारण भीड़ न्याय के खिलाफ खड़ी होती है। संसद व अन्य संवैधानिक संस्थाएं कमजोर व नाकारा बन रही है। स्वायत्त संस्थाओं में भरोसा समाप्त हो रहा है। मुफ्त योजनाएं व माफी योजनाओं में धन लुटाने के बजाय ठोस उत्पादक योजनाओं को पूरा करने पर व्यय किया जाना चाहिए।
2022 में सरकार को इन सब महत्वपूर्ण तथ्यों व स्थितियों पर विचार कर योजना बनाकर क्रियान्वयन करना चाहिए अन्यथा स्थिति बद से बदतर होती जायेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)