प्राचीन व धार्मिक नगरी होने से हजारों लोगों की जुड़ी है आस्था
शैलेश माथुर की रिपोर्ट
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सांभरझील (जयपुर)। शीतकालीन सत्र में विशेषकर पौष माह में यूं तो सभी जगहों पर पौषबड़ा प्रसादी का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राजधानी व इनकी कुलदेवी मां शाकम्भरी का मंदिर, दैत्य गुरू शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के नाम से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पर अनेक देवी देवताओं के मंदिरों के अलावा सांभर में करीब 110 से अधिक मंदिरों का लम्बाचौड़ा इतिहास है। प्राचीन नगरी के अलावा इसको धार्मिक नगरी का कहलाने का दर्जा इसलिये भी प्राप्त है कि यहां पर सभी धर्मों के अपने अपने आस्था के प्रमुख केन्द्र है, जो आपसी सोहार्द व भाईचारे को भी कायम रखे हुये है। संत दादू दयाल की तपोभूमि होने से भी सांभर दादूपंथियों व इनमें आस्था रखने वाले सभी वर्ग के लोगों का गहरा जुड़ाव भी है।
पौषमाह में यहां राजपथ स्थित ढाढो की गली में बालाजी मंदिर, देवयानी सरोवर पर स्थित जागेवश्र दरबार, गंगामाता मंदिर, राधागोविन्द मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, गणेश मंदिर, तपस्वी जी का आश्रम, संत सरजूबाबा की बगीची, सब्जी मण्डी के नजदीक भैंरू जी मंदिर, धानमण्डी स्थित बालाजी मंदिर, डिप्टी ऑफिस के पास तलाई वाले बालाजी में हुये पौषबड़ा प्रसादी का भोग हरवर्ष लगाया जाता है। इस मौके पर सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं को पंगत प्रसादी दी जाती है तो अनेक लोगों की ओर से दोना प्रसादी दी जाती है। यहां ढाढो की गली में माैजूद बालाजी मंदिर के पुजारी कैलाशचन्द स्वामी व सत्यनारायण स्वामी की ओर से शनिवार को पौषबड़ा प्रसादी का आयोजन किया गया। राकेश स्वामी ने बताया कि इस मौके पर मंदिर में पूजा अर्चना की गयी तथा बालाजी का भव्य श्रंगार कर लोगों को पंगत प्रसादी दी गयी।