लेखक : लोकपाल सेठी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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कर्नाटक की बीजेपी सरकार अपने हिंदूवादी एजेंडे को अगले विधान सभा चुनावों से पूर्व कार्यरूप देने के कोई कसर नहीं रखना चाहती। इस पार्टी के पिछले मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा के काल में राज्य में गौहत्या पर पाबंदी का कडा कानून बनाया गया। वर्तमान मुख्यमत्री बसवराज बोम्मई, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठ भूमि वाले नहीं है और जनता दल से बीजेपी में आये है, पार्टी के इस हिन्दू एजेंडे को तेजी से आगे बढाने में लगे है।
हाल में विधानमंडल के अधिवेशन में उन्होंने धर्मांतरण विरोधी विधेयक विधान सभा में पार्टी करवा लिया। चूँकि विधान परिषद् में बीजेपी के पास बहुमत नहीं था इसलिए उसे इस सदन में पेश नहीं किया गया। अब इसे अगले यानि बजट अधिवेशन में पेश किया जायेगा जब इसके पास विधान परिषद् में बहुमत होगा। हाल में इस ऊपरी सदन की 25 सीटों पर हुए द्विवार्षिक चुनावो के बाद बीजेपी की पास सदन में इतने सदस्य हो जायेंगेकि पार्टी की सरकार सभी तरह के कानून पारित करवा सकेगी। नये सदस्यों का कार्यकाल 5 जनवरी से शुरू हो गया है तथा बीजेपी सरकार विधान मंडल के बजट स्तर में सरकार इस विधेयक पारित करवा लेगी।
विधान परिषद् में बहुमत की स्थिति पा लेने को सामने रखते हुए मुख्यमंत्री बोम्माई ने अब बजट स्तर में सरकारी नियंत्रण वाले सभी मंदिरों को, ट्रस्ट अथवा इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं को देने का निर्णय किया है।
कर्नाटक तथा पडोसी राज्य तमिलनाडु में हिंदूवादी संगठन प्राचीन अथवा पुराने मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण समाप्त कर इनका प्रबंधन मंदिर के न्यासों को दिये की मुहीम चल रही हैं। उधर विश्व हिन्दू परिषद् तथा इससे जुड़े संगठन लम्बे समय से यह मांग करते आ रहे कि देश में कही भी मंदिरों का प्रबंधन और संचालन सरकारों के हाथ में नहीं होना चाहिए। यह काम मंदिर से जुड़े न्यासों का होने चाहिए। हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड को भंग कर प्रदेश के 51 मंदिरों का नियंत्रण मंदिरों के न्यासियों को दे दिया। इन मंदिरों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एंड यमुनोत्री मंदिर शामिल है।
पिछले दिनों कर्नाटक में राज्य बीजेपी की कार्यकारणी की बैठक के बाद मुख्यमंत्री बोम्माई ने कहा कि उनकी सरकार विधान मंडल के बजट स्तर में एक कानून ला कर बड़ी संख्या में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण खत्म कर दिया जायेगा तथा इन मंदिरों का प्रबंधन मंदिरों के न्यासियों को दे दिया जायेगा। रियासत काल में दक्षिण के राज्यों में मंदिरों का प्रबंधन राजा यानि राज दरबार के हाथ में होता था। ब्रिटिश सरकार ने इसे जारी रखा क्योंकि इन मंदिरों में चढ़ावे के रूप बहुत बड़ी राशि आती थी। मंदिरों के रख रखाव पर खर्च करने के बाद भी राज्य सरकार के पास काफी राजस्व आ जाता था।
दक्षिण के तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलगाना और आंध्र प्रदेश में ऐसे मंदिरों की संख्या कई हज़ार है अकेले कर्नाटक में ही सरकारी नियंत्रण वाले मंदिरों की संख्या 35,000 से भी अधिक है। इन मंदिरों को चढ़ावे से मिलने वाली राशि के आधार पर तीन श्रेणियों में रखा गया। सरकारी आंकड़ो के अनुसार, मंदिरों के रख रखाव तथापुजारियों को वेतन आदि देने के बाद राज्य सरकार को लगभग 600 करोरूपये की सालाना राशि मिलती है। इनका प्रबंधन सरकार का (राजस्व) विभाग करता है। मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण खत्म करने के लिए तर्क दिया जा रहा है कि मंदिरों पर सरकार के नियंत्रण से और उनकी ख़राब देख रेख के कारण लोगों की आस्था को चोट पहुचती है। इसके अलावा अब सरकार को अन्य स्रोतों ने इतना राजस्व मिल जाता है कि उसे मंदिर के चढ़ावे की राशि की जरूत नहीं।
राज्य में कांग्रेस के नेताओं ने सरकार की इस मंशा का अभी से विरोध करना शुरू कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार का दावा है कि यह विधेयक किसी भी हालत में विधान मंडल में पारित नहीं होने दिया जायेगा। अगर सरकार ने किसी तरह पारित भी करवा लिया तो अगले चुनावों के बाद सत्ता में आने वाली कांग्रेस सरकार इस कानून तथा ऐसे ही अन्य हिंदूवादी कानून वापिस ले लेगी।
शिव कुमार का कहना है कि सरकार ने इन मंदिरों के निर्माण तथा रख रखाव पर करोड़ा रूपये खर्च किये हैं। अरबों की कीमत वाले ये संपतियां निजी हाथों को दिए जाने का कोई औचित्य नहीं हैं। उनका आरोप इन मंदिरों पर सकारी नियंत्रण खत्म होने के बाद इनके प्रबंधन के लिए जो ट्रस्ट बनायेगी इसमें अपने लोगों को भर लेगी। इस प्रकार अरबों की यह सम्पति पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विश्व हिन्दू परिषद् और उनसे जुड़े संगठनों के हाथ चली जायेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)