(से.नि. उपनिदेशक, डीआइपीआर एवं सदस्य, राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर)
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जन संचार एवं वैज्ञानिकं पत्रकारिता एक सिक्के के दो पहलू है। यह विषय आज के दौर में एक बड़ी चुनौती है। कारण कि वर्तमान समय में नित नये परिवर्तन और सोशल मीडिया ने दुनिया को समेटकर रख दिया है। फिर भी हर चैनल पर वो चाहे फिल्म हो या सीरियल या समाचार,विज्ञान एवं तकनीकी जानकारी के बजाए सनसनीखेज अंधविश्वास रुढिवादिता सतत रुप से ऐसे दिखाये जाते है मानो वह सच हो।
तमाम मीडिया यह क्यों नहीं दिखाता कि प्राकृतिक शक्तियां सत्य है किन्तु उनका पूजा पाठ से कोई लेना देना नही है।जो बीडा मानवतावादी विश्व समाज विचारधारा के संस्थापक किशनसहाय ने उठाया है कि हमें अंधविश्वास मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त, परंपरागत धर्मविहीन, जातिविहीन, नस्लभेद मुक्त, साहसी, शिक्षित, स्वस्थ और उच्च नैतिक मूल्यों वाले मानवतावादी समाज के निर्माण को अपना प्रमुख लक्ष्य बनाना चाहिये। इस काम में सभी तरह के मीडिया का सकारात्मक सहयोग जरुरी है। अभी हमने 73वां गणतंत्र दिवस समारोह मनाया, एक दूसरे को बधाई दी, किंतु जहां हमारा पड़ौसी देश चीन विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र के साथ हर क्षेत्र में अमेरिका सहित पश्चिमी देशो को चुनौती दे रहा हैं वही हम धार्मिक अंधविश्वासों में डुबकी लगाकर हर साल 20- 30 साल मे एक नया झूठा, भ्रमित चमत्कार खोज लातेे है।
साथ ही कई धार्मिक कटटरपंथी संगठन खडा कर लेते है। सही मायने मे धार्मिक अंधविश्वास परवरिश में पीढी दर पीढी आगे बढ रहे है और नई पीढ़ियों को भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दूर रख रहे है। पत्रकार की लड़ाई अंधविश्वासो के खिलाफ कहीं दिखाई भी देती है तो आधे मन से, इसके पीछे कई कारण हो सकते है। क्योंकि हम सभी भारतीय जातिगत भेदभाव, छुआछूत से भी चारो तरफ से घिरे हुए है। चाहे हम कहे कि पूरा विश्व ही हमारा परिवार है परंतु ज्यादातर लोग परिवार तो छोड़ो समाज का आशय भी भारतीय समाज से न लेकर जाति से ही लेते है। नैतिक मूल्यों की कमी की वजह से यहां बहुत से झूठे लोग बेईमानी कर तेजी से पनप रहे है और अनेक ईमानदार सच्चे लोग हासिये पर रह कर दु:ख उठा रहे है।
मीडिया के साथ-साथ हम सब का यह फर्ज होना चाहिये कि अगर देश को समानता के आधार पर तेजी से समृदि के रास्ते पर लाना है तो हमें मानवतावादी विश्व समाज विचारधारा को आत्मसात कर एक लक्ष्य बनाकर तेजी से धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ जंग लड़नी होगी।
हमें खुशी है कि अब हमारे देश के बहुत से लोगों एवं अधिकतर युवाओं को यह एहसास हो रहा है कि धार्मिकता और अंधविश्वासों के दम पर हम सुपरपावर नहीं बन सकते, इसलिए अब तेजी से वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना रहे है। अंधविश्वास से झूठी कल्पनाएं,बातें या मान्यताएं जैसे ईश्वर, अल्लाह, गॉड, स्वर्ग नरक, आत्मा, देवदूत, देवी देवता, भूत, प्रेत, जिन्न आदि। इनका अस्तित्व नहीं होने के बावजूद भी बहुत से लोगों द्वारा इनको हजारों वर्षो से सत्य माना जा रहा है। आपस में बोले गये झूंठ को अंधविश्वास नहीं बल्कि झूठ ही कहते है।
मानवतावादी विश्वसमाज विचारधारा के प्रणेता किशनसहाय जी आईपीएस का कहना है कि हमे आर्थिक सहायता,सहयोग करने वाले हर व्यक्ति की सराहना करनी चाहिए लेकिन बेईमानी करके या स्वार्थवस किया गया आर्थिक सहयोग निस्वार्थ ईमानदारी की तुलना मे तुच्छ होता है। हालांकि ईमानदारी की शुरुआत उपर से होने पर ही ज्यादा प्रभावशाली होती है। इस विश्वविख्यात विचारधारा के प्रचार प्रसार में गजराज भारती का अटूट सहयोग है।
जब भी किसी जाति धर्म विशेष के लोग दादागिरी का व्यवहार करते है तो अन्य जातियां, धर्मो के लाग उनसे चिढते है और उनसे दूरिया बना लेते है जिससे उस जाति धर्म विशेष के लोग अलक थलग पढ जाते है। प्रजातांत्रिक देश में किसी जाति धर्म विशेष का अलग थलग पड जाना उसकी राजनीतिक हार होती है। मेरा विश्वास है कि जैसे-जैसे मीडिया एंव लोगों को यह एहसास होता जाएगा कि हमारे देश का विज्ञान तकनीकी में पिछडेपन का कारण एक मात्र धार्मिक अंधविश्वास है तो खुद आगे बढकर इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली विचारधारा को स्वत: ही अपना लेंगे।
धार्मिक अंधविश्वासों को दूर करनेे मे मीडिया की भूमिका
विभिन्न समाचार पत्र पत्रिका, टीवी के चेनल मे विशेष समाचार एवं झूठे चमत्कार को सनसनीखेज रुप में न दिखाकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ उसका भेद खोलकर आमजन को जागरुक करने का प्रयास, दूरदराज इलाको, आदिवासी क्षेत्र, ग्रामीण इलाको मे झाडफूक, जादूटोना, चोटी कटने, घर की दीवारों पर मेंहदी के छापे इत्यादि को महिमा मंडित नहीं करे। मॉब लिचिंग, जातिवाद, छूआछूत पर होने वाली हिंसात्मक खबरों को बहुप्रचारित की जगह सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत करे, मानवता, इंसानियत का संदेश समाहित हो, विश्व के विकसित देश जैसे अमरीका, जापान की नइ नई तकनीक, वैज्ञानिक खोज को प्रसारित, प्रकाशित कर आम जन को संकुचित दायरे से बाहर सोचने एवं नित नये परिवर्तन को हमारे देश मे अपनाने की ओर रुझान, रुचि पैदा करें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)