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तोताराम ने कहा- मास्टर, ये वैज्ञानिक ठीक नहीं कर रहे हैं।
हमने कहा- वैज्ञानिक और वैज्ञानिक सोच वाले मनीषी हमेशा ठीक ही करते हैं. वे सत्य, प्रयोग और ज्ञान के मेल से इस संसार को और अधिक विकसित बनाते हैं। धर्म का धंधा करने वाले फिर चाहे वे ईसाई हों, सनातनी हों या मुसलमान, किसी भी धर्म के हों, उनका झगड़ा विज्ञान से ही होता है क्योंकि विज्ञान में अप्रामाणिक और असत्य कुछ भी नहीं चलता। और धर्म का धंधा चलता ही अंध श्रद्धा से है। फिर भी हुआ क्या ?
बोला- अमरीका के कुछ डाक्टरों ने 57 वर्षीय एक श्रमिक डेविड को सूअर का दिल लगाया है।
हमने कहा- तो क्या हुआ. आदमी की जान बचाने के लिए ऐसा करने में क्या बुराई है? आज अमरीका के डाक्टरों की बड़ाई हो रही है और आज से 50 साल पहले हमारे एक डॉक्टर धनीराम बरुआ को ऐसा ही प्रयोग करने के लिए जेल में डाल दिया गया था।
बोला- सूअर बहुत गन्दा जो होता है।
हमने कहा- उसे मुसलमान गन्दा मानते हैं जब कि हमारे पुराणों के अनुसार तो भगवान् विष्णु ने बराह (सूअर ) के रूप में अवतार लिया है। और जब सूअर का मांस खाया जा सकता है तो उसका दिल लगवाने में क्या बुराई है? हमारे यहाँ शिव ने अपने बेटे गणेश जी को हाथी का सिर लगाया। इसे मोदी जी ने भी स्वीकार किया है। शिव ने अपने ससुर दक्ष प्रजापति को बकरे का सिर लगा दिया। शायद वे पशु शल्य चिकित्सक थे।
बोला- फिर भी हमारे यहाँ बराह भगवान की चर्चा कम होती है। हमारे यहाँ तो गाय केंद्र में है। और मुसलमानों में सूअर का ज़िक्र ज्यादा आता है। झगड़े करवाने के लिए भी गाय और सूअर का मांस और अंग एक दूसरे के धार्मिक स्थानों पर फिंकवाये जाते हैं।
हमने कहा- इस तरह से तो नहीं लेकिन प्रतीकात्मक रूप में तो विवेकानंद ने ऐसा विचार दिया था- वे कहते थे, वेदांत के मस्तिष्क और इस्लाम के शरीर से बनेगा अपराजेय भारत।
बोला- लेकिन ये कैसे मिल सकते हैं। सच्चे देशभक्त तो मुसलमानों का यहाँ रहना भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। भले ही यह विवेकानंद ने कहा हो लेकिन वे विवेकनद को छोड़ सकते हैं लेकिन वेदांत और इसलाम का यह कॉक टेल बर्दाश्त नहीं कर सकते.उन्हें विवेकानंद केवल 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं' के नारे तक ही स्वीकार है।
हमने कहा- विवेकानंद के इस अपराजेय भारत में वेदांत और इस्लाम के मेल का विचारात्मक और प्रतीकात्मक अर्थ है। वेदांत मतलब सबकी समानता और सबके हित की निष्पक्ष स्वीकृति और इस्लाम से मतलब जाति-पांति के अन्यायपूर्ण और अवैज्ञानिक भेदभाव से मुक्ति।
बोला- इसे तो किसी भी धर्म के ठेकेदार और नेता स्वीकार नहीं करेंगे।
हमने कहा- क्यों करेंगे। वोट बैंक का सस्ता और अचूक नुस्खा जो खतरे में पड़ जाएगा।
(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
व्यंग्य लेखक : रमेश जोशी
सीकर (राजस्थान)
9460155700
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.