क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

लेखक : नवीन जैन 

(लेखक स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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पीएम नरेंद्र मोदी के घोर प्रशंसक भी इन दिनों भौचक्क हैं। क्यों? वजह बड़ी गहरी है। देश के अभी तक के सभी प्रधानमंत्रियों में लोकप्रियता और जन स्वीकार्यता के मद्देनजर नरेंद्र मोदी शीर्ष पर हैं। नेहरूजी, इन्दिराजी एवं अटलजी तक यह कमाल नहीं दिखा पाए, लेकिन एक ताजा शोध के मुताबिक मोदी की स्वीकार्यता 34 फ़ीसद पहुँच गई है, जो अभी तक के सभी प्रधानमंत्रियों में अपेक्षाकृत सबसे ज़्यादा ही नहीं बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं। यदि अगले महीने होने जा रहे पाँच विधानसभा चुनावों में भाजपा का कमल अधिक से अधिक खिला, तो सम्भावना इस बात की भी हो सकती है कि नरेंद्र मोदी ही पीएम की कुर्सी के कार्यकाल का लगातार तीसरी बार दरवाजा खटखटाने वालों की सफ में सबसे आगे रहें। 

यदि मोदी ने यह दाँव मार दिया, तो यह भूतो न भविष्यति जैसी बात होगी। कोई भी हवाला दे सकता है कि स्व. अटल बिहारी वाजपेयी भी तीन बार प्रधानमंत्री बने थे। सही है। ऐसा ही हुआ था, लेकिन उनकी गठबंधन (एनडीए) वाली सरकार दो बार रास्ते में ही समर्थन वापस लिए जाने के कारण गिर गई थी। वो तो अटलजी के नायाब व्यक्तित्व का चुम्बकीय आकर्षण था कि आखिरकार जब उन्होंने तीसरी बार पीएम पद की शपथ ली, तो कुल 24 विपक्षी दलों ने उन्हें लगातार पाँच वर्षों तक समर्थन दिया और यह केन्द्र में गठबंधन की सरकार का पूरे पाँच साल सकुशल बिताने का कारनामा पहली मर्तबा हुआ। 

बहरहाल!!                                                    

तो पाँचो विधानसभा चुनावों का गुणा भाग अभी तक, तो यही निकलता है कि यदि कोई आसमानी सुल्तानी नहीं हुई, तो उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर में भाजपा लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रही है। ख़ास सूबा है उत्तर प्रदेश। यहाँ कुल 403 सीटें हैं। लगभग दो महीने पहले तक इस प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनावी चेहरा थे। वे अभी भी कमोबेश उसी स्थिति में हैं, लेकिन यह चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है। मोदी से योगी की दूरियां जग ज़ाहिर हैं, लेकिन सियासत खेल में समझौते नहीं करो, तो इतिहास के पन्नों में सिमट जाने का खतरा भी बना रहता है। और, योगी आदित्यनाथ के लिए यह वक़्त ऐसे वैसे खतरे उठाने के लिए मुफीद नहीं माना जा रहा है। आखिर वे भी तो लंबी रेस के घोड़े हैं। राजनीतिक गोताखोर, तो यहाँ तक कह जाने की रिस्क मोल लेने को तैयार हैं कि यदि पंजाब जैसे अतिसंवेदनशील एवं सीमावर्ती सूबे को भी इस बार कांग्रेस खो बैठे ,तो आश्चर्य नहीँ होना चाहिए। 

यदि वाकई ऐसा हुआ, तो कोई और दूसरा नहीं ख़ुद कांग्रेस की खुदनुमाई और लाचारी इसके लिए जवाबदेह होगी। सोचिए यदि इन्दिराजी या राजीव गाँधी आज होते, तो क्या नवजोत सिंह सिधू की इस तरह की अपनी पार्टी की अध्यक्षता वाले बयानों एवं हरकतों को बर्दाश्त किया जाता। और, वह भी सिर्फ़ इसलिए कि येन केन प्रकारेण नवजोत सिंह सिधू पंजाब के मुख्यमंत्री होने के पद लोलुप हैं। वे इतने वाचाल और बड़बोले रहे हैं कि जब भाजपा में थे, तब राजीव गाँधी के लिए तू तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल किया करते थे। जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तब भी इसी तरह की छिछली शब्दावली के असफल दाँव चलते रहे और दुनिया जानती है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री होते हुए वे न सिर्फ़ कांग्रेस में चले गए, बल्कि नरेंद्र मोदी का नाम लेते हुए अक्सर उनका क्रिकेटी शॉट भीतर ही भीतर पार्टी के आला कमांडरों को भी नागवार गुजरा। 

संभावना इस बात की भी बताई जा रही है कि केप्टन अमरिंद्र सिंह को अंतिम समय में भाजपा टेका लगा दे। यदि ऐसा हो गया तो दो निशाने एक साथ सध सकते हैं। एक, कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो जाएगी। दो, कैप्टन अमरिंदर सिंह का नवजोत सिंह सिधू से राजनीतिक हिसाब किताब पूरा हो जाएगा, क्योंकि सिधू से तंग आकर ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री पद से तौबा की थी। हरियाणा, तो वैसे ही भाजपा के पास है। फ़िर, आप ऊर्फ़ आम आदमी पार्टी के लिए भी खेती बाड़ी के लिए सबसे उपजाऊ मानी जाने वाली यह ज़मीन हाल में स्थानीय निकायों के चुनावों में उपजाऊ मानी गई है। सिर्फ़ उत्तराखंड में सत्ताधारी भाजपा अंतर्कलह से बेहद त्रस्त है। बावजूद इसके सत्ता का ज़ायका जो लोग यहाँ चख चुके हैं उनके लिए अंतर्कलह सिर्फ़ एक पिटा हुआ शब्द है। सो ,माना जा सकता है कि यह विधानसभा चुनाव मिनी लोकसभा चुनाव या उसका ट्रेलर है।

सवाल है कि आखिर नरेंद्र मोदी के प्रति ये दीवा नगियां पंडित नेहरू या अटलजी से भी ज़्यादा क्यों है? हालांकि नेहरू, इंदिराजी और अटलजी भी विश्व नेता होने का माद्दा रखते थे ,लेकिन नरेंद्र मोदी का कुल जमा व्यक्तित्व सबसे ज़्यादा ठोस निकला। इसीलिए कोई दो दशक से आसपास हो गए उन्हें राज करते करते। जिसमें, गुजरात का लगातार मुख्यमंत्री होना भी शामिल है। आम जनता उनसे ऊबी कम उनके निकट अधिक आई है, जबकि वे जब पहली बार गुजरात के चौधरी बने थे तब, उसके पहले किसी पंचायत का चुनाव भी नहीं जीते थे।ज्ञातव्य है कि उनकी कथित  कट्टर हिंदू वादी छवि के कारण सालों तक अमेरिका ने उन्हें वीज़ा ही नहीं दिया, लेकिन वही अमेरिका भारत का अब  एक हाथ पकड़े हुए है और रूस दूसरा हाथ थामे हुए है। कुछ घण्टों के लिए ही सही, रूस के मुखिया ब्लादिमीर पुतिन हाल में भारत आए थे। इसी बीच अमेरिका के विदेश मंत्री भी आए। यह बड़ी राजनयिक सफलता है कि दोनों सुपर पॉवर भारत में  भरोसा जताएं। 

जानकार मानते हैं कि मोदी ने बीच बीच में जो नारे दिए उनकी विपक्ष ने तो जुमलेबाजी कहकर खिल्ली उड़ाई, लेकिन आम जनता ने कदाचित पहली बार सुना कि कोई  पीएम अपने को चौकीदार तक कह रहा है। यानी वह पीएम भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के भरपूर प्रयास करेगा। इसी भ्रष्टाचार ने देश को दुनिया का सबसे बड़े दरिद्रालयों में से एक बना रखा है। सही है कि देश की लगभग 83 प्रतिशत दौलत मुट्ठी भर लोगों की ही बपौती है, लेकिन कल्पना कीजिए कि आपके ही घर में जालों, गंदगी, अटालों और टूट फूट का साम्राज्य हो, तो क्या करेंगे आप? उस घर की साफ़ सफाई और दुरुस्तीकरण एक कामचलाऊ उपाय है,जो दुर्भाग्यवश अभी तक की करीब सभी सरकारें करती रहीं और दूसरा तरीका यह हो सकता है कि उस भवन को नेस्तनाबूद करके फिर से छोटा ही सही नया और मजबूत घर बनवाया जाए। मोदी सरकार ने विभिन्न विभागों के निजीकरण का जो नया फलसफा गढ़ा है वही भ्रष्ट तंत्र को सही रास्ते पर लाने का शायद एकमात्र तरीका है। गाँधीजी अपनी सादगी के कारण भी दुनिया की नज़रों के सितारे बने। आज उसी रास्ते पर मोदी अपने को प्रधान सेवक कहकर मोदी दिलो पर राज कर रहे  हैं। मज़ा यह है कि विपक्ष उनके खिलाफ़ जितना तीखा बोलता है ,वे और गहरी चुप्पी में चले जाते हैं। 

यह नुगरापन नहीं है, बल्कि मनोवैज्ञानिक सत्य यह है कि हर तंज का जवाब अपने श्रम साध्य और नेकनीयत काम से दो। घपले और घोटालों की जन्म दाता कौनसी पार्टियां रही हैं, यह आजकल के बच्चों को भी मालूम है। इसीलिए उन्हें मोदी या भाजपा में भरोसा है। माना जाता है कि एक नेता के रूप में देश को पहली बार कोई प्रेरक अभिभावक मिला है। कोविड के बहुरूपों के अलावा वे अकेले कितने मोर्चों पर जूझ रहे हैं। चीन और पाकिस्तान के प्रति उनकी नीयत पर भी विपक्ष की बडी बडी बल्लमो ने उन पर बेजा आरोप लगाए, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा होता जा रहा जो अपनी उम्मीदों का आसमान अपने इन प्रधानमंत्री की आँखों में देख रहे हैं। यह संकेत देश को कट्टर हिंदू वादी  बनाने का क़तई नहीं है। 

इस तरह के गुमराह कर देने वाले तर्कशील लोग उस खाप के नेता हैं, जिन्हें छुट भैया नेता कहा जाता है और जो अक़्ल से इतने पैदल होते हैं कि नहीं जानने का एक तरह से अपराध करते हैं कि स्वामी विवेकानंद तक  ने यह कभी नहीं कहा कि अल्पसंख्यकों को इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है।होता यह रहा है कि हमारी प्राचीन मान्यताएं आज भी इतनी कठोर हैं कि किसी कील के गाड़ देने भर से काम नहीं चलेगा।  देश की उन्नति ,प्राचीन आध्यात्मिक अस्तित्व और आधुनिक दृष्टिकोण जैसी धारणाओं में अक्सर विरोधाभास होता है। मोदी इसी मरहले को तो सुलझा रहे हैं। माना जाता है आंतरिक नीतियाँ हों या विदेशी चुनोतियाँ, मोदी ने खुद को या अपने विश्वस्त साथी जैसे अजित डोभाल को साथ लेकर हरेक आंतरिक ऒर बाहरी समस्या को चुनौती देने की हिम्मत दिखाई है। 

जब स्व. राजीव गाँधी ने सत्ता सम्हाली थी तब नेहरू गाँधी परिवार के धुर विरोधी ,इंडियन एक्सप्रेस समूह के संचालक स्व. रामनाथ गोयनका ने स्पष्ट रूप से लिखा था कि मैं अब आराम की मौत मरूँगा, क्योंकि मुझे लगता है कि देश अब सुरक्षित हाथों में है। बाद में क्या हुआ था यह अभी संदर्भहीन बातें हैं। इसी तरह अभी तो लगभग हर वर्ग के लोग मानकर चल रहे हैं कि मोदी के हाथों में देश का वर्तमान और भविष्य दोनों सुरक्षित है। जान लें कि अपने पहले कार्यकाल में पीएम नरेंद्र मोदी जिन रेकॉर्ड सौ देशों की यात्रा पर गए थे, उनमें सबसे अधिक तो मुस्लिम देश थे जो रेकॉर्ड था और दूसरे कार्यकाल में भी जिस बाहरी देश की यात्रा की वह भी मुस्लिम बहुल यानी बांग्लादेश है यह भी रेकॉर्ड है।

सबसे काम की हाल फिलहाल यह जानकारी है कि अमेरिकी आंकड़ा विश्लेषक कम्पनी मॉर्निंग कंसल्टेंट ने अपने हालिया जनमत सर्वेक्षण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता पाया है। मोदी के पक्ष में 71 फ़ीसद भारतीयों ने हामी भरी है। जान लें कि यह जनमत संग्रह था और वह भी अमेरिकी कम्पनी द्वारा। किसी इकन्नी छप भारतीय न्यूज चैनल द्वारा कराया गया एक्जिट पोल नहीं था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)