अपनी दुर्दशा पर आंसु बहा रहा गांधीसागर तालाब

सोन्दर्यकरण के नाम पर करोड़ों खर्च, नतीजा बदहाली

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 भीलवाडा। शहर के बीचो बीच स्थित गांधीसागर तालाब की साफ सफाई व सोन्दर्यकरण को लेकर नगर परिषद अब तक करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी है इसके बावजूद नतीजा बदहाली के रुप में सामने है। सोन्दर्यकरण पर अतिक्रमण कालिख पोते हुए है वही घुम्मकड़ परिवारों ने अपने स्थाई रेन बसेरे बनाकर अतिक्रमण कर रखा है। थडियों से घिरा गांधीसागर तालाब का किनारा नगर परिषद की अनदेखी को उजागर कर रीा है। जबकि इस तालाब का मुख्यमंत्री से लेकर कई कलक्टरों, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सदस्यों, कई प्रशासनिक अधिकारीयो द्वारा इसका जायजा लिया जा चुका है। 

लेकिन हालात आज भी जस के तस है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा तालाब में जमा गंदगी को खतरनाक बताने के बाद परिषद द्वारा सफाई के नाम पर लगभग करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी नतीजा शुन्य रहा। आज भी तालाब में गंदे पानी की आवक बदस्तूर जारी है। जो आने वाले गर्मी के दिनो में सड़ान मारेगी। जिससे आसपास बसे लोगों का जीना दुभर हो जाऐगा। हालांकि नगर परिषद ने एनजीटी में शपथ पत्र दे रखा है कि अब नालों का पानी इसमें नहीं डालेंगें। 

इधर, दुसरी और अब नए फाउंटेन और लगाने और टापू बनाने पर मामला अब भी विचाराधीन है। राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने भी गांधीसागर के पानी का नमूना लिया था, जिसकी रिपोर्ट चैंकाने वाली आई थी। तालाब में बायोलोजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 33 मिलीग्राम आई जबकि मानक तीन मिग्रा प्रतिलीटर या कम था, वहीं पीएच भी आठ आया था। जिसके चलते इस जहरीले पानी से मछलियां ही नहीं, पीने से पशु-पक्षी मर रहे थे। 

एनजीटी के आदेश के बावजूद इसमें कई पोश कॉलोनियां व उद्योगों का जहरीला पानी जा रहा था। एनजीटी में जनहित याचिका की सुनवाई के बाद इन नालों के पानी को तालाब में गिरने पर रोक के आदेश हो गए थे। जिसको लेकर नगर परिषद ने कहा था की गांधीसागर तालाब में गंदा पानी नहीं आए, इसके प्रयास किए जाऐगें। अभी ये पानी कहां से आया है, यह दिखवाऐं, जिसका प्रोजेक्ट हाथ में ले रखा है। अब देखना ये है की नगर परिषद के अथक प्रयास कितना रंग लाते है और इसका सोन्दर्यकरण कितना निखरता है।