लेखक : लोकपाल सेठी
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक बड़े फैसले के जरिये साफ़ कर दिया है कि मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब पहनना इस्लाम में जरूरी रही है। लेकिन इसके बावजूद मजहबी मौलवियों और कुछ मुस्लिम नेताओं ने इस फैसले को यह कह कर नकार दिया है कि हाई कोर्ट के जजों ने कुरान और शरियत की ठीक से व्याख्या नहीं की है। इस्लाम में हिजाब पहनना मुस्लिम महिलाओं के लिए जरूरी है और इसे पहनने से कोई रोक नहीं सकता। कर्नाटक हाई की तीन सदस्यों वाली पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि कई मुस्लिम देशों में महिलायों हिजाब नहीं पहनती। कुछ मुस्लिम देशों ने तो अपने यहाँ हिजाब पहनने पर रोक लगा रखी है। हिजाब कुछ मुस्लिम समुदायों की संस्कृति और परम्परा हो सकती है, लेकिन यह इस्लाम का हिस्सा नहीं है। कोर्ट ले फैसले के बाद इस विवाद का अंत नहीं हुआ है और यह बहस किसी न किसी रूप में जारी रहेगी।
हिजाब पहनने पर विवाद लगभग दो माह पूर्व कर्नाटक के तटीय इलाके के एक प्रमुख उद्दुपी के एक प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज तब शुरू हुआ जब लगभग एक आधा दर्ज़न मुस्लिम छात्राओं ने कहा कि वे क्लास में हिजाब पहन कर जाएँगी क्योंकि यह उनके मजहबी इस्लाम का हिस्सा है। कॉलेज प्रबंधन का कहना था कि वे कैंपस में हिजाब पहन कर आ सकती हैं लेकिन क्लास में प्रवेश करने से पूर्व उन्हें अपना हिजाब क्लास से बाहर रखना होगा, जैसा के वे पूर्व में करती रही है। लेकिन वे अपनी जिद्द पर अड़ी रहीं और क्लास का बायकाट कर दिया। कॉलेज प्रबंधन का कहना था कि कॉलेज का एक निर्धारित ड्रेस कोड है और सभी के लिए यह पहनना जरूरी है। जल्दी ही आस पास के कई शहरों में स्कूल और कोलेजों की मुस्लिम छात्राओं ने भी हिजाब पहन कर क्लास में आने पर जोर दिया। स्थिति को देखते हुए कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने राज्य के इन इलाकों में सारे स्कूलों और कॉलेज को कुछ समय के लिए बंद कर दिया। इसके साथ ही राज्य के 1985 के शिक्षा कानून के अंतर्गत स्कूल और कालेजों के प्रबंधन को पाबंद किया कि उनके यहाँ छात्र और छात्राएं निर्धारित ड्रेस पहन कर आएंगे।
उधर, एक कॉलेज के छह छात्राओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि हिजाब उनके धर्म इस्लाम का अटूट हिस्सा है इसलिए उन्हें स्कूलों और कोलेजों में हिजाब पहन कर जाने दिया जाये। उनका कहना था कि वैसे भी अपने पसंद की पौशाक पहनना देश के प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है जिससे उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट की बेंच ने सरकार के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया तथा कहा जब तक इस याचिका पर फैसला नहीं होता तब तक कोई मुस्लिम छात्रा क्लास में हिजाब पहनकर नहीं जा सकती। इसको लेकर कई शहरों में मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग ने स्कूल और कोलेजों में जाना बंद कर दिया।
उस समय उत्तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी थी तथा राजनीतिक दलों का प्रचार चरम पर था। कुछ राज्यों में मुस्लिम संगठनों ने भी हिजाब को लेकर अपने यहाँ आंदोलन भी शुरू कर दिया। तकरीबन सभी तरह के मुस्लिम संगठन हिजाब को लेकर एक साथ थे तथा उनका कहना था हिजाब पर रोक लगाना बर्दाशत नहीं किया जायेगा। हाई कोर्ट ने मामले पर सुनवाई 25 फ़रवरी को पूरी कर ली थी लेकिन इस पर अपना निर्णय सुरक्षित रखा था। यह कहा गया कि उनका कोई भी फैसला इन राज्यों में चुनावों को प्रभावित कर सकता है।
जैसी की उम्मीद थी कर्नाटक हाई कोर्ट के निर्णय को सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती देने की एक याचिका लगाई गई है, उधर हिन्दू सेना नाम के एक संगठन ने एक कविअट लगा कर कहा है कि मुस्लिम संगठनों के याचिका पर सुनवाई से पूर्व उनकेपक्ष को सुने जाये।
उधर कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर राज्य में माहौल कुछ गरमा गया है। राज्य सरकार ने प्रदेश के कुछ हिस्सों में धरा 144 लगा दी है ताकि हाई कोर्ट के फैसले को लेकर जुलूसों और सभाओं को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सके।
इसी बीच यह ख़बरें भी आ रही है कि मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग ने राज्य में चल रहे परीक्षायें देने से इंकार कर दिया क्योंकि स्कूलों और कालेजों के प्रबंधन साफ़ कर दिया है कि हिजाब पहनी किसी भी छात्रा को परीक्षा कक्ष में नहीं आने दिया जायेंगा। राज्य की ख़ुफ़िया पुलिस का कहना है कि एस.डी.पी.आई. और कैंपस स्टूडेंट ऑफ़ इंडिया जैसे कट्टर इस्लामी संगठन राज्य के मुस्लिम समुदाय को उकसाने में लगे है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)