आज उठने का मन नहीं हुआ, पारा भी शून्य के आसपास मंडरा रहा था, सो रजाई में ही घुसे हुए थे। तभी गेट पर गुहार लगी- प्रधानपुरुषेश्वर है?
पत्नी रसोई में थी. उसने वहीँ से उत्तर दे दिया- यहाँ इस नाम का कोई नहीं रहता। यहाँ तो मास्टर जी रहते हैं।
उस आवाज़ ने अन्दर प्रवेश करते हुए कहा- मुझे भी पता है यह मास्टर का घर है। मैंने तो आज उसके पर्यायवाची का उपयोग कर लिया तो तुम लोग कन्फ्यूज हो गए।
हमने कहा- इस नाटक की क्या ज़रूरत है। तुझे कौनसा हिंदू गौरव जागृत करना है? कौनसा इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करके चुनाव जीतना है।
बोला- बात चुनाव की नहीं अनुभूति की है। हालांकि तेरा 'रमेश' नाम भी है तो विष्णु का ही पर्यायवाची लेकिन इसका कुछ रुआब नहीं पड़ता। सुरेश, नरेश, दिनेश जैसा सामान्य नाम। और यह 'प्रधान पुरुषेश्वर' नाम ऐसे लगता है जैसे एक ही झटके में वार्ड पञ्च, विधायक, सांसद आदि सभी योनियों को लांघकर हिंदी के रिटायर्ड मास्टर से सीधा प्रधानमंत्री बन गया हो- नरेन्द्र. दो ही तो विशेषण है- एक नरेन्द्र और दूसरा ईश्वर।
हमने कहा- शेक्सपीयर ने तो कहा है-व्हाट्स देअर इन नेम?
बोला- उसे क्या पता? वह कहीं योरप जैसे पिछड़े देश में चार सौ साल पहले पैदा हुआ था. उसे नाम की महिमा का क्या पता ? तुझे पता होना चाहिए यम के दूत अजामिल नाम के विपक्षी दुरात्मा के यहाँ ई डी का छापा मारने आये थे। जैसे ही उसने अपने पुत्र को आवाज़ लगाई- 'बेटा, नारायण' ज़रा देखना तो ये कौन लोग आये हैं दरवाजे पर? यमदूत समझे यह तो नारायण (जल पर रहने वाले) साक्षात् विष्णु का बाप है। बेचारे सॉरी बोलकर वापिस चले गए। सोच यदि उसके बेटे का नाम कलीमुद्दीन होता तो? दो गालियां ज्यादा मिलती और केस ऐसा बना दिया जाता कि जमानत भी नहीं मिलती। हो सकता है नीरव को अपने सरनेम का कोई एडवांटेज मिल रहा हो।
हमने कहा- तो क्या हर कोई निट्ठल्ला अंड, बंड,पाखंड के साथ आनंद लगा लेता है तो महात्मा हो जाता है ? या कोई चूहा भी अपनी पूंछ से ज्यादा लम्बी मूंछे रखकर और अपने नाम के बाद 'सिंह' लगाकर बहादुर हो जाता है? क्या कोई लफंगा जनसेवक अपने नाम से पहले हृदय सम्राट, लोक हितैषी, करुणावातार, योगी-वियोगी लगाकर गाँधी बन जाता है? या जो बाप सेना में सिपाही तक नहीं बन पाया वह अपने बेटे का नाम मेजर सिंह रखकर फील्ड मार्शल बन जाता है? अंग्रेजी नहीं आती तो क्या, बेटे का नाम अंग्रेज सिंह रख लो।
बोला- कुछ तो फर्क पड़ता ही होगा।
हमने कहा- कोई फर्क नहीं पड़ता. अपने यहाँ तो दमड़ी राम, छदम्मीलाल, घूरेमल नाम के सेठ हो चुके हैं. अशर्फीलाल मनरेगा में काम करते मिल जाते हैं।
बोला- लेकिन राम, कृष्ण, प्रसाद, लाल, चन्द्र, कुमार आदि मिडिल नेम के बिना स्वर्ग में एंट्री नहीं मिलती। तुझे याद है मध्यप्रदेश में एक हिंदी बाल साहित्यकार, हिन्दू ज़हूरबख्श के नाम से बनी लाइब्रेरी हिन्दू दंगाइयों ने इसलिए जला दी कि यह नाम उन्हें राष्ट्रविरोधी लगा। तुलसी ने राम को 'गरीब नवाज़' कह तो दिया लेकिन कट्टर भक्तों को यह विशेषण अभी तक स्वीकार नहीं हुआ। सत्तर बरस में क्यों कोई मोहम्मद प्रधानमंत्री या सेनाध्यक्ष नहीं बना? राष्ट्रपति का क्या है, उसे तो प्रधानमंत्री का लिखा भाषण पढ़ना पड़ता है। आदेशानुसार ताली-थाली बजानी पड़ती है। तुझे पता होना चाहिए कि रूस में किसी बच्चे का नाम 'ब्लादीमीर पुतिन' और उत्तरी कोरिया में 'किम जोंग उन' नहीं रख सकते। ये तो ईश्वर की तरह एक ही हो सकते हैं। ऐसे तो कोई भी अपना नाम 'प्रधानमंत्री' या 'भारतरत्न' रख लेगा। क्या ज़रूरत है बरामदे के निर्देशक मंडल में बैठकर अनंतकाल तक इंतज़ार करने की।
बीबीसी में काम कर चुके हमारे एक वरिष्ठ परिचित भारतरत्न भार्गव 'भारतरत्न' सम्मान की स्थापना से पहले ही भारतरत्न बन चुके थे। आजकल दृष्टिबाधित बच्चों को अपने गुरुकुल में थियेटर सिखाते हैं।
हमने कहा-जिसे हम वनराज, मृगराज, सिंह साहब कहते हैं उसे नहीं पता कि उसे जंगल का राजा माना जाता है। उसके साथ कोई कमांडो नहीं चलता, न उसके पास पर्सनल प्लेन है। प्यास लगती है तो खुद ही तालाब पर जाकर पानी पीना पड़ता है। उत्तरांचल का कोई बलवर्द्धक मशरूम चलकर उसकी प्लेट में नहीं जाता।
बोला- तो क्या, नाम का कोई महत्त्व नहीं होता?
हमने कहा- नहीं. ये नाम तो खुराफात हैं। सब कहते हैं कि ईश्वर, खुदा, गॉड सब एक हैं और सभी उसकी संतान हैं लेकिन सबसे ज्यादा झगड़े उसी 'एक' के नाम पर होते हैं।
बोला- तो नाम के नाम पर होने वाली इन खुराफातों का क्या इलाज़ है ?
हमने कहा- मनुष्य के अतिरिक्त सभी जीवों का काम बिना नाम के चल रहा है। तरह तरह के नाम रखना और नाम को ख़राब करना, 'नाम मात्र' की बात पर मरने मारने पर उतारू हो जाना आदमी का ही काम है।
बोला- तो क्या नाम रखा ही नहीं जाए ?
हमने कहा- रख सकते हो जैसे कम्प्यूटर, लैपटॉप, माउस, सिनेमा आदि।
बोला- ये तो क्रिश्चियन नाम है।
हमने कहा- गणक, गोदी गणक,मूषक,चलचित्र रख लोगे तो फिर संस्कृत-उर्दू; हिन्दू-मुसलमान शुरू हो जाएगा,
बोला- यह तो बड़ी मुश्किल हो गई. तुलसी ने तो कहा है- कलियुग केवल 'नाम' अधारा।
हमने कहा- तो सब समस्याओं का इलाज 'आधार कार्ड' है ना। उसका नंबर ही सबका नाम बना दो। वैसे तोताराम, हम नाम की यह बकवास कर क्यों रहे हैं ?
बोला- बात यह है कि गुजरात के भावनगर में नीता बेन ने अपने कुत्ते का नाम 'सोनू' रख लिया। उसके पड़ोसी का नाम भी सोनू है। इसलिए सोनू ने गुस्सा होकर अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर नीताबेन को जिंदा जला दिया।
हमने कहा- तोताराम, जो जितना छोटा होता है उसका अहंकार उतना ही बड़ा होता है। हमारे यहाँ तो फिल्मों, कहानियों में नौकर का नाम प्रायः 'रामू' होता है, उसे डांटा भी जाता है तो कभी घर के बुज़ुर्ग की तरह सम्मान भी दिया जाता है लेकिन 'रामू' को कोई फर्क नहीं पड़ता। लोग अपने कुत्ते का नाम प्रायः 'मोती' रख लेते हैं तो क्या नेहरू परिवार के लोग दंगा करवा दें या कोर्ट चले जाएँ कि हमारे बाबा-पड़बाबा मोतीलाल नेहरू का अपमान हो गया।
ज़बरदस्ती किसी खास धर्म के लोगों को पीट-पीटकर 'जय श्री राम' बुलवाने वाले इसे नहीं समझ सकते। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने व्यग्यात्मक विचार है)