लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस.अधिकारी है)
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राजपूताना की छोटी-बड़ी 19 रियासतों का विलय कर 30 मार्च 1949 को राजस्थान का निर्माण हुआ। रियासतों का 80 प्रतिशत से अधिक इलाका जागीरदारों के अधीन था। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राजस्थान में अनेक महत्वपूर्ण किसान आन्दोलन हुए। बिजोलिया आन्दोलन भारत का प्रथम व्यापक और संगठित किसान आन्दोलन था। इस आन्दोलन ने राज्य में ही नहीं पूरे भारत में एक नई चेतना पैदा की। 1921 में बेगू में किसान आन्दोलन चला। नीमूचना किसान आन्दोलन, मेव किसान आन्दोलन व बूंदी किसान आन्दोलन, बीकानेर रियासत, चित्तौड़गढ़ व सीकर में अनेक किसान आन्दोलन हुए। अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में भील आन्दोलन में मानगढ़ पहाडी पर हजारों आदिवासी भीलों पर सैनिक टुकडी ने मशीनगन से फायरिंग की जिसमें करीब 150 भील मारे गये। गोमट भील आन्दोलन, नीमरा गांव व विजयनगर, सिरोही में सैनिकों की अंधाधुंध गोलियों से सैकड़ों मारे गये। 1947 को डीडवाना परगना के डाबडा गांव में मारवाड किसान आन्दोलन सभा के सम्मेलन में जागीरदारों द्वारा किसानों पर आक्रमण हुए। अजमेर में रेलवे वर्कशाप हडताल पर आर्मी ने कार्यवाही की, अजमेर में डोगरा कांड हुआ।
राजस्थान में प्रजामंडल आन्दोलनों में मेवाड, बागड, मारवाड, जयपुर, भरतपुर आदि में अनेक बड़े आन्दोलन हुए। राजपूताना प्रदेश के प्रमुख स्वतंता सेनानियों में प्रमुख रहे गोविन्द गिरी, मोतीलाल तेजावत, विजयसिंह पथिक, अर्जुनलाल सेठी, केसरीसिंह बारहठ, जमनालाल बजाज, माणिक्यलाल वर्मा, गोकुल भाई भट्ट, रामनारायण चैधरी, हीरालाल शास्त्री, बाबा हरिशचन्द, जोरावर सिंह बारेठ, हरिभाऊ उपाध्याय, भौंरीलाल पांड्या, मोहनलाल सुखाडिया, हरिदेव जोशी, जुगलकिशोर चतुर्वेदी, शोभाराम, सागरमल गोपा (जो जेल में जीवित जला दिये गये थे), ब्रजमोहन शर्मा, बालमुकन्द बिस्सा, वैद्य मंगाराम, बीरवल सिंह आदि ने राजाशाही व जागीरदारों के विरूद्ध आन्दोलन कर स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, जुल्म सहे, जेलें काटी। स्वतंत्रता आन्दोलन में राजस्थान में अनेक नेता अमर शहीद हुए।
सभी रियासतों के षासनतंत्र को सम्मिलित कर प्रशासनिक एकीकरण का वृहतर कार्य पूरा किया गया। राजस्थान निर्माण के समय वर्ष 1949 में मात्र 62 शहरों में विद्युत पावर सप्लाई होती थी। वर्ष 1950-51 में राजस्थान में सकल सिंचित क्षेत्र 11.7 लाख हेक्टर था एवं बुआई योग्य क्षेत्र मात्र 12 प्रतिशत था। राज्य की प्रथम पंचवर्षीय योजना मात्र 54.15 करोड़ थी। वित्तिय हालात इस प्रकार के थे कि इस संबंध में प्रथम पंचवर्षीय योजना में बजट प्रावधान मात्र 31.3 करोड़ रखा गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना में भी सकल सिंचित क्षेत्र मात्र 16.99 लाख हेक्टर था। राज्य में 67 प्रकार के खनिज है परन्तु वर्ष 1950-51 में मात्र 31.5 करोड़ रूपये का खनिज उत्पादन था। वर्ष 1951 में विद्युत उत्पादन मात्र 13271 किलोवाट था। वर्ष 1951 में 17339 किलोमीटर डामर सड़क थी। वर्ष 1951-52 में व्यापारिक एवं मुद्रादायी फसलों का क्षेत्र मात्र 8 प्रतिशत था। वर्ष 1961 तक साक्षरता मात्र 39 प्रतिशत थी। 1955-56 तक केवल बड़ी रियासतों में मीटर गेज रेल लाईन थी। राजस्थान अन्य राज्यों के मुकाबले सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनैतिक सभी दृष्टिकोण से पिछड़ा था।
प्रदेश में साक्षरता दर 1951 में, पुरूष 13.88 स्त्री 2.66 प्रतिशत थी। 5 जनवरी 1950 को राज्य में 90-चिकित्सालय/औषधालय थे, 42-बस्तियों में विद्युत आपूर्ति थी, 1-पशु चिकित्सालय, 2-प्रयोग शालाएं थी, पहली पंचवर्षीय योजना के समय 50 हजार से एक लाख टन खाद्यान्न विदेशों से आयात होता था। वर्ष 1950-51 में उच्च शिक्षण संस्थान 32 थे जिनमें 14.8 लाख छात्र एवं 1.7 लाख छात्राएं अध्ययनरत थी।
स्वतंत्रता से पूर्व रक्षित जल प्रदाय केवल जयपुर, जोधपुर, कोटा, बीकानेर आदि में थी, अस्वास्थ्यकर पानी का उपयोग से नारू आदि बीमारियां फैली हुई थी। अकाल के दिनों में सैकड़ों पुरूष व हजारों पशु मरते थे। आजादी के वक्त लोगों की औसत उम्र 30-35 वर्ष हुआ करती थी, आज वह दोगुणी होकर 64 वर्ष हो गई है। उस वक्त गरीबी से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या 70-80 प्रतिशत हुआ करती थी, वह आज 20 फीसदी रह गई है। कृषि क्षेत्र में परिवर्तन हुआ है। खाद्यान्न मामलों में हमारी आत्मनिर्भरता बढ़ी है।
राजस्थान में भूमि सुधार के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। जागरीदार प्रथा समाप्त (जमीन किसकी बोयें उसकी)। राज्य में जिस तरह भूमि सुधार कार्यक्रम हुए वैसा देश में नहीं विदेष में भी कहीं नहीं हुए। एक ही रात में जागीरदारी प्रथा समाप्त कर जमीन बोने वाले व्यक्ति को, खातेदारी अधिकार निःशुल्क देकर जमीन का पूर्णतया मालिक बना दिया गया। लोक सत्ता का विकेन्द्रीकरण के तहत पंचायतराज की स्थापना हुई, ऊर्जा उत्पादन, सिंचाई, सड़क निर्माण, खाद्यान्न उत्पादन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति हुई।
सबसे बड़ी बात यह हुई कि सामंतशाही से छुटकारा मिला लोकषाही की स्थापना हुई, लोकतंत्र मजबूत हुआ है। अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रसार हुआ है। मानवाधिकारों के हनन पर रोक लगी है। आर्थिक असमानता है परन्तु खाई कम हुई है। मध्यमवर्गीय लोगों की संख्या बढ़ी है। सरकारी योजनाओं के जरिये गांवों में समृद्धि बढ़ी है। गांवों के जिन लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान नसीब नहीं था उनको अब यह उपलब्ध होने लगा है। सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। पंचायतराज संस्थाएं व सहकारिता आन्दोलन मजबूत हुआ है।
शिक्षा, रोजगार, गरीबी उन्मूलन, पेयजल, चिकित्सा सुविधाओं में निर्णायक वृद्धि हुई है। सरकारी सेवाएं बढ़ी है। राज्य कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हुई है। कार्य निष्पादन में आवश्यक परिवर्तन हुआ है। आवागमन के लिए तेज यातायात के साधन उपलब्ध हुए है।
इंदिरा गांधी नहर निर्माण से एक नये युग की शुरूआत हुई, कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता मिली, पेयजल उपलब्ध हुआ, पश्चिमी राजस्थान हर क्षेत्र में आगे बढ़ा। राजस्थान नहर परियोजना से 28.75 लाख एकड भूमि में सिंचाई, माही बांध से 76 हजार एकड भूमि पर सिंचाई, बिजली घर का निर्माण, जंवाई बांध से 45 हजार एकड भूमि पर सिंचाई, कोटा बैराज निर्माण से विद्युत उत्पादन व सिंचाई की योजनाएं बनी। इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में खाद्यान्न, कपास, मूंगफली, पशु चारा क्षेत्र का विकास हुआ है, वहां पानी की उपलब्धता है। कृषि क्षेत्र में मैथी, धनिया, जीरा, ग्वार, माल्टा आदि के निर्यात की पर्याप्त संभावना बन गई है।
राज्य की प्रथम पंचवर्षीय योजना में जो अनुमोदित वास्तविक व्यय 54.15 करोड़ था जो 11वीं पंचवर्षीय योजना में 93954.34 तक पहुंचा। 12वीं योजना 196992 करोड़ की बनी व 2016-17 तक व्यय हुआ। आधारभूत ढांचे में बढ़ोतरी हुई है। मूलभूत सुविधाओं में विस्तार हुआ है। चिकित्सा सेवाएं दुरूस्त हुई है। शिक्षण संस्थाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। उद्योगों की संख्या व औद्योगिक उत्पादन बढ़ा है। रीको ने औद्योगिक स्थल उपलब्ध कराये है तो वित्त निगम ने वित्तीय सहायता। राजसीको ने लघु व कुटीर उद्योगों को लाभांवित किया है। सहकार संघ व क्रय विक्रय संघ द्वारा खाद्यान्न की खरीदकरण व क्रय सुविधाओं में वृद्धि हुई। राज्य में तिलहन उत्पादन में देश में दूसरा स्थान हो गया है। खाद्यान्न उत्पादन में 37 प्रतिशत, तिलहन उत्पादन में 110 प्रतिशत, कपास उत्पादन में 90 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रदेश में साक्षरता दर 70-80 प्रतिशत तक पहुंच गयी है। महिला साक्षरता दर 43-52 प्रतिशत है। सामाजिक बेड़िया कम हुई है। राज्य में प्रति 100 किलोमीटर सड़क निर्माण में उल्लेखनीय प्रगति हुई। पशुपालन के क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाओं की वृद्धि के साथ पशुधन उत्पाद उत्पादन, दुग्ध संकलन उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई हैं। सामाजिक क्षेत्र के विकास में भी अनेक प्रगतिषील योजनाओं से उल्लेखनीय परिवर्तन आया।
सरकारों की प्रगतिषील नीतियों से प्रदेश में 2011 में पुरूष साक्षरता दर 79.2 और महिला साक्षरता दर 52.51 प्रतिषत व जन्म के समय प्रतिशत 2014 में 67.7 हुई। दिसम्बर 2016 तक विद्युत उत्पादन की कुल अधिष्ठापित क्षमता 17894.18 मेगावाट तक पहुंच गई एवं 1304.10 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा उत्पादन संयत्र अधिष्ठापित किये गये। 2016 में सड़कों की कुल लम्बाई 217707.25 किमी. हुई। 2016 में खनिज से राजस्व अर्जन 2748.70 करोड़ रूपये पंहुचा। पर्यटन सुविधाओं में सुधार से 430.09 लाख पर्यटक राज्य में आयें। खाद्यान का उत्पादन 213.12 लाख मीट्रिक टन पंहुच गया। 2016-17 में 16076 हैक्टयेर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई जलापूर्ति ग्रामीण विकास, चिकित्सा, स्वास्थ्य सभी क्षेत्रों में सामाजिक सेवाएं, आर्थिक सेवाऐं सभी में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
राजस्थान की सरकार में प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने विकास के नये-नये आयाम स्थापित किये। प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री ने एकीकरण के पश्चात प्रशासनिक पुनर्गठन का प्रशंसनीय कार्य किया। जयनारायण व्यास के समय पश्चिमी राजस्थान में दस्युओं का उन्नमूलन हुआ। उनके व मोहनलाल सुखाडिया के कार्यकाल में जागीरदारी प्रथा उन्मूलन, पंचायतराज का शुभारम्भ, राजस्थान नहर (इन्दिरा गांधी नहर) का निर्माण, राज्य में औद्योगिकीकरण एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। हरिदेव जोशी के कार्यकाल में माही व अनेक बांध बने व अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों का विकास हुआ।
भारत-पाक युद्ध के समय बरकततुल्ला खां की प्रशासनिक दक्षता ने सभी को अचंभित किया। शिवचरण माथुर के समय राज्य में योजनाबद्ध विकास हुआ व प्रशासनिक सुधार कार्य हुए। जगन्नाथ पहाडिया के समय सामाजिक समरसता को बल मिला। भैरोसिंह शेखावत के कार्यकाल में अन्त्योदय व काम के बदले अनाज योजना प्रारम्भ हुई। वसुन्धरा राजे सरकार में भामाशाह योजना व नगरीय सौन्दर्यकरण प्रारम्भ हुआ।
अशोक गहलोत के गत तीन कार्यकलापों में अकालग्रस्त क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रबन्धन, राज्य में रेल विकास, योजनाबद्ध नगर सौन्दर्यीकरण, औद्योगिक विकास, रिफायनरी, मेट्रो रेल, व्यक्तिगत लाभ की योजनाएं वृद्धावस्था पेंशन, जननी सुरक्षा योजना, स्त्री शिक्षा, जनकल्याणकारी निःशुल्क दवा योजना आदि सराहनीय योजनाएं प्रारम्भ हुई। स्थानीय शासन व पंचायतराज को बल मिला। स्वायत्तशासी संस्थाओं में चुनाव, दुग्ध के दामों में वृद्धि, कृषि ऋण माफी, कृषि सहायता कार्यक्रम आदि प्रारम्भ हुए। मुफ्त बिजली की व्यवस्था, सैनिक व स्वतंत्रता सेनानी कल्याण योजनाओं में वृद्धि हुई। चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, इन्दिरा रसोई, फ्लैगशिप योजना व विषिष्ट योजनाएं, कृषि, उद्योग, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। कोरोना महामारी प्रबन्धन में दुनियाभर में तारीफ हुई।
सभी क्षेत्रों में आशाजनक प्रगति हुई है, राज्य को विकसित राज्यों की श्रेणी में लाने हेतु लगातार विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। कामकाजी युवा फौज में वृद्धि हुई है। इंटरनेट, फेसबुक, ट्वीटर जैसी सूचना टेक्नोलोजी बढ़ी है। आज ई-मेल, एसटीडी, फैक्स, इंटरनेट जैसी दूरसंचार सेवाओं से सभी जिले जुड़ गये है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के अवसर व युवाओं की अपेक्षाएं बढ़ी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)