(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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लगभग पांच दशक पूर्व तक दक्षिण में मद्रास (अब चेन्नई) फिल्म निर्माण का एक बड़ा केंद्र था। अगर इसे और सही ढंग से कहा जाये तो महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई (तब बॉम्बे) के बाद मद्रास देश का दूसरा बड़ा फिल्म निर्माण स्थल था। उस समय यहाँ अच्छे स्टूडियो थे। तमिल के अलावा दक्षिण की अन्य भाषायें, कन्नड़, मलयालम तथा तेलगु फिल्मों का निर्माण यहाँ होता था। यहाँ तक कि यदा कदा हिंदी की फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ के स्टूडियो में हुआ करती थी।
चार दशक पूर्व और अविभाजित आंध्र प्रदेश में तेलगु के सबसे बड़े अभिनेता एन. टी. रामाराव थे। वे धार्मिक अथवा पौराणिक फिल्मों के सुपर स्टार थे। आंध्र प्रदेश में लोग उन्हें लगभग अवतार की तरह ही पूजते थे। 1980 के आसपास उन्होंने राजनीति में हाथ आजमाने का निर्णय। उन्होंने तेलगु देशम पार्टी का गठन किया। 1982 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी जीती तथा राज्य में पहली बार गैर कांग्रेस सरकार बनी जिसके मुख्यमंत्री एनटी रामाराव थे। उनके शासनकाल में हुए कार्यों में एक काम भी यह भी हुआ कि यहाँ फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने में कोई कमी नहीं रखी गयी। खुद फिल्म उद्योग से जुड़े होने के कारण उनकी इस क्षेत्र में विशेष रूचि थी। उनके समय यहाँ संभवत पहली फिल्मसिटी बनी जो कई हज़ार एकड़ में फ़ैली थी।
यहाँ उच्च श्रेणी के स्टूडियो बने। इनके चलते तेलगु और कन्नड़ सहित अन्य दक्षिणी भाषाओँ की फ़िल्में यहाँ बनने लगीं। राज्य की राजधानी हैदराबाद के जुबली हिल इलाके में दक्षिण के नामी गिरामी अभिनेता, निर्माता तथा निर्देशक बस गए। 2014 में आन्ध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना बनाया गया तो हैदराबाद तेलंगाना के हिस्से में आया तथा आन्ध्र प्रदेश को अपनी अलग राजधानी बनाने के लिए कहा गया। यह भी तय हुआ कि जब तक आंध्र प्रदेश खुद की राजधानी विकसित नहीं कर लेता तब तक दोनों प्रदेशो की राजधानी हैदराबाद ही रहेंगी। तेलंगाना के कटने के बाद बचे आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री तेलगुदेशम पार्टी के सुप्रीमो चन्द्र बाबू नायडू बने। वे एन टी रामराव के दामाद है। हालाँकि उनका फिल्म उद्योग से सीधा कोई जुड़ाव नहीं है लेकिन फिर भी फ़िल्मी परिवार से जुड़ा होने के कारण उनकी फिल्मों में रूचि थी।
लेकिन 2019 आंध्र प्रदेश कांग्रेस से टूट कर बनी वाईएसआर कांग्रेस सत्ता पर काबिज़ हुई। मुख्यमंत्री के रूप में जगन मोहन रेड्डी इन कोशिशों में लगे है कि हैदराबाद का फिल्म उद्योग उनके राज्य आ जाये। चन्द्र बाबू नायडू के काल में अमरावती को राज्य की राजधानी बनाने का निर्णय हुआ तथा इसका निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। लेकिन धन के अभाव में लक्ष्य के अनुसार पांच साल में नई राजधानी का निर्माण नहीं हो सका। जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने सत्ता में आते ही अमरावती में राजधानी के पिछली सरकार के निर्णय को बदल दिया। एक की बजाये तीन राजधानियां बनाने का निर्णय हुआ लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। अब यह नहीं पता की राज्य की राजधानी कहाँ होगी और कब तक बनेगी।
विशाखापटट्न आन्ध्र प्रदेश का दूसरा बड़ा शहर है। बंदरगाह तो है ही साथ में व्यापार का बहुत बड़ा केंद्र है। जगन मोहन रेड्डी इसी शहर को राज्य की प्रशासनिक राजधानी बनाने की इच्छा रखते है। व्यापारिक केंद्र के अलावा इस इलाके में बहुत से प्राकृतिक सुंदर स्थल हैं। दक्षिण की भाषाओं में बनने वाली बहुत से फिल्मों की शूटिंग इस इलाके होती है। जगन मोहन रेड्डी इस शहर को फिल्म उद्योंग के केंद्र के रूप में देखना चाहते है। पिछले दिनों तेलगु फिल्मों की बड़ी हस्तियों, जिसमें प्रसिद्ध एक्टर चिरंजीव तथा निर्माता निदेशक महेश बाबू भी शामिल है, से उनकी लम्बी मुलाकात हुई। जगन मोहन रेड्डी ने उनसे पेशकश की कि वे फिल्मसिटी बनाने वाली परियोजनाओं के लिए वे कई तरह की छूट देने को तैयार है।
आंध्र प्रदेश में सिनेमा घरों की संख्या तेलंगाना की तुलना से कहीं अधिक है। तेलगु भाषी फिल्मों की अधिकांश बड़ी हस्तियाँ आंध्र प्रदेश से ही आती है। तेलगु भाषा की फिल्मों को देखने वाले दर्शक भी आंध्र प्रदेश में ही अधिक है इसी के चलते तेलगु भाषा में बनी फिल्मों की कमाई का 60 प्रतिशत हिस्सा आंध्र प्रदेश से ही आता है। यहाँ फिल्म उद्योग का बढ़ावा देने के लिए सरकार क्या सुविधाएँ और रियायतें देगी यह अभी पूरी तरह सामने नहीं आया है। इस मुद्दे पर सरकार का रोड माप सामने आने के बाद ही पता चलेगा की हैदराबाद का फिल्म उद्योंग इस तरफ रुख करेगा या नहीं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)