दस्यु प्रभावित डांग क्षेत्र का विकास...!!

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

पूर्व अध्यक्ष, राज्य स्तरीय डांग क्षेत्र विकास बोर्ड

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आजादी के बाद राजस्थान के उल्लेखनीय एवं सराहनीय सर्वांगीण विकास के बावजूद राज्य का यह पूर्वी और दक्षिण पूर्वी जिलों का डांग क्षेत्रों भोगौलिक विषमताओं की वजह से अविकसित रहा। यह क्षेत्र बीहड़, पहाड़ी व अनुपजाऊ होने से दस्यु प्रभावित रहा और आधारभूत सुविधाओं, आर्थिक, सामाजिक,  शैक्षणिक उन्नति व विकास में पिछड़ गया।

डांग क्षेत्र के आठ जिलों में से चार जिले करौली, धौलपुर, भरतपुर, एवं सवाईमाधोपुर दस्यू प्रभावित रहे है। दस्यू प्रभावित जिलों की सीमाएं आपस में तथा अन्र्तराज्यीय सीमा मध्यप्रदेश एवं उतरप्रदेश राज्यों से मिलती है। उक्त जिलों का बहुत बड़ा भाग पहाड़ी एवं बीहड़ है। इन इलाकों में अधिकांश अनुसूचित जाति/जनजाति/एवं वंशाुनगत छोटे-बड़े अपराधों से जुड़ी गरीब पिछड़ी जातियां ही रहती है। इस क्षेत्र में पेयजल, विद्युत, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कों का विकास भी नहीं हो पाया है।

इस क्षेत्र में मुख्यतः गुर्जर, मीणा, जाटव, जाट, राजपूत एवं माली/कुशवाहा जातियां निवास करती है। इस क्षेत्र में मुख्य धंधा/व्यवसाय खेती, पशुपालन व पत्थर खनन है। शिक्षा का स्तर कम है एवं बाल बंधुआ मजदूरी का आलम है। अधिकांश इलाकों में वन क्षेत्र व सरकारी भूमि पर अवैध खनन बड़े पैमाने पर होता है और इस अवैधानिक एवं बिना मेहनत कमाए पैसे के कारण ही अपराध करने की प्रवृति बढ़ी है। सामाजिक रूप से जातिगत समूह बने हुए है। इनमें अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण डाकू बनना अपराध करना, महिमा द्योतक है। जातिगत भावना से स्वयं के जाति के डकैत, अपराधी को शरण, सुरक्षा, भोजन, सूचना देना व बच निकलने व भागने में मदद करना आम बात है। हत्या, अपहरण, चैथ वसूल लूट आदि की वारदातें आम है। आजकल अवैध शराब का धन्धा भी जोरो पर है। गांव-गांव मे शराब वितरीत होती है मध्यप्रदेश से आयात होती है। जिसमें मुख्य शिकार वैध एवं अवैध खनन में लगे मजदूर व ट्रांसपोर्टर होते है। खानों के मालिकों की आपसी प्रतिस्पर्धा भी इसमें सहायक है। इसके कारण नौजवान अपराधवृति की और बढ़ रहे है।

पूरे इलाके में उच्च शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें सिर्फ जिला एवं उपखण्ड मुख्यालयों पर ही उपलब्ध है। गांव स्तर पर प्राथमिक और पंचायत स्तर पर माध्यमिक स्तर की शिक्षा का इंतजाम नहीं है। सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों की गहरी पैठ है। जातिवाद नकारात्मक रूप में प्रभावी ढंग से जड़ें जमाए हुए है जिससे जातीय पंचायतों का बोलबाला और मनमाना व्यवहार है। जाति आधारित संघर्ष एवं कटुता यहां के लोगों समाजों में कूट-कूट कर भरी हुई हैं। क्षेत्र का राजनेतिक नेतृत्व भी क्षेत्र के समंवित, संतुलित व समग्र विकास के वायदों को पूरा करने में पूर्णतया असफल रहा। जातिवादी राजनीति ने सक्षम नेतृत्व को उभरने नहीं दिया।

शिक्षा के विस्तार और गरीबी, बेरोजगारी उन्मूलन के लिए अनेक विशिष्ट योजनाएं बनी। परन्तु इस क्षेत्र की समस्याओं के समाधान मे जरूरत के अनुरूप विकास कार्य नहीं हुए। इस क्षेत्र में आधाभूत सुविधाओं के विकास कराने के उद्देश्य से डांग क्षेत्र विकास योजना 1995-96 में प्रारंभ की गई। परन्तु बजट के अभाव में वस्तुत कुछ कार्य नहीं हुआ। डांग योजनान्र्तगत पूर्ववर्ती सरकारों ने प्रारम्भिक वर्षो 2004 से 2010 तक 7 वर्षो में मात्र 25 करोड़ रूपये आंवटित किए। अशोक गहलोत सरकार ने इसे बढ़कर 100 करोड़ कर दिया। इस क्षेत्र की रेवाइन्स (बीहड़ो) की भूमि को समतल कर भूमिहीन को आंवटित करने की क्रान्तिकारी योजना के तहत 25 करोड़ रूपया पृथक से आंवटित किये। ऐसे कार्य जो विभिन्न योजनाओं से डबटेल करते हुए अन्य योजनाओं में भी निष्पादित करवाए जा सकते है, उन्हें चिन्हित किया जाएगा व अन्य विभागीय योजनाओं के मदों में उपलब्ध राशि का क्षेत्र के विकास के लिए उपयोग करने की सहमति बनी। सड़को के निर्माण को सर्वाधिक प्राथमिकता दिया जाना आवश्यक है।

डांग क्षेत्र में वैटड्रिलिंग प्रारम्भ नहीं होने से सिलीकोशीश की बीमारी भंयकर रूप से बढ़ रही है। सिलीकोसिस का प्रभाव 78.5 मजदूरों में प्रतिशत तक हो गया। इसमें 43.71 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 31.48 अनुसूचित जनजाति, और पिछड़ी जातियों के लोग है। तम्बाकू पीने वालो में तो यह 73.2 हो चुकी है। सहरिया आदिम जाति में तो 82 प्रतिशत श्रमिकों में दमा व सिलीकोसिस की बीमारी बताई जा रही है। श्रमिकों के लिए क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाए उपलब्ध नहीं है। श्रमिकों की औसत आयु घट गई है। गांव के गांव ऐसे है जिनमें केवल विधवायें रह रही है। उनके व्यवसाय के लिए केाई साधन व संभावना नहीं है।

डांग क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप आधारभूत सुविधाओं के विकास से एक नये परिवर्तन की आवश्यकता है। क्षेत्र के सुचारू विकास के लिए ट्राइवल सब प्लान की तरह इस क्षेत्र की सब प्लान बने, उसमे सभी विभागों को सम्मिलित कर सम्पूर्ण क्षेत्र के विकास को प्रारम्भ किया जाये, तब सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्र में विकास होगा। केवल डांग विकास बोर्ड को प्राप्त मामूली राशी से क्षेत्र में बहुप्रतिक्षित विकास नहीं हो सकेगा। गरीबी, बीमारी बेरोजगारी व अशिक्षा के कारण यह क्षेत्र पिछड़ता जाएगा। अपराध बढ़ते जायेंगे।

दस्यू समस्या के निराकरण के लिए पुलिस व सुरक्षा उपायों को मजबूत किये जाने की आवश्यकता। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के अपराधी क्षेत्र में घुसकर अपराध को बढ़ावा दे रहे है। पुलिस बल में वृद्धि, चैक पोस्ट की स्थापना, वाहन, संचार तंत्र व गुप्तचरी तंत्र को मजबूत बनाने, नए थानों की स्थापना तथा पुलिस थानों में कम्प्यूटर, इंटरनेट जैसी सुविधा व आधुनिक हथियार उपलब्ध कराना अतिआवश्यक है। डांग क्षेत्र में एक ओर जहां दस्यु समस्या के निराकरण हेतु पुलिस व सुरक्षा तंत्र को भी आवश्यकतानुसार मजबूत करने की आवश्यकता है। रेवाइन्स (बिहड़ों) को समतल करने का कार्य प्रारम्भ करना आवश्यक हैं। ऐसी समतल जमीन क्षेत्र के भूमिहीन किसानों को आंवटित की जाएगी। वहीं क्षेत्र में पशुपालन व दुग्ध उत्पादन वृद्धि के लिए पशु संवर्धन व पशु पालन को महत्त्व दिया जाना आवश्यक है। डांग क्षेत्र में अवैध शराब व नशीले पदार्थ, अवैध हथियार, महिला अत्याचार के मामलों के लिए विशेष प्रबन्ध आवश्यक है। सहकारिता आन्दोलन भी मृतप्राय है, उसे पुन्रजीवित करने की आवश्यकता है।

डांग क्षेत्र में पत्थर उद्योग, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए धौलपुर, गंगापुर वाया करौली रेलवे लाइन के कार्य का शिलान्यास हुआ था परन्तु राजनीतिक कारणों से, दुर्भाग्य से कार्य रूका पडा है। रेलवे लाइन से पत्थर उद्योग विकसित होगा। पेयजल योजनाएं भी इस्टर्न कैनाल परियोजनायें स्वीकृतिक नहीं होने से प्रारम्भ नहीं हुई। औद्योगिक एवं पर्यटन विकास के क्षेत्र में राज्य सरकार ने इस क्षेत्र को प्राथमिकता नहीं दी है। नवीन खनीज क्षेत्रों व उत्पादों का खोज कार्य भी गत सरकार ने बंद कर दिया। मासलपुर में स्टोनमार्ट की स्थापना भी रूकी पड़ी है। कैलादेवी में अभयारण्य से जन असुविधा बढ़ी है। पर्यटन का कोई इजाफा नहीं हुआ। ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थलों आदि के सुधार एवं सौंदर्यीकरण के कार्य नहीं किए जा रहे हैं। क्षेत्र की खनिज सम्पदा के उपयोग एवं विकास हेतु सड़कों, दूरसंचार लाइनों, पेयजल एवं बिजली लाइन की आवश्यकता है। क्षेत्रवाद व जाति के आधार पर अधिकारी/कर्मचारियों के पदस्थापन होते है। योजनाओं के क्रियान्वयन से जुड़े अधिकारियों एवं कर्मचारियों को जबाबदेह बनाने के लिए प्रशासनिक पुर्नगठन की आवश्यकता है।

सौभाग्य से लोकप्रिय एवं जनहितैषी मुख्यमंत्री, अशोक  गहलोत ने प्रदेश के सभी क्षेत्रों का समन्वित एवं संतुलित और समग्र विकास के संकल्प के साथ दस्यु प्रभावित डांग क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए सशक्त पहल की है, जिसके कुछ सार्थक परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)