फिल्मी हस्तियां असल ज़िन्दगी में भी बड़े दिलदार होते हैं : नवीन जैन

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फिल्मी दुनिया के लोग असली जीवन में भी बड़े दिलदार होते हैं। हाल की बात है। अभिनेता सलमान खान ने बुराहनपुर के जग - प्रसिद्ध शायर नदीम  अख़्तर काज़मी बुराहनपुरी की एक मशहूर ग़ज़ल यूट्यूब पर सुनी। ग़ज़ल के पहले दो शेर हैं -- वो मेरे पास आना चाहता है, मग़र कोई बहाना चाहता है, यूँ ही उलझा नहीं पाँव मेरा, कोई मुझे गिराना चाहता है। सलमान खान इस ग़ज़ल को सुनकर अपने को रोक नहीं पाए। उन्होंने किसी तरह उक्त शायर साहब से सम्पर्क किया और कहा कि आज से आपकी यह ग़ज़ल मेरी भी हुई। काम की बात, तो यह है कि सलमान  खान ने नदीम बुराहनपुरी के बैक खाते में रुपए पचास हज़ार भी ट्रांसफर करवा दिए। इस पूरे वाकये की तस्दीक खुद उक्त शायर साहब बार-बार मुशायरों के मंच से करते रहते हैं। निजी जीवन में प्राण सिकंद साहब भी ऐसे ही दिलफेंक व्यक्ति थे। उन्हें नई नई कलाई घड़ियां बाँधने का शौक था। शूटिंग दस्ते का कोई भी सदस्य उनकी घड़ी की तारीफ़ करता, तो वह घड़ी उसे उपहार में दे दी जाती। 

धमेंद्र पाजी की माताजी ने एक बार अपने पुत्तर से वादा लिया कि कई लड़कियां फिल्मों में काम के भुलावे में मुंबई आ जाती हैं। पुत्तर, जब कोई ऐसी युवती तुम्हें मिले, तो उसे अपने बंगले में सुरक्षित रखना। धरम पाजी ने इस तरह की 25-30 लड़कियों को न सिर्फ़ 24 घण्टे के गार्ड लगाकर सुरक्षित रखा, बल्कि समझा बुझाकर उनके घर वापस भी सकुशल भेजा। एक बार सदाबहार अभिनेत्री रेखा गाड़ी ड्राइव करते हुए फ़्लोरा फाउंटेन सिग्नल पर रुकीं। किसी महिला ने स्टेयरिंग सीट के बाहर से उनके चमचमाते नेक लेस की इशारे से तारीफ कर दी। रेखाजी ने खिड़की का शीशा उतारकर अपना नेक लेस उक्त महिला के सुपुर्द कर दिया। रेखाजी अक्सर विवादों में रहती आई हैं, लेकिन इन सब से बेपरवाह रही शायद इसीलिए सिलसिला, इज़ाज़त, घर, खून भरी माँग, सुहाग और उमराव जान जैसी फिल्में दे पाई। कहते हैं, रेखाजी जैसी सरपट इंग्लिश आज भी देश में कम ही महिलाएं बोल पाती होंगी।

सोनू सूद ने कोविड 19 की अल्प प्रलय की बेला में लोगों की जो मदद की उसका तो सूद भी कोई नहीं उतार पाएगा। इस बारे में मीडिया में काफ़ी - कुछ आ चुका है, लेकिन सलमान खान, जिनका जन्म लता मंगेशकर की जन्म स्थली इन्दौर में ही हुआ है, कोरोना काल में फिल्मी श्रमिकों के लिए फरिश्ता बनकर आए । उन्होंने इन हज़ारों श्रमिकों की आर्थिक मदद के लिए मुहावरे में कहें, तो दोनों हाथों से अपनी दौलत लुटा दी। अभिनेत्री जूही चावला का इस मामले में भी जवाब नहीं। उन्होंने  उक्त श्रमिकों को चावल की खेती करने के लिए अपनी निजी ज़मीन में से काफ़ी बड़ा टुकड़ा उपलब्ध करवा दिया। फसल जब आई, तो एक छोटा-सा हिस्सा अपने पास रखा, बकाया श्रमिकों के पास रहने दिया। 

चर्चित अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने महामारी के दौरान मोटी रकम का चंदा एकत्र किया और  हिट अभिनेता अक्षयकुमर को इसी दौरान मुंबई पुलिस के एक जवान ने सिर्फ़ इतना ही कहा कि आम लोगों  ने ही आप जैसों को आँखों का सितारा बनाया। हम पुलिस वालों से ,तो जनता डरती है , लेकिन आप लोग, तो अपने राज महलों में आराम फरमा रहे हैं। अच्छा नहीं कर रहे हैं साहब आप लोग। अक्षयकुमार के दिल पर ऐसी गहरी चोट लगी कि उन्होंने भी कोरोना ज़रूरत मंदों की मदद के लिए दोनों हाथ खोल दिए।नाना पाटेकर के ना- ना रूप हैं। इस अभिनेता की इच्छा थी कि सेना में कमीशन प्राप्त करे ,लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। देश भक्ति की वह भावना इस अदाकार में ज़िंदाबाद रही हरदम। जब उनकी यशवंत फ़िल्म ने खिड़की तोड़ बिजनेस किया, तो तब मीडिया में रिपोर्ट्स आई कि इस अभिनेता ने उक्त फ़िल्म की पूरी फीस एक एनजीओ को सहयोग स्वरूप दे दी। एक बार जब दंगों में मुंबई जल उठी, तब नाना पाटेकर दंगा पीड़ितों की जान बचाने दंगाई इलाकों में घुस गए। उनके लिए चंदा एकत्र किया। बाद में नाना का बयान आया कि यदि मैं (नाना पाटेकर) उक्त काम नहीं करता, तो तय था कि खिड़की से कूदकर जान दे देता। 

महान गायक मोहम्मद रफ़ी असली जीवन में, तो ज़्यादा महान थे। अपने एक गाने की रिकॉर्डिंग करने वे लिफ्ट से रेकॉर्डिंग स्टूडियो में जा रहे थे। लिफ़्ट मैन उन्हें जानता था। उसने हिचकते हुए अपनी बिटिया की शादी का दावतनामा उन्हें दिया और कहा आइयेगा साहब जरूर से। रफ़ी साहब चुप रहे। लिफ़्ट मैन की तरफ़ देखा तक नहीं। लिफ़्ट मैन ने सोचा उसने गलती कर दी। इतनी बड़े आदमी को कहाँ फुर्सत ? लेकिन, जब मोहम्मद रफ़ी वापस लौटने लगे, तो गाने के संगीतज्ञ से कहा इस लिफ़ाफ़े में उक्त गाने की जो मेरी पूरी फीस है न, उसमें कुछ नोट तुम भी रखो, और इस लिफ़्ट मैन को दे दो। इनकी बिटिया का विवाह है। ख़ुशी के मारे लिफ़्ट मैंन की आँखें छलक पड़ी। बाद में रफ़ी साहब उक्त विवाह समारोह में भी शामिल हुए। गायक स्व. मुकेश के घर के पास ही एक कपड़ों की इस्त्री करने वाले की दुकान थी। मुकेशजी का अक्सर आना - जाना लगा रहता था। इस्त्री कर्मी दोस्तों को बताता कि ये मुकेश साहब हैं न अपने दोस्त हैं। दोस्तों ने कहा तो फ़िर तुम अपनी बिटिया की शादी में मुकेशजी को निमंत्रण देना। इस्त्री करने वाले ने निमंत्रण - पत्र दे दिया। बोला, आना साहब ज़रूर से।एक छोटे आदमी की शान बढ़ेगी। विवाह के दिन मुकेश पूरी तैयारी से गए यानी उनके साथ तमाम साजिंदे भी थे। इस्त्रीवाला घबरा गया। मुकेशजी से बोला, ग़रीब आदमी हूँ साहब। इन लोगों की फीस कैसे दूँगा। मुकेशजी ने कहा, राजा तुम्हारी बेटी मेरी भी बिटिया है। फिर स्टेज बनवाकर मुकेश जी देर तक खुद गाते रहे। और, जाते में मोटी राशि नव युगल को भेंट करते गए। मुकेशजी जब भी मुंबई दिल्ली में कार से बाहर निकलते, तो ज़रूरत मंदों को कम्बल, चादर वगैरह वितरित करते जाते। एक बार एक व्यक्ति फुटपाथ पर बैठा उन्हीं का गाया हिट गाना - दुनिया बनाने वाले काहे को दुनिया..........!!! मुकेश जी ने  गाड़ी से उतरकर पूछा यह गाना तुमने कहाँ सुना। वो कोई भोला-भाला आदमी था। बोला, रेडियो पर सुन लेते हैं साहब। मुकेशजी ने कहा मैं ही, तो मुकेश हूँ। फ़िर उस व्यक्ति के लिए अपने लाइव कंसर्ट के फ्री टिकटों का इंतजाम करवाया और कहा आना ज़रूर। वो आदमी पत्नी को भी ले गया। 

बहुरंगी अभिनेत्री स्व. मीना कुमारी का मिज़ाज़ बहुत अलग था। शूटिंग के अलावा कहीं आती- जाती नहीं थी। लगभग तन्हा ही रहती और शायरी करती रहती। एक बार किसी अनजान व्यक्ति ने, जो उनके अभिनय से बेहद प्रभावित था, ने अपने बेटे के विवाह-समारोह का दावतनामा उन्हें दिया। मीनाजी न सिर्फ़ वहाँ गईं बल्कि शायरी भी सुनाती रही देर तक और फिर एक मोटी रकम भेंट में देकर लौटी। 

रोमांटिक अभिनेता राजेश खन्ना फिल्मी दुनिया में मनमौजीपन के शिकार थे। उनके बारे में जुमला आम था - ऊपर आका नीचे काका। काका सुबह की चाय अपने खानसामा के हाथ से बनी हुई ही पीते थे। एक दिन वो बंदा काफी लेट हो गया। मुंबई की लोकल ट्रेन मिस हो गई थीं। उसने काका को डरते - डरते सब कुछ बता दिया। काका उठे, और अपनी बड़ी कार की चाभी उसके हवाले कर बोले कल से तुम इस कार से आना। आज से यह गाड़ी तुम्हारी हुई।ऋषि कपूर कैंसर के कारण जल्दी चले गए, लेकिन फिल्मी  रोमांस, तो फ़िर भी नकली होता है, लेकिन असली जीवन में अपने साथियों के साथ  उन्होंने असली रोमांस किया। 


याद करें राजकिरण नाम के रोमांटिक हीरो का भी एक ज़माना था। राजकिरण को किसी मामले में सजा हो गई। जब वे बरी हुए, तो विदेश चले गए। कहा गया था कि राजकिरण वहाँ टैक्सी चलाने लगे थे। ऋषि  कपूर की तबीयत तब चुस्त - दुरूस्त थी। वे, राजकिरण को ढूंढते हुए अमेरिका पहुंच गए। वहाँ पता लगा कि राजकिरण किसी मनोरोग चिकित्सालय में भर्ती है। अमेरिका में कानून बड़े सख्त हैं। ऋषि कपूर चाहकर भी कुछ नहीं कर सके। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश में पोलियो उन्नमूलन में अमिताभ बच्चन का निर्णायक रोल रहा। इस शो की एक्टिंग, स्क्रिप्ट राइटिंग, डायरेक्शन - सभी कुछ अमिताभ बच्चन ने ही किया, और कोई फीस  नहीं ली। इस शो कहानी भी बड़ी रोचक है। पहली बार के शो में दो बूंद ज़िंदगी की नाम से बना यह शो कोई खास कमाल नहीं दिखा सका। 

अमिताभ अपनी आदत के अनुसार चुनौती को उससे बढकर चुनोती देने में विश्वास रखते हैं। उन्होंने फिर से नया शो बनाया। इसकी स्क्रिप्ट में उन्होंने अपने चिर-परिचित गुस्साए अभिनेता के रूप का इस्तेमाल किया। उनके डायलॉग थे, क्यों आज कौंन सी तारीख है? कौनसा विशेष काम है आज? सब छोड़ो। बच्चों को दो बूंद ज़िंदगी की पिलाकर लाओ। इस डपट से तो उक्त शो ने समाज में जो नई चेतना पैदा की वह किसी परिचय की मोहताज नहीं। (लेखक का जबरदस्त अध्ययन और अपने अनमोल अशआर (शब्द), लेखन है)

लेखक : नवीन जैन 

इंदौर (एमपी)

(लेखक स्वतंत्र, वरिष्ठ पत्रकार हैं)