विश्व विरासत दिवस : जयपुर का स्वरुप व विरासत संरक्षण

विश्व विरासत दिवस 18 अप्रेल

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

(लेखक पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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विदेशी पर्यटकों व देश के प्रमुख नगर नियोेजको ने स्वीकार किया है कि जयपुर का स्वरुप और विरासत नष्ट हो रही है और इसे  अब भी नही बचाया गया तो स्थिति डरावनी व विस्फोटक हो जायेगी और इसका हैरिटेज स्वरुप कायम रखने की घोषणाएं धरी रह जायेगी। उनका कहना है कि जयपुर को शतरंज की विसात समझ लिया गया है और शतरंज भी भांति भांति के खिलाडी खेल रहे है। मूल स्वरुप बरकरार नहीं रखपाने के लिए उन्होंने बढती आबादी, अनाधिकृत, अवैध, व अनियोजित निर्माण, राजनैतिक- प्रशासनिक इच्छा शक्ति की कमी, ठोस कार्य योजना नहीं होना कारण बतायें हैं। उन्होंने शहर को बचाने के लिए हाई पावर हैरिटेज संरक्षण समिति जिसमें जयपुर के प्रतिष्ठित नागरिक हो, उससे राजनेता पृथक हो विशेषज्ञो, नियोजकों व व्यवसायिक वर्गो की भागीदारी हो। उन्होने शीघ्रातिशीघ्र निश्चित व अपरिवर्तनीय कार्य योजना, एक्शन प्लान व वस्तुकला के रेस्टोरेशन की जरुरत बताई।

हैरिटेज सिटी घोषित तो हो गया कार्य योजना नही बनी। कार्य योजना बनाने व मूर्त रुप प्रदान करने की व्यवस्था नही की गई। जयपुर के नष्ट होने का मुख्य कारण बढता नगरीयकरण व सीमेंट कंक्रीट के अनियमित निर्माण है। स्थिति यह है कि हवा महल के आसपास तक कब्जे हो गये है। परकोटे में सभी तरह के विज्ञापन पट्ट  लग गये है। नगर निगम व सरकार में बैठे राजनेताओं की दृष्टि अगले 2-3 साल तक की हो गई है। वे इस दौरान राजनैतिक दृष्टि से फायदा देखते हैं। हकीकत यह है कि पिछले कुछ वर्षाे में नियोजन परदे के पीछे चला गया है। नियोजको की जगह अधिकारियों व राजनेताओं ने हथियाली है।

जयपुर की सबसे बडी समस्या यह है कि यहां दिल्ली व अन्य बडे शहरों की सारी बुराईयों को ग्रहण किया जा रहा है। इससे शहर का मूल स्वरुप ही नष्ट होने लगा है। विकास एजेन्सियां अत्यन्त कमजोर संस्थाएं है। सुचारु मास पब्लिक ट्रांसपोर्ट नही है। नगर धीरे धीरे ऐसे मुकाम पर पहुंच रहा है कि अब इसे नही बचाया  तो इसकी पहचान ही खत्म हो जायगी। गुलाबी नगर के नाम से दुनियां भर में मशहूर जयपुर की खास संरचना है। अब नियोजको की सुनवाई नही होती। यह हकीकत है जिसके पास ज्ञान है उसके पास अधिकार नही है, जिसके पास अधिकार है, उसके पास ज्ञान नही है। विकास एजेन्सियां के सर्वाेच्च पदो पर राजनैतिक व प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं बिठाना चाहिए। उनके स्थान पर नियोजन विशेषज्ञो को पदासीन करना चाहिए। आज प्रशासन मे शतरंज की चाल चलने वाले कोई ओर हो गये और प्यादे कोई ओर। मास्टर प्लानों में योजनाओं को सुक्ष्मस्तर तक नही दर्शाया जाता। प्लान निर्मित करने वालो के पास पूरी जानकारी नहीं है।

अब तो योजनाकारो को मास्टर प्लान की अवधारणा बदल कर जयपुर के अनुरुप कार्य योजना तैयार करनी चाहिए। मास्टर प्लान की थ्योरी आउट डेट हो गई है। रीजनल, सेक्टर व सुक्ष्मस्तर प्लान, उपनगरों की विकास योजनायें बनने लगी है। अब शहर में लगातार दबाव बढ रहा है। आबादी के बढते घनत्व को रोकने व कम करने की कोई योजना नही है। क्रियान्वयन के पहले संसाधन जुटाने आवश्यक।

परकोटे के बाजारों में नवीन निर्माण पर रोक लगे कुछ बाजारों में एक तरफा यातायात हो तो कुछ बाजारों में पूरी तरह रोक लगे। प्रभावी तरीके से कानून लागू किये जाये अन्दरुनी षहर के लिए अलग से कानून व कार्य योजना बने। नगरीय कला आयोग, जो हैरिटेट संरक्षण के कार्य को देखें, का गठन किया जाए। विख्यात नियोजक विशेषज्ञों को शामिल किया जाय। शहर की पुरानी सम्पदा को सुरक्षित रखने के लिए इमारतो का सर्वेक्षण किया जाय। एक-एक ईमारत की योजना तैयार की जाय, इस कार्य के लिए विशेष कानून बनाने की जरुरत हो तो बनाया जाय। धनाभाव नही रहे इसके लिए हैरिटेज कोष की स्थापना की जाय। जिन लोगांे को सरकार से सहायता या रियायत की आवष्कता है वे इस कोष में अंशदान करें। वित्तीय संस्थाओं व कोष से सहायता उपलब्ध कराई जाय। सर मिर्जा इस्माईल ने पूरे शहर में बरामदे बनवाने को जो प्रक्रिया अपनाई थी उसे अपनाया जाये। जिन स्थानों पर निजी भवनों व स्थानों के मालिक संरक्षण और रेस्टोरेषन में सक्षम नहीं हो। ऐसे स्थानों पर सरकार स्वयं कार्य करें।

अंषदान करने वाले को आयकर में छूट मिले। पुरा स्मारको के संरक्षण का कार्य निजी क्षेत्र व संस्थाओं को भी सौंपा जा सकता है। आवासीय एवं व्यवसायिक गतिविधियों को पृथक किया जाय। थोक व्यापार को बाहर लाया जाय। पुरानी अनुपयोगी ईमारतो व निर्माण को हटा कर आवश्यकतानुसार अधिग्रहण कर  सुविधा क्षेत्र व पार्किग स्थल निर्मित किये जाये। राजकीय कार्यालयों को बाहर लाया जाय। जिन हवेलियां, मंदिरों व एतिहासिक स्थलो मे आवासीय एवं व्यवसायिक गतिविधियां चल रही है। उन्हें बंद किया जायं पुराने  नगर के वासिंदो को जहां पर आवश्यक हो बाहर लाकर निःशुल्क अथवा मामुली राशि में उपयुक्त स्थल उपलब्ध कराये जाय। अतिक्रमनों व अवैध, अनियोजित निर्माणों को हर हालत में हटाया जाए।

शहर की प्राचीनता को कायम रखने के लिए हाई राइज बिल्डिंग बनाने पर रोक लगाई जाय। नगर में मिनीबसे प्रभावशाली लोगो के नेतृत्व में चल रही है, अपने सगठनो को एक निश्चित धन राशि देती है। इसके बाद इन्हें पूछने वाला कोई नहीं है। पूरे नगर में मुख्य स्थानों पर आवारा पशु घुमते है। नगर के बाजारों व रास्तों व गलियों में अनुशासनहीन छोटे ट्रक, बसे, मिनीबसे, टूव्हिलर, थ्रिब्हिलर, बैल गाडिया, रिक्शा, साईकिल, कारे पूर्णतया अनियंत्रित रुप से चल रही है। अनेक स्थान डेथ ट्रेक बन गये है। टूटे शाकपिट, टूटी सिवरेज लाईने, अनियंत्रित घ्वनी प्रदुषण, पीने के पानी की कमी, गंदगी बढती, कच्ची बस्तियां नगर में व्याप्त अव्यवस्था को दर्शाती है।

जयपुर की आबादी 5 प्रतिशत से अधिक दर से बढ रही है। पुराने जयपुर का तब तक भला नहीं होगा जब तक विशेषज्ञ एवं जयपुर के प्रतिष्ठित मूल नागरिकों को सम्मिलित कर सक्रियता एवं कठोरता से निर्धारित कार्य योजना को क्रियान्वित नहीं किया जायेगा।

अब जरुरत है शहर का खासकर प्रतिष्ठित नागरिकों व विशेषज्ञों से विस्तृत विचार कर सरकार द्वारा कार्य योजना बनाने की। अब शहर बचाने के लिए स्वयं मुख्य मंत्री को पहल करनी चाहिए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)