रूस-यूक्रेन युद्ध : लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सजा पाई

कहीं ऐसा न हो कि लम्हों की ख़ता से सदियों तक सज़ा न मिले 

लेखक : नवीन जैन

इंदौर (एमपी) 

(लेखक स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार है) 

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रूस-यूक्रेन के बीच चल रही रस्साकशी के बीच एक जुमला बड़ा चर्चित हो रहा है, और वह यह कि ब्लादिमीर पुतिन यूक्रेनियों से जैसे कह रहे हों, कि आप लोगों को ग़लत व्यक्ति से प्यार हो गया है। आप ईयू या नैटो के साथ गठबंधन नहीं कर सकते और इसके लिए मुझे आप लोगों को वापस घर लाने के लिए  आपकी पिटाई करने के साथ ही आपको खींचकर वापस लाना पड़े, तो मैं वैसा करने से भी चुकूँगा नहीं। पुतिन ने जो भाषण दिया उसका आशय यह भी निकाला जा रहा है कि यह भाषण, तो अखंड रूस  उद्घोषणा जैसा था। सनद रहे कि रूस 1990 में सोवियत संघ के रूप में बिखरकर मास्को के नाम से भी जाने जाना लगा है। जो हो, लेकिन यह ऊपर वाले की लीला ही कही जाएगी जब कोविड 19 काल से विश्व भर में 60 लाख लोग असमय काल का ग्रास बन चुके हों और कोरोना का उक्त अल्प प्रलय अभी तक रुका नहीं हो तब विश्व की दो महाशक्तियां अपने-अपने स्वार्थों के लिए मानव सभ्यता के भविष्य से  खतरनाक खेल खेल रही हैं। दूसरे विश्व युद्ध में भी अमेरिका ने सनक में आकर जापान के दो शहरों नागाशाकी और हिरोशिमा को मौत का जंगल बना दिया था। तब क्या भरोसा कि इस तरह की सनक पुतिन या जो. बाइडेन के सिर पर सवार न हो जाए। उत्तरी कोरिया का जालिम शासक किम जोंग उन सनकी कप्तान ही तो कहा जाता है, जो अपने लोगों को ही हंसने ही नहीं देता। लाखों यहूदियों को भून देने वाला रुडोल्फ हिटलर सनकी या कसाई ही था न। भारत ने सदियों तक विदेशी आतताइयों के जुल्म सहन किए हैं। मतलब वही कि लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सजा पाई।

आज तक कोरोना का इलाज, तो क्या सम्पूर्ण रूप से कारगर टीका तक विकसित नहीं हो पाया है और हालात ऐसे हो रहे हैं कि कभी भी रूस और यूक्रेन के बीच  युद्ध छिड़ सकता है। यदि वाकई ऐसा होता है दुर्भाग्यवश, तो आशंका निर्मूल नहीं होगी न कि यह युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील हो जाए और लगभग पूरी दुनिया इसकी ज़द में आ जाए ,भले सभी देश आपस में न लड़ें। जर्मनी के चांसलर तक ने कह दिया है कि रूस और यूक्रेन के बीच कभी भी जंग छिड़ सकती है। अफसोस की बात यह है कि पुतिन ने बयान दिया है कि चूँकि तमाम राजनयिक कवायदें नाकाम  सिद्ध हो चुकी हैं, इसलिए अब कार्यवाही ज़रूरी है।यदि पुतिन यूक्रेन पर हमले का अंतिम आदेश दे देते हैं, तो परम्परागत युद्ध के परमाणु युद्ध में बदलने की आशंका इसलिए बलवती हो जाएगी, क्योंकि रूस के  परमाणु जंगी बेड़े ब्लैक सी में लंबे समय से परमाणु युद्ध अभ्यास कर रहे हैं। उधर ,चीन की मथुरा फ़िर निराली बस रही है। यह कहने में कौन सा गुनाह है कि चीन से ही सबसे पहले कोरोना निकला। दशकों पहले इसी तरह की पेंडमिक प्लेग ऊर्फ़ ब्लैक डेथ भी ड्रैगन नाम से सुशोभित इसी देश से निकली थी। अमेरिका के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दावे किए कि नब्बे दिन में पता लगा लिया जाएगा कि कहीं चीन ने कोरोना वायरस को अपनी प्रयोगशाला में विकसित करके दुनिया के हवाले, तो नहीं किया है? लेकिन, अफसोस कि कोई अधिकृत रिपोर्ट आज तक नहीं आई। इसी बीच चीन ने नम्बर वन महाशक्ति बनने की होड़ में अमेरिका के साथ भारत को भी नीचा दिखाने की अमानवीय कोशिश की। इसी के तहत मैक-5 से ज़्यादा गति की मिसाइलें दागकर  चमकाना शुरू कर दिया। इस देश को रूस समझा बुझा सकता था, क्योंकि दोनों ही मूलतः वामपंथी हैं, लेकिन रूस ने भी तो पूर्वी यूक्रेन के अलगाववादी इलाको डोनेस्क औऱ लुहान्सक को स्वतंत्र घोषित करके यूक्रेन की सार्वभौमिकता को न सिर्फ तार-तार कर दिया, बल्कि आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया। बताइए, विश्व बिरादरी में ईमानदारी से कौंन पुतिन के तर्कों से सहमत है या उसका साथ देने  की मनःस्थिति में है। ब्रिटेन ने अपने यहाँ रूस द्वारा संचालित पाँच बड़े  बैकों पर फिलहाल रोक लगा दी है और जर्मनी ने एक बड़े गैस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए हैं। यूएन की सुरक्षा परिषद ऐसे में सिर्फ़ बयानबाज़ी ही कर सकती है। रूस को जिस तरह से तन्हा किया जा रहा है, उसकी तुलना अफगानिस्तान में तालिबान के  नृशंस हस्तक्षेप से यदि की जा रही है ,तो बताइए ग़लत क्या है इसमें ?और ,ऐसे में भारत के दिग्गज परमाणु वैज्ञानिक स्व. डॉक्टर राजा रमन्ना के वक्तव्य का हवाला भी दे ही दिया चाहिए न। डॉ. राजा रमन्ना ने स्पष्ट कहा था कि एटॉमिक वॉर में हवा के बहाव की दिशा भी  निर्णायक सिद्ध हो सकती है। समझदार को इशारा काफी।

पुतिन को इस बात पर गौर करना चाहिए कि यूक्रेन में सेना भेजने के उनके निणर्य से अमेरिका, ब्रिटेन एवं यूरोपियन देशों के 27 देश उसके खिलाफ एक तरह से लामबंद हो गए हैं। खुद रूस के डर का यह प्रमाण है कि उसने भी यूक्रेन से अपने सभी राजनयिकों को वापस बुला लेने का फैसला ले लिया है। इसी बीच कुछ सकारात्मक संदेश भी मिले हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलीनस्की ने फ्रांस और जरमनी के राजनेताओं से बात करने के बाद अपने देश की सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई है। जो. बाइडेन ने यह तो कहा है कि वे युद्ध को टालेंगे। रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाएंगे, लेकिन लगे हाथ यह भी जोड़ दिया कि उनका देश यूक्रेन को हथियार एवं अन्य सैन्य सामग्री की आपूर्ति जारी रहेगी। माना जा रहा है कि अमेरिका दुनिया को बाज़ार समझने या उकसाने की अपनी उक्त नीति पर मानवता के हित में पुनः विचार करे। और, जहाँ तक भारत के हितों का सवाल है, तो फिलहाल भारत इस स्थिति में नहीं है कि उक्त दोनों महाशक्तियों के बीच संवाद-सूत्र बने। गुट निरपेक्ष आंदोलन के की बात और थी। तब स्व. इंदिरा गाँधी जैसी दूर दृष्टि सम्पन्न महिला प्रधानमंत्री थीं। भारत की प्राथमिकता अपने लोगों को यूक्रेन और रूस से भी सुरक्षित निकालने की होनी चाहिए। (लेखक ने यह लेख युध्द शुरू होने के कुछ दिन बाद ही लिख दिया था जो आज सच होता नज़र आ रहा है। लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)