अस्पृष्यता की अवस्थिति : डा.सत्यनारायण सिंह

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

www.daylife.page 

भारत में जाति व्यवस्था हिन्दू समाज की नींव का पत्थर व अस्पृष्यता जाति व्यवस्था की देन है। दूसरे शब्दों में अस्पृष्यता भारत की जाति व्यवस्था का बाद में जोडा गया एक अतिरिक्त आयाम है। कट्टर धर्मतंत्र, शुद्धता और अशुद्धता के सिद्धान्त, धार्मिक अनुष्ठानों के आधार पर सामाजिक दर्जे का निर्धारण, विवाह के संबंध में अन्तर्विवाहीय व्यवस्था, जाति समाज की विषेषता है। इसका अर्थ हुआ उक्त आधार पर जन्म आधारित निम्न शुद्ध वर्ग के लिए धार्मिक अशुद्धि का कलंक तथा जन व्यवहार की दृष्टि से अयोग्य समझा जाकर पशुवत व्यवहार। इनके लिए मंदिर प्रवेश वर्जित था, शिक्षा व सम्पत्ति से वंचित थे, अन्य समाज व जातियों की सेवा से वंचित थे, स्कूल, सड़क, जलस्रोतों का उपयोग करने की मनाही थी। कुछ क्षेत्रों में तो इन्हें देखना भी पाप समझा जाता था।

महात्मा गांधी, मानववादियों एवं समाजशास्त्रीयों ने बडे कारूणिक शब्दों में इनकी असमर्थताओं का चित्रण किया किया है। कर्म एवं पुर्नजन्म पर आधारित अस्पृष्यता, छू देने मात्र से अशुद्धी एवं दूर रखने जैसी धारणाओं एवं विचारों का प्रभावशाली विवरण प्रस्तुत किया है, विरोध किया है। महात्मा गांधी ने लोगों के मन से ऊंच-नीच व अस्पृष्यता की भावना समाप्त करने का प्रभावशाली प्रयत्न किया है।

डाॅ. अम्बेडकर ने लिखा है ’’हिन्दू व्यवस्था में व्याप्त अस्पृष्यता अपने आप में पहेली है।’’ अछूतों को शुद्ध किया ही नहीं जा सकता, वे अशुद्ध ही उत्पन्न हुए हैं जब तक जीवित है अशुद्ध है वे अशुद्ध के रूप में मृत्यु प्राप्त करते हैं और अस्पृष्यता से कलंकित बच्चों को जन्म देते हैं। भारत में जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों की संख्या 17 प्रतिषत है। जनजातियों की 13 प्रतिशत है। अनुसूचित जातियाॅं व जनजातियाॅं देश के हर राज्य में फैली हुई है। इन अछूत जातियों के साथ सछूत पिछडों की जनसंख्या 55 प्रतिशत है। उनमें भी अनेक के साथ अमानुषिक व्यवहार होता है। सर्वाधिक उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में हैं। अनुसूचित जातियां अधिकांश: भूमिहीन कृषि मजदूर है। गांव की ऊंची जातियों व भूस्वामियों की कृपा ही इनकी जीविका है। कुछ अनुसूचित जातियां विशिष्ठ व्यवसायों चमडा कमाना, जूता बनाना, ताडी चलाना, टोकरी बनाना, सफाई करना आदि से जीविका अर्जित करती है। शिक्षा की दृष्टि से 1961 की जनसंख्या में 89 निरक्षर, 8 प्रतिशत नाम के लिए शिक्षित, 2.5 प्रतिषत प्रारम्भिक शिक्षा, 0.5 प्रतिशत माध्यमिक या ऊपर थी।

संविधान के अनुसार अस्पृष्यता को समाप्त कर दण्डनीय घोषित किया गया। षिक्षा, रोजगार, संसद तथा राज्य की विधानसभाओं व स्वायत्तशासी संस्थाओं में सुरक्षित प्रतिनिधित्व दिया गया है। आर्थिक विकास की योजनाओं में विशेष प्रावधान से सामाजिक और  आर्थिक स्तर में बढोतरी हुई है परन्तु हिन्दू समाज की जीवनधारा में एकीकृत करने व सामाजिक दर्जा ऊंचा उठाने में पुर्णतया सफलता नहीं मिली। अभी भी आर्थिक, शैक्षणिक, सामान्य जीवन दयनीय है। अनुसूचित जातियों व जनजातियाॅं आज भी शोषण व गरीबी की कहानी कहती हैं। आर्थिक व सांस्कृतिक दृष्टि से स्थिति नितान्त निम्न है। स्पष्ट नीतियाॅं, कार्यक्रम तथा उनका कार्यान्वयन अपेक्षित है। इन जातियों की भिन्न-भिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समस्याऐं हैं।

हर प्रकार की अस्पृष्यता के व्यवहार को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम सामाजिक अस्पृष्यता को हटाना आवश्यक है। व्यक्तिगत और परव्यवह्त छुआछुत की भावना मिटाना आवश्यक है। आज भी ग्रामीण भारत में अस्पृष्यता की बुराई अधिक है। कुछ वर्ग आज भी सर पर मैला ढोते हैं। कानूनन अस्पृष्यता अपराध है परन्तु वर्तमान में भी देष में अस्पृष्यता की भावना के अनुसार अनुसूचित जातियों से प्रत्याडना, अत्याचार, महिलाओं से दूराचार की घटनायें हो रही है। इच्छित परिणाम तभी मिल सकता है जब सामाजिक रोचक, आर्थिक समयबद्ध कार्यक्रम लागू हो, वैज्ञानिक कौशल अपनाया जाए। सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्तरों को उन्नत करने हेतु सभी साधन व कौषल को एक साथ लगाया जाए। अत्यधिक पिछडों को विषेष सहायता दी जाए। उच्च वर्ग पर आश्रय कम किया जाए। परम्परागत व्यवसायों का आधुनिकरण व कुटीर और लघु उद्योगों को बढावा दिया जाए, भूमिहीन परिवारों को सहकारी संगठनों से जोडा जाए। वित्तीय सहायता, प्रषिक्षण एवं भू आवंटन व  विशेष अनुदानों से रोजगार मुहैया कराये जाये। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)