लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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महात्मा गांधी ने सार्वजनिकतौर पर आज से 116 साल पहले 4 फरवरी 1916 को भारत में सार्वजनिकतौर पर पहला भाषण दिया था। इतिहासकार सुरेश मिश्र ने इसका बडा सुन्दर व प्रभावी वर्णन किया है।
गांधी जब 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटे तो गोपालकृष्ण गोखले से मिले। उन्होंने सलाह दी प्रथम एक साल भारत की यात्रा करे तत्पश्चात सार्वजनिक रूप से बोले। गांधीजी ने किसान की वेशभूषा में थर्ड क्लास में ट्रेन से भारत भ्रमण किया। आम लोगों की, जनता की, समस्याओं और व्यवस्थाओं को करीब से देखा व समझा। देशवासियों की गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, भुखमरी, शासन कुव्यवस्था, उसके कारण निराकरणों पर गहराई से समझा।
उन दिनों पं. मदनमोहन मालवीय राजा महाराजाओं, जमींदारों, धनपतियों से चन्दा लेकर बनारस में काशी हिन्दु विश्वविद्यालय निर्माण करा रहे थे। 4 फरवरी 1916 को विश्वविद्यालय का शिलान्यास कार्यक्रम रखा गया। तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिज तथा देश के अनेक राजा महाराजा पधारे। आमंत्रण प्राप्त कर गांधी भी पंहुचे। लार्ड हार्डिंज के साथ मंच पर श्रीमती एनीबेसेंट और मालवीयजी थे। मंच के एक ओर कीमती पोषाकों में जेवरातो से लदेकदे बैठे थे तो दूसरी ओर साधारण धोती कुर्ते में गांधीजी बैठे थे।
सभी भाषण अंग्रेजी में हुए। मालवीय जी के आग्रह पर महात्मा गांधी अंग्रेजी में भाषण देने खडे हुए। उन्होंने कहा ‘‘अपने देशवासियों को अंग्रेजी में, विदेशी भाषा में, संबोधित करने का मुझ पर दबाब डाला गया है।’’ उनकी स्पष्ट बात से श्रोता भोचक्के हो गये। कीमती पोषाके तथा जेवरातो से सजे राजा महाराजाओं को उन्होंने कहा जो लोग महल बनवाते है उनमें निवास करते है, ऐश की जिन्दगी बिताते है, वे असल में किसानों की मेहनत का शोषण करते हैं। भारत की गरीबी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा ‘‘राजा महाराजाओं को अपनी सारी दौलत, जो गरीबों के खून से प्राप्त हुई है, आप लोगों को देशवासियों के हवाले कर देनी चाहिए। इन कीमती पोषाकों और जेवरातों को उतार कर जब तक नहीं फेंकेगे तब तक भारत का उद्धार संभव नहीं है।’’
कार्यक्रम में वायसराय लार्ड होर्डिंज के लिए भारी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। इस पर टिप्पणी करते हुए गांधीजी ने कहा ‘‘आखिर वायसराय शक की दीवार से क्यो घिरे रहते है? इस प्रकार डर-डर कर जीने से तो मरजाना बेहतर है, हमें ईश्वर को छोडकर किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है, न महाराजाओं से, न वायसरायो से, यहां तक कि किंग जार्ज से भी नहीं।’’ इस उग्र भाषण को रोकने की श्रीमती बेसेंट ने कई बार कोशिश की लेकिन महात्मा गांधी बोलते रहे। महाराजा अलवर विरोधस्वरूप उठकर चले गये। कार्यक्रम के अध्यक्ष दरभंगा के महाराजा, अन्य राजा और यहां तक कि एनी बेसेंट भी सभा छोड़कर चली गई और सभा को अचानक खत्म कर दिया गया।
महात्मा गांधी का प्रथम कटु सत्य से भरा तीखा भाषण स्वाधीनता आन्दोलन के बदलते तेवर व बदलते नेतृत्व का संकेत बना और इसके बाद स्वतंत्रता आन्दोलन की बागडोर धीरे-धीरे गांधीजी के हाथो में आ गई। इस देश का यह दुर्भाग्य है कि गांधी का नाम लेकर, श्रद्धा सुमन चढाकर सत्ता चला रहे नेता पुनः वायसराय के पदचिन्हों पर चल रहे है। सुरक्षा के लिए विशेष मंहगे विमान व मंहगी गाडिया, पार्लियामेंट हाउस से जुडे विशेष प्रकार के आवास बन रहे है। आज की सुरक्षा व्यवस्थायें अंग्रेजों से अधिक सख्त व मंहगी हो गई है। हमारे शासक वायसराय से अधिक डरे-डरे है और सुरक्षायें महिनों पहले से जनता के धन का अपव्यय कर की जा रही है।
एक बार गांधीजी ने शेक्सपीयर को कोट करते हुए कहा था ‘‘सफलता के तीन मंत्र है, दूसरों से ज्यादा जानकारी प्राप्त करें, दूसरों से ज्यादा मेहनत करें और दूसरों की अपेक्षा कम उम्मीद करें, यही सच्ची सुरक्षा है।’’ (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)