लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं)
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भारतीय संसद राष्ट्रपति और दो सदनों- राज्यसभा (कौंसिल ऑफ स्टेटस-अपर हाउस) और लोकसभा (हाउस आफ पीपुल-लोअर हाउस) में मिलकर बनी है।
राज्यसभा जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, राज्यों की परिषद अथवा कौंसिल ऑफ स्टेटस है। यह अप्रत्यक्ष रीति से लोगों का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि राज्यसभा के सदस्य राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अनुपातिक पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा चुने जाते है। विभिन्न राज्यों को राज्यसभा में समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। प्रतिनिधियों की संख्या उनकी जनसंख्या पर निर्भर करती है। राज्यसभा में 250 अनधिक सदस्य हो सकते हैं। इनमें 12 मनोनीत सदस्य होते है।
लोकसभा की निर्धारित कार्यावधि 5 वर्ष की है पर राष्ट्रपति द्वारा भंग की जा सकती है। इसके विपरीत राज्यसभा एक स्थायी निकाय है। उसे भंग नहीं किया जा सकता। सदस्य एक तिहाई में यथा संभव प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर निवृत हो जाते हैं। उपराष्ट्रपति राज्य सभा के पदेन सभापति होते है। उपसभापति का निर्वाचन सदस्यों में से किया जाता है।
कोई धन विधेयक राज्य सभा में पेश नहीं किया जा सकता। राज्यसभा धनविधेयक को अस्वीकृत कर सकता है अथवा संशोधन की सिफारिष कर सकता है तथा चौदह दिन में लोकसभा को लौटाया नहीं जाता तो पासशुदा माना जाता है। राज्यसभा को अनुदानों की मांगों को अस्वीकृत करने का अधिकार नहीं है, मंत्रीमण्डल के विरूद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास करने की शक्ति भी प्राप्त नहीं है।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि राज्यसभा का स्थान द्वितीय है। गैर वित्तीय विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होना आवष्यक है। अन्य सभी मामलों में लोकसभा की षक्तियों के बराबर है। राज्यसभा को कुछ विषेष शक्तियां भी प्राप्त है। राज्य सूची में वर्णित किसी भी विषय के संबंध में विधान बनाना तथा दो तिहाई मत से राज्य सूची में वर्णित विषय का सम्पूर्ण देष के लिए विधान बना सकती है एक से अधिक, संघ एवं राज्यों के लिए अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन के लिए उपबन्ध करने की शक्ति प्राप्त है। दो तिहाई मत से राज्य सभा संकल्प पारित कर समूचे भारत या किसी भाग के लिए विधियां बना सकती है। उपराष्ट्रपति को पदच्यूत करने संबंधी कोई संकल्प केवल राज्यसभा में ही लाया जा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा की अनुपस्थिति में केवल राज्यसभा की स्वीकृत के अनुमोदन से आपातकाल या राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकती है।
राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में यद्यपि कम शक्तियां दी गई है लेकिन निम्न आधारों पर उसकी उपयोगिता है। प्रथम लोकसभा द्वारा जल्दबाजी में बनाए गये दोषपूर्ण लापरवाही से और अविवेकपूर्ण विधान की समीक्षा और उस पर विचार के उपबंध के रूप में जांचोपाय है। द्वितीय उन अनुभवी एवं पेशेगत लोगों को प्रतिनिधित्व देती है जो सीधे चुनाव का सामना नहीं कर सकते। राष्ट्रपाति 12 ऐसे लोगों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करता है। तृतीय यह केन्द्र के अनावश्यक हस्तक्षेप के खिलाफ राज्यों के हितों की रक्षा करते हुए संघीय संतुलन को बरकरार रखती है। राज्यसभा में गैर सरकारी विधेयकों द्वारा सरकार के लिए विभिन्न मामलों पर विचार व्यक्त करने का अवसर मिलता है। राज्यसभा सरकार को कार्यक्रमों व नीतियों के निर्माण के लिए रास्ता दिखा सकती है।
प्रारम्भिक वर्षो में राज्यसभा में अधिकांश अभिजात वर्ग से सदस्य थे। वैज्ञानिक, वकील, वेरिस्टर, व्यवसायिक समूहों के प्रबुद्ध व वरिष्ठ उद्योगपति, महंगे स्कूलों में पढे प्रशासक, न्यायविद्, प्रभावशाली वक्ता, गौरवषाली व प्रबुद्ध व्यक्ति चुने गये थे। वे संसदीय प्रक्रिया के मर्मज्ञ थे, अपने विषय पर साधिकार बोल सकते थे। विपक्ष में भी स्वाधीनता सेनानी, शक्तिशाली, वक्ता कुशल संसदज्ञ थे। गुणात्मक स्तर पर देखे थे राज्यसभा सदस्य बडी उच्च कोटि की प्रतिभा वाले थे। जिन्होेंने संसदीय लोकतंत्र के सर्तक प्रहरी की भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं दिखाई। उच्च कोटि की महिला सदस्य भी थी। शिक्षा की दृष्टि से स्नात्तकों की संख्या अधिक थी। शासक दल में भी मेधावी संसद और सक्षम वक्ता थे जो सरकार की आलोचना करने में भी नहीं चूकते थे। लोकसभा द्वारा स्वीकृत विधेयकों व प्रस्तावों की कडी परीक्षा होती थी। गिनने में कम होने पर भी सरकारी विधेयकों पर गम्भीर चर्चा होती थी। प्रिवीपर्स बिल राज्यसभा में स्वीकृत नहीं हो सका तो सरकार ने लोकसभा भंग कर पुनः चुनाव का निश्चय किया था।
कुछ वर्षो बाद राज्यसभा का स्तर पूर्वापेक्षा गिर गया । राजनीतिक कारणों से जाति, धन आधारित प्रतिनिधित्व बढ गया। जो लोग लोकसभा में हारने लगे वे राज्यसभा में भेजे जाने लगे। जाति आधारित प्रतिनिधित्व से राज्यसभा का चरित्र बदल गया। लोअर हाउस की तरह अपर हाउस भी लोअर हाउस हो गया। गंभीर चर्चा, विधि का परीक्षण, विषेषज्ञों द्वारा स्वीकृत प्रस्तावों की समीक्षा समाप्त हो गई। नोमिनेषन में फिल्म अभिनेता, खेलों के खिलाडी व ऐसे लोगों को अवसर दिया गया जिन्होंने कभी राज्यसभा में उपस्थिति ही नहीं दी और दी तो केवल अपनी सूरत दिखाने के लिए। राज्य सभा में जाति/वर्ग आधारित प्रतिनिधित्व दिया/बढ गया उसमें भी यह नहीं देखा गया कि वे राज्यसभा के लिए उपयुक्त भी है अथवा नहीं। ऐसे में राज्यसभा की प्रोसिडिंग्स यदि देखी जाये तो स्पष्ट होगा ऐसे लोगों का अधिकांष व प्रतिषत अधिक रहा जो केवल उपस्थिति के लिए अथवा मेजे थपथपाने के लिए अथवा ’हां पक्ष जीता, हां पक्ष जीता’ बोलने में शामिल हुए।
आज भी योग्यता, विद्वतता, सेवा, विशिष्टता, प्रबुद्धता के आधार पर निर्वाचन व मनोनयन नहीं हो रहा है लोकसभा में पराजीत व्यक्ति राज्यसभा में भेजे जा रहे हैं। समाज के दबंग समूह या जातियों का प्रतिनिधित्व करने की मांग उठ रही है। इससे राज्यसभा का स्तर व विशेष स्थिति और अधिक गिरने की संभावना है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)