लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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पं. मोतीलाल नेहरू स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी व कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता थे। उनके समय में पं. जवाहरलाल नेहरू ने राजनीति में सक्रिय भाग लिया, आन्दोलनों में प्रमुख भूमिका निभाई, अनेक बार कई साल तक जेल में रहे। जनता के सामने, गांधीजी के नेतृत्व में युवा हृदय सम्राट के रूप में सामने आये। श्रीमती इन्दिरा गांधी बचपन से स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी रही, आजादी के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ चुवा नेता बनकर, कांग्रेसाध्यक्ष बनकर चुनावों में उजनी। आपातकाल के पहले संजय गांधी युवा नेता के रूप में उभरे। चाहे कुछ भी राजनैतिक अर्थ लगाये जाये उनका पांच सूत्रीय कार्यक्रम देश के लिए अत्यधिक आवश्यक व उपयोगी था। विमान दुर्घटना में अकाल मृत्यु के बाद, इन्दिरा जी के साथ राजीव गांधी युवा भारत की उम्मीद बनकर सामने आये और देश को 21वीं शताब्दी की ओर ले जाने के दृढ़ निश्चय के साथ नेतृत्व प्रदान किया। मां, बेटे देश की एकता, अखण्डता, दृढता के लिए शहीद हो गये। उनके शहीद होने पर कांग्रेस नेतृत्व ने सोनिया जी को कांग्रेसाध्यक्ष का भार सौंपा, राजनैतिक परिवार के उत्तराधिकारी राहुल गांधी आगे आये।
राहुल गांधी जय-पराजय की चिन्ता नही कर मजबूत दक्षिणपंथी, साम्प्रदायिक व जातीय शक्तियों के बीच एक विरोधी नेता का कर्तव्य निभा रहे है। राहुल ने दलितों व गरीबों के बीच यात्रायें की है और अब पुनः जन समस्याओं को लेकर, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, समानता व आर्थिक दुव्र्यवस्था को लेकर नई जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ना चाह रहे हैं। उन पर वंशवाद का आरोप है, आंतरिक लोकतंत्र को समाप्त करने के आरोप है जबकि आरोप लगाने वाली भाजपा में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है, सर्वसम्मति व आरएसएस की मंशा के नाम पर मनोनयन होता है।
कांग्रेस बड़े पैमाने पर युवाओं को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है तो जाहिरन अन्य दलों व भाजपा में खलबली मचेगी। कांग्रेस युवा को तरजीह व सामाजिक न्याय की दृष्टि से वंचित एससी, एसटी, अल्पसंख्यक महिलाओं को पचास फीसदी तक आगे लेकर चलना चाहती है। यद्यपि यह इतना आसान नहीं है, केवल युवा होना अपने आम में पूरा गुण नहीं है। जमीन से जुड़े बिना, ज्ञानहीन, संस्कारहीन, नीति विहीन युवको को बगैर कांग्रेस संस्कृति, विचारधारा व कुर्बानी से भरे इतिहास से जोड़े बिना आगे कर देना राहनीति में बदलाव नहीं लायेगा, कांग्रेस का ग्राफ नहीं बढायेगा। अनेक युवक अतिउत्साह में अनैतिक आचरण से जुड़ जाते है, धनबल, बाहुबल से चुनाव टिकट हासिल भी कर लेते है। आज संसद में आपराधिक पृष्ठभूमि के जितने लोग बैठे है उनमे ंसे अनेक युवा है।
क्या कांग्रेस केवल योग्य व विचारवान युवाओं को उम्मीदवार बनायेगी या केवल युवाओं के नाम वाले बड़े नेताओं के परिजनों, बड़े पैसे वाल, ताकत वाले नेताओं के साहबजादो को टिकट देगी। आज तक पार्टी नेता युवाओं के नाम पर खानदानी विरासत ही आगे बढ़ा रहे है।
क्षेत्रवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी देश की राजनीति में आज राहुल गांधी क्या कर पाते है यह तो समय बतायेगा परन्तु उन्हें मात्र भाजपा विरोध के सहारे आगे नहीं आना है। बुनियादी समस्याओं का क्या माडल उनके पास है, जनता को समझाना होगा। यदि वे नपा-तुला ठोक कार्यक्रम देश के आगे रखते है, पूरी मेहनत व दृढ़ता के साथ राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति स्पष्ट कर, देश में व्याप्त बेकारी, गरीबी, असमानता, हिंसात्मक वातावरण व विभाजनकारी शक्तियों से दृढ़ इच्छाशक्ति से संघर्ष करते हैं तो कांग्रेस सुदृढ़ हो सकती है, बदलाव लाया जा सकता है।
देश की हर समस्या के जड़ में भारी भ्रष्टाचार असमानता के बीच, राजनीति में जमीन से शुरूकर असुरक्षा की भावना छोड़कर यदि राहुल गांधी के नेतृत्व में युवा संघर्ष करते है, केवल धन सम्पदा, राजनीतिक विरासत के बल पर नहीं, देश की बदहाल जनता के आंसू पोंछने के लिए ईमानदारी से कोशीश करेंगे तो विपक्ष द्वारा बिगाडी गई छवि बदलेगी, बढ़िया छवि बनेगी, उनके पांव राजनीति में मजबूत होंगे। राष्ट्रीय पार्टी व देश के लिए हितकर व शुभ होगा।
आम लोगों में डर की भावना, आर्थिक असुरक्षा, राजनैतिक गुंडागदी।, मारपीट की बढ़ती वारदातों से बढ़ रही है। जब एमएलए, एमपी खुद ही गुडा हो तो फिर जनता किससे क्या सुरक्षा की उम्मीद कर सकती है, पूरे देश में जंगल राज बनता जा रहा है। हिंसक वारदातों को काबू में किया जाना आवश्यक है, यह सब लचर व्यवस्था का नतीजा है, एक खतरनाक संदेश है। राहुल को सर्वप्रथम संगठन को साफ सुथरा करना होगा, केवल उच्च् चरित्र के योग्य, लोक प्रेमी युवाओं की बड़ी टीम हर प्रान्त, जिला स्तर पर बनानी होगी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद को कमजोर कर असली राष्ट्रवाद से जोड़ना होगा तब ही वे अपने परिवार के युवा नेतृत्व के समक्ष पंहुच पायेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)