लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी है)
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भारत की अर्थव्यवस्था नोटबंदी, जीएसटी के बाद, कोविड-19 महामारी के बाद आईसीयू में पंहुच गई थीी। जीडीपी में उछाल आया लेकिन भारत आर्थिक खते में है। सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों से स्पष्ट हुआ कि मार्च में जो खुदरा मंहगाई 17 महिनों के सबसे उंचे स्तर 6.95 फीसदी पर पंहुच गई थी उसने अप्रेल में पिछले आठ साल का रिकार्ड तोड़ दिया, रिटेल मंहगाई दर 7.79 प्रतिशत हो गई जबकि रिजर्व बैंक की बर्दाश्त की सीमा 6 फीसदी है। फ्यूल, आइस और खाने पीने के सामान में मंहगाई दर में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है।
मंहगाई आरबीआई लिमिट से लगातार बढ रही है। फरवरी 2022 में 6.07 प्रतिशत, मार्च 2022 में 6.95 प्रतिशत, अप्रेल 2022 में 7.79 फीसदी जबकि अप्रेल 2021 में मंहगाई दर 4.23 प्रतिशत थी। तेल में 17.28 प्रतिशत, सब्जी में 15.41 प्रतिशत, मसाले 10.56 प्रतिशत, कपड़े 9.85 प्रतिशत व फ्यूल 10.80 प्रतिशत, ट्रांसपोर्ट व कम्यूनिकेशन 10.9 प्रतिशत, अनाज 5.96 प्रतिशत, दूध 5.47 प्रतिशत मंहगा हुआ है। फरवरी 2022 में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि मात्र 1.7 प्रतिशत रही।
शेयर बाजार में गिरावट आ रही है, अर्थव्यवस्था में मांग घट रही है। निफ्टी प्रीकोविड के हाई से केवल 27 प्रतिशत उपर रह गई है, निफ्टी में 309 अंकों की गिरावट आई है। विदेशी निवेशक बेच रहे है, घरेलू निवेशकों का निवेश घट रहा है। बढ़ती मंहगाई और ब्याज दरों के बीच, आशंकाओं के बीच निवेश घट रहा है। ब्याज दर बढ़ने से देश की विकास दर और और घट जायेगी। एफपीआई की निकासी जारी है। डालर के मजबूत होने से भारत के बाजार की हालत खस्ता है, निर्यातकों का खर्चा बढ़ गया है।
रूपये की गिरावट का असर इलेक्ट्रानिक्स की कीमतों पर पड़ रहा है। टीवी, वाशिंग मशील, रेफरीजरेटर की कीमतें बढ़ रही है। मैन्यूफेक्चरिंग में बढ़तीलागत का असर खरीददारों पर पड़ रहा है। डालर के मुकाबले रूपये में गिरावट से आयातीत घटक मंहगे होंगे।
रोजमर्रा की ज्यादातर जरूरी चीजों की कीमतें बहुत तेजी से बढ़ रही है, थाली की चीजों से लेकर उपभोक्ता वस्तुयें, कपड़े, जूते, साज श्रृंगार के सामान, रसोई गैस, पैट्रोल, डीजल सब मंहगे हो रहे है। पैट्रोल देश के अधिकांश हिस्सों में 120.51 रूपये लीटर तक बेचा जा रहा है। तेल की उंची कीमतों का पूरी सप्लाई लाइन पर असर होता है। उत्पादन से लेकर ढुलाई तक सब कुछ मंहगा हो जाता है परन्तु सरकार कीमते बढ़ाकर राज खच के लिए लाखों करोड़ों रूपया एकत्रित कर चुकी है।
नौकरियां कम है, तनख्वाहों की बढ़ोतरी पर रोक है। नरम स्टील की कीमत दोगुनी हो गई, रसायनों की कीमतें बढ़ गई। निर्यात करने पर कंटेनर भिजवाने में ज्यादा खर्च आ रहा है, कच्चे माल की कीमतें बढ़ गई है। एमएसएमई क्षेत्र की हालत तो और भी खराब हो गई है, धन्धा गैर मुनाफे का हो गया है। कम लघु उद्योग बन्द हो गये है। यूक्रेन पर रूस का हमला एक बड़ा कारण है परन्तु इस ओर सरकार संवेदनशील नहीं है। मांग कमजोर होने से निवेश नहीं हो रहा, वृद्धि मंद पड़ गई है। ज्यादातर भारतीय उद्योग क्षमता का केवल 65.70 फीसदी इस्तेमाल कर रहे है।
मंहगाई की आग भडक रही है। तेल, गैस, खाद्य पदार्थो की आसमान चूमती कीमतें घरेलू बजट के पसीने छुड़ रही है और लागत खर्च लगातार बढ़ने से उद्योग धन्धे खस्ता हाल है। आखिर यह सरकार मंहगाई के मामले में क्यों मौन है व निष्क्रिय है। रोजगार व मंहगाई को लेकर सरकार गम्भीर नहीं है।
सरकार इस दौर में घर परिवारों व मैन्यूफैक्चरर्स को राहत दे, एमएसएमई आयकर में रियायत देकर जीएसटी में कमी करें, ईंधन पर शुल्क में कटौती करें। एमएसपी में बढ़ोतरी और उर्वरको की कीमतों पर नियंत्रण करें। मुफ्त खाद्य योजनाओं को जारी रखे, खाद्य निगम के गेंहू व चावल भंडारों को खुले बाजार में सस्ती दर पर बिक्री करें। मूल्य स्थिरीकरण योजना बनाये, उत्पाद शुल्क में कमी करें, आपूर्ति पक्ष मजबूत व सस्ता करने पर मंहगाई पर असर पड़ेगा। विकास योजनायें रोजगार आधारित बने, भ्रष्टाचार कम करें, बदतरीन प्रबन्धन को ठीक करे, टैक्सों में रियायत दें। दीर्धकालीन उपाय, मंहगाई का तोड तो केवल भारत में कृषि क्षेत्र की बेहतरी ही है, उत्पादकता, भंडारण, वितरण, विपणन के प्रभावी उपायों से ही दूर हो सकती है।
मंहगाई अर्थव्यवस्था को पूरी तरह पटरी से उतारने पर आमादा है। सरकार व रिजर्व बैंक की सबसे बड़ी प्राथमिकता आसमान छूती कीमतों पर लगाम कसने की आवश्यकता है। अर्थव्यवस्था को संभालने में असफल होने पर पाकिस्तान व श्रीलंका के नेता धराशाही हो चुके है। हमारे नीति निर्माताओं के लिए यह गम्भीर चेतावनी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)