लेखक : लोकपाल सेठी
(वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)
www.daylife.page
तमिलनाडु, जहाँ द्रमुक की सरकार है, में देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांघी के हत्यारों में से एक, एजी पेरारिवलन, जिस प्रकार का जोरदार स्वागत और सम्मान हो गया है उसको लेकर राज्य की राजनीति कुछ गर्मा गई है। इसका कारण यह है कि दक्षिण के इस राज्य में द्रमुक और कांग्रेस की बीच लम्बे समय से चुनावी गठबंधन है। कांग्रेस के सभी स्तर के नेताओं को यह बात पचा नहीं पा रहे है क्योंकि वहां राज्यसभा के होने वाले चुनावों में कांग्रेस के एक उम्मीदवार की जीत तभी होगी जब द्रमुक के विधायक उनके पक्ष में मतदान करेंगे।
21मई 1991 लोकसभा चुनावों के दौरान पेरामब्दूर में राजीव गाँधी की हत्या कर दी गयी थी। इसके पीछे श्रीलंका के तमिल आतंकवादी संगठन लिट्टे का हाथ था। यह संगठन श्रीलंका में अलग तमिलभाषी राज्य चाहता था तथा इनको तमिलनाडु की तमिल पार्टिओं का समर्थन था। इस हत्या के आरोप में लगभग तीन दर्ज़न लोगों को गिरफ्तार किया गया था। लम्बे मुकदमे के बाद 2009 इनमें से सात को फांसी की सजा दी गयी थी। इनमे से एक पेरारिवलन था। उस पर आरोप था की जिस मानव बम से राजीव गाँधी की हत्या की गयी थी उसके लिए बैटरी का इंतजाम उसने किया था। उस समय वह मात्र 19 वर्ष का था। तकनीकी कारणों से बाद में उसकी फांसी सजा को उमर कैद में बदल दिया गया था। हाल ही में एक दया याचिका का आधार पर राष्ट्रपति ने उसे रिहा करने का आदेश दिया गया था। उसे कुल मिला कर 31 साक जल मेंगुजारने पड़े थे। उसने जेल में रहते हुए पढ़कर एक दर्ज़न से अधिक डिग्रियां प्राप्त की और कई गोल्ड मैडल जीते।
तमिलनाडु में राज्य के दो बड़े क्षेत्रीय दल द्रमुक और अन्नाद्रमुक लगातार गाँधी की हत्यारों को रिहा करने की मांग करते आ रहे थे। 2014 में जब राज्य में अन्नाद्रमुक की सरकार थी और जयललिता राज्य की मुख्यमंत्री थी तो राजीव गाँधी की हत्यारों को रिहा करने की मांग जोरों से उठाई गयी थी। राज्यपाल को ज्ञापन देकर कहा गया कि वे राष्ट्रपति से उनको रिहा करने की सिफारिश करे। लेकिन किसी भी राज्यपाल ने यह सिफारिश करने से इंकार कर दिया।
द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों दलों की लिट्टे से सहानुभूति रही है और ये दोनों दल श्रीलंका में पृथक तमिल ईलम (तमिल देश) बनाने की मांग का समर्थन करते रहे है। इसलिए जब पेरारिवलन को रिहा किया तो दोनों दलों के नेताओं ने इसका स्वागत किया। राज्य के मुख्यमंत्री स्टालिन ने चेन्नई हवाई अड्डे पर उसका स्वागत करने पहुंचे। वे बाकायदा उनसे गले मिले। बाद में उन्होंने पेरारिवलन के स्वागत समारोह में भी शिरकत की। उधर अन्नाद्रमुक के नेता पेरारिवलन के परिवार के लोगों को बधाई देने उनके घर गए। इन सबको लेकर कांग्रेस में प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक था। लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेताओं के निर्देश पर पार्टी स्थानीय नेता चुप से रह गए।
ऐसा कहा गया कि अगर कांग्रेस सार्वजानिक रूप से द्रमुक द्वारा पेरारिवलन के सम्मान का विरोध करती है तो दोनों दलों में खट्टास पैदा होगी जिससे कांग्रेस को ही अधिक नुकसान होगा क्योंकि वह गठबंधन का जूनियर पार्टनर है राज्य की राजनीति में अपने पैठ बचाने के लिए वह काफी हद तक द्रमुक निर्भर है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते है कि वर्तमान स्थिति में कांग्रेस को द्रमुक की जरूरत है न कि द्रमुक को कांग्रेस की लेकिन सबसे बड़ी और सटीक टिप्पणी महाराष्ट्र में सतारूढ़ दल शिव सेना की और से आई। राज्य में शिव सेना, कांग्रेस और एन सी पी की गठबंधन सरकार है, तीनो दलों के नेता एक दूसरे पर टिप्पणी करने से कतराते है।
लेकिन शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने जिस प्रकार पेरारिवलन के स्वागत और सम्मान को लेकर द्रमुक सरकार और इसके नेताओं की आलोचना की है उससे साफ लगता है वे चाहते थे कि कांग्रेस को इस मामले को गंभीर रूप से लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मामले पर कांग्रेस की चुप्पी समझ से बाहर है। यह राष्ट्रीय पार्टी अपने एक बड़े नेता के हत्यारों की रिहाई और उनके सम्मान करने को क्यों बर्दाशत कर रही है। उसका कहना था की यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर कांग्रेस को मुखर होना चाहिए था तथा अपना रुख साफ करना चाहिए था। इस मामले पर चुप रह कर कांग्रेस ने एक गलत राजनीतिक सन्देश दिया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)