पी ऍफ़ आई पर फिर से बैन लगाये जाने की मांग

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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पिछले महीने राम नवमी और हनुमान महोत्सव के दौरान देश के विभिन्न भागों में  हिंसा, आगज़नी और साम्प्रदायिक दंगो के बाद बीजेपी शासित राज्यों ने एक बार फिर मांग उठाई है कि इस मुस्लिम संगठन, जिसका मुख्यालय मार्क्सवादी नीत वाममोर्चे की सरकार वाले केरल में है ‘प्रतिबन्ध लगाया जाये। 

जानकारों का कहना है कि विभिन्न ख़ुफ़िया सहित एनएआई  जैसी राष्ट्रीय ख़ुफ़िया एजेंसी ने अपनी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस संगठन के लोगों ने बहुत पहले से ही तैयारी कर ली थी कि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने रामनवमी और हनुमान महोत्सव के दौरान कोई उकसायू काम किया गया तो उसका कडा जवाब दिया जायेगा। राजस्थान के करौली  तथा दिल्ली की जहांगीरपुरी में इस संगठन से जुड़े लागों ने अपने घरों की छतों पर पहले से ही ईंट, पत्थर इक्कठे कर लिए थे। इसलिए इन आयोजनों की पीछे हिदू संगठनों के लोगों ने जरा सा भी भडकायू नारा लगाया उन पर पथराव आरंभ कर दिया। यह अलग बात है कि उसके बाद आगज़नी की घटनायों में दोनों पक्षों की सम्पति को नुकसान हुआ। जहांगीरपुरी के साथ-साथ मध्य प्रदेश खरगौन भी ऐसा हुआ। 

2007 से पहले  देश के लगभग सभी भागों में स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) एक कट्टरपंथी संगठन बहुत सक्रिय था। इसका मुख्यालय केरल में था तथा उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण के राज्यों में अधिक मजबूत थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार थी और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। कई राज्यों की मांग और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली ख़ुफ़िया एजेसियो की सिफारिश पर देश में सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।  इसके कुछ महीनो बाद ही इस प्रतिबंधित संगठन के नेताओं और सदस्यों  ने कई संगठन बनाये जिसमें पोपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीऍफ़आई) सबसे प्रमुख था। बाद में कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया जैसे सगठन सामने आये जो छात्रों में सक्रिय थे। ये सब मुस्लिम युवकों को संगठित करने जुटे हुए थे। 

वे इन युवा मुस्लिमों में कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा दे रहे थे। मोटे तौर पर यह राजनीति से दूर था। बाद में इसके नेताओं ने यह मह्सूस किया कि समय आ गया है कि पी ऍफ़ आई को सक्रिय राजनीति में भी जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया का गठन किया। इस नयी पार्टी ने  एक दशक पूर्व स्थानीय निकायों, विधानसभा की चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े किया। केरल और कर्नाटक में इसे कुछ सफलता भी मिली। दक्षिण कर्नाटक में उड्डीपी में यह दल स्थानीय चुनावों में 21 सीटें जीतने में सफल रहा। एक समय ऐसा था जब कर्नाटक में स्थानीय निकायों में इस पार्टी के 120 से अधिक निर्वाचित सदस्य थे। केवल यही नहीं 2014 में मैसूरू की एक लोक सभा सीट पर इसका उम्मीदवार विजयी उमीदवार के बाद दूसरे स्थान पर रहा। 

एक समय कर्नाटक सहित देश के कई अन्य राज्यों में पी ऍफ़ आई के कार्यकर्ताओं पर बड़ी संख्या मुकदमे दर्ज किये गए थे। बंगलुरु के शिवाजी नगर इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्त्ता की हत्या के आरोप में एक दर्ज़न के लगभग पीऍफ़आई से जुड़े लोगों को पकड़ा गया। इसी प्रकार  बंगलुरु शहर में एक थाने पर हमले तथा एक विधायक के घर को जलाने के मामले में एनएआई अपनी जाँच में पीऍफ़आई को लिप्त पाया। 

पता नही किन कारणों से 2013 और 2018 की बीच, जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी तो पीऍफ़आई के 1600 से भी अधिक कार्यकर्तायों के खिलाफ दर्ज किये गए मुकदमे वापिस ले लिए गए। केवल इतना ही नहीं राज्य में 2018 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस और एस डीपीआई के बीच एक चुनावी समझौता हुआ था जिसके अंतर्गत इस मुस्लिम संगठन ने कांग्रेस के उम्मीदवारों का समर्थन किया था।

ख़ुफ़िया एजेंसियों के पास पीऍफ़आई के बारे में समुचित जानकारी है। यह एक ऐसा संगठन है जिसमें इसके सदस्य बनने का कोई प्रावधाननहीं है। यानि फार्म आदि भरकर  किसी को इसका सदस्य नहीं बनाया जाता। राज्य में जो इसके पदाधिकारी है केवल उन्हें ही पता है कौन से मुस्लिम इस संगठन से जुड़ा  हुआ है और उससे जरूरत पड़ने पर क्या काम लिया जा सकता है या उसे क्या जिम्मेदारी दी जा सकती है। खुद ख़ुफ़िया एजेंसियों के अधिकारी मानते हैकि प्रतिबन्ध के बावजूद इनकी गतिविधियों को रोकना कठिन होगा क्योंकि वे कोई नया संगठन बना उसके बैनर के तले काम करने लग जायेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)