लेखक : लोकपाल सेठी
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं रानजीतिक विश्लेषक)
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हाल ही के कुछ महीनों में दक्षिण में बनी तीन फिल्मों की बड़ी सफलता के बाद दक्षिण के जाने माने फिल्म अभिनेता किच्छा सुदीप ने कहा कि दक्षिण की भाषायों बनी इन फिल्मों की देश के सभी हिस्सों अपार सफलता के बाद लगता है कि अब हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं रही है तथा इसका स्थान क्षेत्रीय भाषाओँ ने लेना शुरू कर दिया है। इसके उत्तर में हिंदी फिल्मों के नामी अभिनेता अजय देवगण कहा कि इन तीनो फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता इसलिए मिली क्योंकि दक्षिणी भाषाओं के साथ साथ हिंदी में भी बनी थी। अच्छी फिल्म होने के वजह से और हिंदी में होने के कारण ही इन्हें हिदी भाषी लोगों ने पसंद किया। उनका कहना था कि एक समय था दक्षिण की बड़ी बड़ी से फ़िल्में केवल क्षेत्रीय भाषाओँ-तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलायलम में ही बनती थी। उन्हें उत्तर भारत में रिलीज़ ही नहीं किया जाता था। लेकिन अपना दायरा बढाने के लिए दक्षिण के फ़िल्में तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलयालम के साथ-साथ हिंदी में भी बनने लगीं ताकि हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी इन्हें रिलीज़ कर अच्छी कमाई की जा सके।
तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में हिंदी की बजाये क्षेत्रीय भाषाओँ का बोलबाला है। तमिलनाडु एक ऐसा राज्य जहां राजनीतिक स्तर पर हिंदी का विरोध किया जाता है। हिंदी से जुडी किसी भी चीज़ को पसंद नहीं किया जाता। केरल और कर्नाटक में भी हिंदी को अधिक तरजीह नहीं दी जाती लेकिन राजनीतिक स्तर पर विरोध नहीं किया जाता। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तेलगु सरकारी भाषा है लेकिन वहां के लोग इसके साथ साथ दिक्किनी भी बोलते है जो हिंदी और उर्दू का मिश्रण सा है। इन दोनों राज्यों में हिंदी का विरोध नहीं के बराबर है।
अगर देश में फिल्म बनाने के आंकड़ो को देखा जाये तो किसी एक वर्ष में बनने वाली कुल हिंदी भाषा की तुलना में दक्षिण की चारों भाषायों में फिल्म वाली कुल फिल्म की संख्या में कोई अंतर नहीं हैं। फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की 2019 एक वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार चर्चित वर्ष में हिंदी फिल्मों ने कुल 52,00 करोड़ का व्यापार किया जब की दक्षिण की चारों भाषायों में बनी फिल्मों के व्यापार का आंकड़ा लगभग 4000 करोड़ रूपये था।
हॉल के कुछ महीनो और करोना काल के बाद दक्षिण में बनी तीन बड़ी फिल्मो, पुष्पा, आरआरआर और के जी ऍफ़ 2, रिलीज़ हुई। ये तीनो फिल्मों दक्षिण की चारों भाषायों के साथ हिंदी में भी बनी। इन्हें बड़े स्तर पर रिलीज़ किया गया। इन फिल्मों ने कमाई के हिसाब से पिछले कई रिकॉर्ड तोड़ दिए। इनमें से दो नें 1000 करोड़ रूपये की कमाई का रिकॉर्ड बनाया। इससे पहले दक्षिण में बनी बाहुबली ने नाम से दो हिस्सों में बनी फिल्म ने कमाई के नए आयाम स्थापित किये थे। दो हिस्सों वाली यह फिल्म तेलगु सही अन्य सहित हिंदी में भी बनी थी तथा इन दोनों फिल्मों ने हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी अच्छी कमाई की थी।
दक्षिण भाषी फिल्मों की एक खूबी यह है कि तकनीकी नज़र से ये हिंदी फिल्मों से कहीं आगे। दक्षिण में इनके अधिक चलने का एक कारण यह है कि दक्षिण अपने अपने समय के बड़े अभिनेता को उनको चाहने वाले भगवान या देवता से कम नहीं मानते। अविभाजित आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री रहे एन टी रामराव अपने समय के इतने बड़े अभिनेता थे कि उनके चाहने वाले उनकी पूजा करते थे। तमिलनाडू में यही दर्ज़ा रजनीकांत को मिला हुआ है। कर्नाटक में डॉ. राजकुमार की जब कोई फिल्म रिलीज़ होती थी तो उनके पोस्टरों को दुग्धाभिषेक करवाया जाता है। पर इन भाषायों में बनी फिल्म अपने अपने राज्य तक ही सीमित रहती थी। हिंदी भाषी राज्यों में न तो इन्हें रिलीज़ किया जाता था न ही इनके नामी अभिनेताओं कोई जनता था। इनका व्यापार दक्षिण के राज्यों तक ही सीमित रहता था।
हिंदी फिल्मों और टीवी सीरियल दक्षिण में पिछले कुछ दशकों से बहुत लोकप्रिय रहे है इसके चलते अब आम आदमी में हिंदी का विरोध नहीं के बराबर है। भले ही राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर कहीं विरोध हो रहा हो। लेकिन दक्षिण के फिल्म निर्माता और अभिनेतायों यह स्वीकार कर लिया है की अगर उन्होने अपनी पहुँच बढानी है तथा अधिक कमाई करनी तो उन्हें अपनी अपनी भाषायों के साथ हिंदी में भी फ़िल्में बनानी होगी। भले ही कतिपय कारणों से ये हिंदी को पसंद नहीं करते हो, लेकिन अपने विस्तार के लिए उनके पास हिंदी को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)