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यह वो समय था जब बिहार में चारों तरफ बहुत गरीबी थी। एक महिला उद्यमी सरोज जैन पाटनी पटना में अपने घर से होम फर्निशिंग का व्यवसाय कर रही थी और पटना में पहली बार डिजायनर चादरें बनाकर अनेक महिलाओं को रोजगार दे रही थी।
तभी इनके साथ मिलकर घरेलू स्तर पर काम करने वाली कुछ पांच छह महिलाओं ने 1996 में बिहार महिला उद्योग की स्थापना की। शुरु में इन महिलाओं ने लोगों को मेंहदी लगाना, आर्ट वर्क सिखाना आदि कार्य शुरू किये। धीरे-धीरे काम बढ़ा और तीन साल में गरीब घरों की तीस, चालीस महिलायें इसके माध्यम से कार्य करने लगी।
अब यहां अचार, पापड़, बड़ियां बनाना सिखाया जाने लगा और बिहार की आर्ट मधूबनी, एप्लिक कला व टिकुली कला को प्रसिद्धि दिलाये जाने की दिशा में भी कार्य शुरू किये गये। इन सबकी मेहनत रंग लाने लगी और अनवरत नारी सशक्तिकरण के प्रयासों के तहत इनके द्वारा हजारों महिलायें आत्मनिर्भर हैं।
सरोज एक वाकया सुनाती हैं कि एक गरीब महिला को मेंहदी लगाना सिखाया गया। उस समय पटना में सड़क पर मेंहदी लगाने का चलन नहीं था इसलिये वो यह कार्य करते हुये शरमा रही थी लेकिन इन्होंने उसको काम शुरू कराने के लिये स्टूल और बैनर लाकर दिया और सौ रुपए हर हाथ के उसने लगाना शुरू किया।
आज उसके बच्चे अच्छे से पढ़-लिख गये हैं और अपने पैरों पर खड़े हैं। ऐसी ना जाने कितनी महिलाएं हैं जो जीरो से उठी हैं और आज उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गयी है। इस उद्योग से जुड़ी महिलाएं पटना में दो सौ, ढाई सौ स्टॉल्स की एग्जीबिशन्स भी लगाती हैं। इन महिलाओं द्वारा निर्मित एप्लिक चादर की मांग देश-विदेश में रहती है। आज यह संस्था बिहार की प्रतिनिधि संस्था के रूप में स्थापित है जो सामान्य घरेलू महिलाओं को उद्यमी बनाने की यात्रा का सफर है।
कोरोना में इस उद्योग की कुछ महिलाओं द्वारा बड़े पैमाने पर घर से ही नाश्ता व टिफिन सिस्टम पर कार्य किया गया। वहीं दो हजार पंद्रह में सरोज पाटनी ने सेवा कार्यों से जुड़ी अपनी कुछ महिला मित्रों के साथ अध्यात्म, अहिंसा व शाकाहार को समर्पित संस्था 'आशा बिहार' की स्थापना की। इसके तहत सरकारी स्कूल, अस्पताल व स्लम एरियाज़ में कार्यशालाओं द्वारा अभी तक पांच हजार के लगभग मांसाहारियों को शाकाहारी बनाया जा चुकी है।
क्या किसी को शाकाहारी बनाना इतना आसान होता है इस विषय पर वह कहती हैं कि हम लोग संकल्प पत्र भरवाते हैं। शुरू में वह लोग व्रत लेने की तरह दो-दो, चार-चार दिन के लिये नियम दिलवाती हैं और फिर महीने, दो महीने का संकल्प दिलवा कर इस अवधि को बढ़ाया जाता है। उसके बाद पूरी तरह मांसाहार छुड़वाने की दिशा में कार्य किया जाता है। यह बिहार में इस तरह का अभिनव प्रयास था।
इस संस्था के माध्यम से इन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पत्नी यशोदा बेन को ट्रेन में सिर्फ शाकाहारी भोजन परोसे जाने का ज्ञापन सौंपा। आशा बिहार संस्था के नेक कार्यों को देखते हुये आज इसके साथ अनेकों समर्पित कार्यकर्ता जुड़े हुये हैं और पटना के अलावा मुंगेर और बाड़ में भी इसकी संस्थायें खुल चुकी हैं।
इसके अलावा इन लोगों के द्वारा हर साल विकलांग लोगों के लिये ऑपरेशन कैम्प, योग, शाकाहार पर कार्यशालाएं आयोजित करायी जाती हैं व स्लम एरियाज़ व सरकारी स्कूलों में जरूरी चीजें वितरित की जाती हैं। अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत व ज्योतिष में विशारद श्रीमती सरोज जैन पाटनी और इनकी संस्था का दूसरे लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और व्यसन मुक्त करने का यह प्रयास निश्चित ही बिहार में बड़ा बदलाव लाया है।