लेखक : प्रशांत सिन्हा
(लेखक पर्यावरण मामलों के जाने-माने विशेषज्ञ हैं।)
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यह कटु सत्य है कि धरती पर जीवन के लालन-पालन के लिए पर्यावरण प्रकृति का सबसे बडा़ उपहार है। वह प्रत्येक तत्व जिसका उपयोग हम जीवित रहने के लिए करते हैं, वह सभी पर्यावरण के अंतर्गत ही आते हैं, जैसे हवा, पानी, प्रकाश, भूमि, पेड़, जंगल और अन्य प्राकृतिक तत्व कहें या संसाधन। आज हमारे चारों ओर के वातावरण में जो क्रियाकलाप कहें या गतिविधियां हो रही हैं, उनसे हमारे समूचे वातावरण का विनाश होता जा रहा है। इसमें भी दो राय नहीं है कि वर्तमान में पर्यावरण विश्व के लिए एक गंभीर समस्या बन गया है। अब इस विषय पर शीघ्र ही गंभीरता से विचार करना होगा अन्यथा आने वाले समय में मानव के लिए जीवित रहना दूभर हो जाएगा। पूरे भूमंडल पर प्रकृति के विरुद्ध गतिविधियां संचालित हो रही हैं। प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु "मस्तिष्क" प्रदान किया है जिसका उसने दुरुपयोग ही किया, सदुपयोग नहीं। उसने अपने जैविक और भौतिकवाद के मोहपाश में बंधकर और स्वार्थ,लोलुपता के चलते सम्पूर्ण प्रकृति और पर्यावरण को क्षत- विक्षप्त कर दिया है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ऊर्जा प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण इत्यादि हर साल होने वाली लाखों असमय मौतों के लिए जिम्मेवार हैं। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता।
फिर वाहनों से निकलने वाले धुएं से वातावरण खराब हो रहा है। नदियों और तालाबों का जल प्रमोद के बजाय जीवन लीलने वाला बन गया है। यह बात सर्वविदित है कि प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं। एक न एक दिन ये सभी समाप्त हो जाएंगे। अतः बाल्यकाल से ही पर्यावरण संतुलन का ज्ञान देना आवश्यक हो गया है। यह समय की मांग है। इससे मनुष्य के दिलों दिमाग में यह बात घर कर ले कि संतुलित पर्यावरण ही उसके सुखी, समृद्ध और सुरक्षित जीवन का एक मात्र विकल्प है। आस-पास के वृक्षों, फूलों, पक्षियों, पहाड़ों, नदियों, समुद्र तटों और उसके जीव जंतुओं तथा वन्य पशुओं के महत्व को समझाना भी बहुत आवश्यक है, तभी लोग उनका सरंक्षण कर सकेंगे।
गौरतलब है कि व्यक्ति जिस परिवेश में जन्म लेता है, फलता- फूलता है और जिस वातावरण में उसका लालन- पोषण होता है, उस वातावरण की जानकारी मनुष्य के विकास के लिए अति आवश्यक है। प्राकृतिक संतुलन लिए जागरूकता पैदा करना, व्यक्तियों में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की रुचि जगाना, वातावरण बिगाड़ने वाले कारणों की पहचान कराना आदि-आदि आज बहुत आवश्यक हो गया है।
पर्यावरण के प्रति जनचेतना का उद्देश्य वायु प्रदूषण की समस्याओं से लोगों का अवगत कराना है जिससे वे वायु प्रदूषण को रोकने में अपना सक्रिय योगदान कर सके और आने वाले खतरों से न केवल खुद सचेत रहें बल्कि औरों को भी सचेत करें। यही मानव का परम उद्धेश्य और धर्म होना चाहिए। जल प्रदूषण का निराकरण करने के लिए छात्रों के साथ चर्चा करना भी बेहद जरूरी है।। इसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए जनता को समुचित रूप से शिक्षित करना होगा ताकि ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम हो सके। भू-प्रदूषण की समस्या भी गंभीर समस्याओं में से एक है जिसका निराकरण भी होना बहुत हीआवश्यक है। इसके लिए हमें चाहिए कि जन-जागृति पैदा की जाए ताकि लोग इधर- उधर जगह -जगह पर थूकें नहीं और गन्दगी नही फैलाएं। अपने घरों के पास पेड़-पौधों के लिए जगह छोड़ें। यदि वह घास के खुले मैदान नहीं छोड़ेंगे तो भू-प्रदूषण भी फैलेगा।
समय की मांग है कि अब पर्यावरण सरंक्षण हेतु जनसाधारण को खासकर छात्रों को इसके लिए प्रेरित और प्रशिक्षित करने की बेहद आवश्यकता है। प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बालकों में मनोवैज्ञानिक तरीके से और दर्शन के आधार पर प्रकृति प्रेम की चेतना पैदा करनी चाहिए। उनको ऐसे तरीकों से पढ़ाना चाहिए जिससे किसी भी खोज के बाद उसके अदुभुत तथ्यों की जानकारी उन्हें (छात्रों) को दे सकें। बालकों को देश में फैलते नाना प्रकार के प्रदूषणों के फैलने के विषय मे भी जानकारी देनी चाहिए। लोगों को आभास कराना है कि वह उस व्यवस्था का अभिन्न अंग हैं जिसमें पर्यावरण शामिल है।
पर्यावरण संबंधित समास्याओं के समाधान में जिम्मेदारी का भी अवबोधन कराना चाहिए। प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आदि समस्याओं का निराकरण-सरंक्षण तभी संभव हो सकेगा जबकि जनमानस में पर्यावरण सम्बंधी जनचेतना होगी। हमें यह बात कभी नही भूलना चाहिए कि इस पर्यावरण ने ही सारी सृष्टि को सदियों से बचाए रखा है। यदि हम स्वयं को या सृष्टि को बचाए रखना चाहते हैं तो पर्यावरण को सरकार के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। हमें यह ध्यान रखना होगा कि आज जलवायु में भी भयंकर बदलाव आ रहे हैं। यह सोचना कि तापमान में बढो़तरी हमने थोडे़ ही की है। यह सब तो सरकारों का ही काम है। इनके बारे में सोचना सरकारों का ही काम है। मेरे सिर्फ अकेले करने से क्या होगा।
ऐसे विध्वंसक सोच से सदैव बचना चाहिए। स्वार्थ वश हमें अक्सर यही बोल अक्सर सुनने को मिल जाते हैं लेकिन यह धारणा नुकसानदेह है। एक एक व्यक्ति को पर्यावरण बचाने के लिए आगे आना चाहिए। हमें यह समझना ज़रूरी है कि सब कुछ सरकारें ही नहीं कर सकतीं। इसके प्रति हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है। जो काम सरकारों का है, वह उनको करती भी रहें लेकिन ये धरती हमारी है, इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह समय की मांग है कि हम यथा संभव पर्यावरण की समझ पैदा करें और वर्तमान समाज में उसकी भूमिका को समझना भी सभी के लिए बहुत ही आवश्यक है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)