वन व वनस्पतियों की आये दिन हो रही कटान को रोका जाए।
लेखक : राम भरोस मीणा
(लेखक जाने माने पर्यावरणविद् व समाज विज्ञानी है)
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वर्ष के तीन सो पैंसठ दिन में पच्चास दिन ख़ास उत्सवों के होते, उत्सव महापुरुषों, महिलाओं, बच्चों, भाषा, संस्कृति, पर्यावरण, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा के साथ विविध प्रकार से एक बड़े उत्साह के साथ मनाएं जातें, जोरों से प्रचार प्रसार, डेकोरेशन, भाषण, सभा, संगोष्ठी के साथ एक दुसरे पर व्यंग,तंज इस क़दर खसे जातें मानों आज के बाद यहां वहां कोई समस्या ही नहीं रहेंगी समाधान ही समाधान।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाएं दुसरे दिन महिलाओं के साथ अत्याचार, बालदिवस के आयोजन के दिन ही दुसरे मोहल्ले, गली, शहर में बच्चों का शोषण ओर यही खोजें तो विश्व पर्यावरण दिवस या इसके दुसरे दिन पेड़ों पर चलतीं आरीयां देखी जा सकेगी। आंखें मूंद सभी बच कर चुपके से निकल जाएंगे। कोई रोक टोक नहीं होगी। लोग सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंटेड मिडिया अर्थात चौथे स्तम्भ का जम कर उपयोग करने के साथ अपने अपने पालें में नम्बर बनाने में लगे होते दिखते जो सोचने का विषय ना कि पर्यावरण संरक्षण के हित में।
राजस्थान के अलवर जयपुर की पंचायत समिति थानागाजी, बानसूर, विराटनगर, पावटा, कोटपुतली में वन विभाग की नर्सरी जो छायादार पौधे तैयार करने का काम करतीं वहां वर्तमान समय में लगाने योग्य 50 से 60 हजार पौधे तैयार है, जबकि पर्यावरण दिवस पर लगाने का दावा एक लाख पौधों का किया जा रहा । पौधे लगाने के बाद इन क्षेत्रों में गत वर्ष लगें पौधों के 10 या 15 प्रतिशत ही बचें जो बहुत कम है, सोचने का विषय है। हम पौधे पालने के लिए लगाएं या उनकी हत्या करने के लिए।
पिछले साल आयोजित पर्यावरण दिवस के बाद आज इस समय तक क्षेत्र से 2 लाख पेड़ नीम, पीपल, गुलर, रौजं, धोक, कीकर , खैर, बरगद, पापड़, अरडु, खेजड़ी जैसे आक्सीजन के भण्डार जो पर्यावरण की स्वच्छता के साथ पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाने का काम करते काटें जा चुके। पेड़ों की इस कदर कटान व एक दिन के सामने एक दिन का उत्सव बोना दिखता जो सत्य है। बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग, बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र, बढ़ते पर्यावरण प्रदुषण के साथ मानव के अनुकूल प्राकृतिक वातावरण बनाए रखने के लिए हमें हर दिन उत्सव जैसा बनाना होगा। वनों वन्य वनस्पतियों, नदी नालों जोहडों की स्वच्छता , सुंदरता के साथ वन्य जीवों को संरक्षण के लिए एक आंदोलन के साथ काम करना होगा जिससे हमारे साथ हमारी आने वाली पीढ़ियां, वन्य व जलीय जीवों की सुरक्षा हो सकें उजड़े जंगल पुनः विकसित हो सकें,जल के भु गर्भीक भण्डार भर सकें, इस नीति के साथ हमें विश्व पर्यावरण दिवस पर शपथ लेते हुए कार्य करने की आवश्यकता है। (लेखक के अपने निजी विचार एवं अपना अध्ययन है।)