बेरोजगारी के वर्तमान हालात ! : डा.सत्यनारायण सिंह

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस.अधिकारी है)

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सन् 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के 303 सांसदों के निर्वाचन के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने धमाकेदार घटनाओं के साथ सरकार चलाना प्रारम्भ किया। भाजपा का ध्येय वाक्य रहे जम्मू कश्मीर सम्बन्धी अनुच्छेद 307 खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला सुनाया। विवादास्पद नागरिकता कानून लाया गया। सरकार ने हिन्दुत्ववादी वफादारों की वाहवाही लूटी। राष्ट्रवाद, बहुसंख्यकवाद की लहर आरम्भ हुई। परन्तु 2020 में दुनियां के सबसे लम्बे व कठोर लोॅकडाउन ने, नोटबंदी, जी.एस.टी., एम.एस.एम.ई. क्रेेडिट पालिसी से बेहाल अर्थव्यवस्था को लगभग धराशाही कर दिया। मांग गिर गई, बेरोजगारी बढ़ गई। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में लगे लाखों लोगों की आजीविका दाव पर लग गई। नौकरियां चली गई, तन्खाहें कम हो गई, नई भर्तिया बंद हो गई। लाखों लोग, बंटवारे के बाद सबसे बडे कूच में अपने गांवों की ओर पैदल लौटते देखे गये। भारत में स्वास्थ्य का बुनियादी ढ़ांचा ढ़ह गया। आक्सीजन व बैड्स की कमी के कारण अनगिनत मौतें हुई। शमशान घाटों में जगह नहीं मिली। लाशें नदी किनारे दबाई गई अथवा बहा दी गई। 

बेरोजगारी दर दशकों के सबसे डराबने स्तर पर बनी हुई है। मैन्युफैक्चरिंग में नौकरिया 2016-17 के 5.1 करोड़ से महज आधी रह गई। पैट्रोल डीजल, गैस की कीमतें ऊँचाई के शिखर पर पहुंच गई। जनता की कीमत पर सरकार ने तिजौरी भरी। खुदरा मंहगाई दर 7-8 फीसदी के दर पर पहुँच गई। थोक मंहगाई सारे अनुमान ध्वस्त कर दिसम्बर,1998 के बाद सबसे ऊँचे स्तर पर 15.08 फीसदी पर पहुंच गई। 

महामारी से निबटने का शुरूआती अनाडीपन सुप्रिम कोर्ट की दखल के बाद सबसे बड़े टीकाकरण की ओर हो गया। 70 हजार से ज्यादा केन्द्रों पर 100 करोड लोगों को टीके लगे। 

कोविड से उपजे संकट में कई देशों में सीधे प्रोत्साहन पर खुलकर खर्च किया। भारत सरकार ने 20 लाख करोड़ रूपये का प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान किया जिसमें 1.7 लाख करोड़ का मुफ्त अनाज भी सम्मिलित था। कृषि सुधार कानून लाये गये विरोध स्वरूप तीनों कानूनों को वापिस लेना पड़ा। सरकार का अब निजीकरण पर जोर है। पहले एयर इण्डिया और अब एलआईसी। सम्पत्तियों को मुद्रा में बदलने के लिए भी पी.एस.यू. सरकारी जमीनें बेचने का रोड़ मैप बना लिया गया। विदेशी निवेश बीमा व अन्य क्षेत्रों में बढ़ा दिया गया। वैश्विक एवं देश के वर्तमान आर्थिक हालात अत्यन्त बदहाल है।

अकेले डे़ढ़ साल में सरकार ने 10 लाख नौकरियां देने का लक्ष्य तय किया है। आम चुनाव से दो साल पहले इन पदों को भरना है जो खाली पड़े हैं। सुरसा के मुँह की तरह फैलती जा रही बैरोजगारी में 10 लाख नौकरियॉं पब्लिक सेक्टर की नौकरियां बढ़ने के बजाय लगातार कम हो रही हैं। केन्द्र सरकार के पद 1994 के 41.76 लाख से घट कर वर्ष 2021 में 34.5 लाख रह गये हैं। 2014 से 2016 के बीच केन्द्र सरकार में औसतन एक लाख लोगों को ही नौकरी मिली। प्रतिवर्ष करीब 102 करोड़ युवा रोजगार हांसिल करने की उम्र में शामिल हो रहे हैं। इसलिए प्रतिवर्ष कम से कम 60 लाख नई नौकरियोें का सृजन मजबूरी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 15 से 21 साल के युवाओं में 42 फीसदी और 25 से 29 साल आयु वर्ग में 12.7 फीसदी है। सरकार को जीडीपी के आंकड़ों से खुश नही होना चाहिए एक फीसदी रोजगार का जीडीपी पर मात्र 0.1 फीसदी असर हुआ है। उत्पादकता बढ़ने के बावजूद नौकरियां कम हुई हैं। 

हमें बढ़ते साम्प्रदायिक तनावों को भी नियंत्रण में रखने की जरूरत है। अतीत में जीने वाले देश का कोई भविष्य नहीं है। प्राचीन स्मारकों नष्ट करने से कहीं ज्यादा जरूरी समस्याये मुंह बाये खड़ी है। वैश्विक मंदी मंडरा रही है, भारत पर उसका अधिक असर होगा। देश को साम्प्रदायिक तनावों में डालने की अपेक्षा आर्थिक वृद्धि की राह पर डालना होगा। 

वर्तमान में शहरी नरेगा की जरूरत है, तेल, दवाओं, की कीमतों पर नियंत्रण, मैन्यूफैक्चरिेंग के हालात में तुरंत सुधार करना आवश्यक होगा। सीएमआईई के मुताबिक देश का रोजगार सुकुड रहा है। कामगारों की दिक्कतें बढ़ रही हैं, बदतर हो चुकी श्रम भागेदारी दर में गिरावट चिंता का विषय है। 2017 व 2022 के बीच देश में समग्र भागेदारी दर 46 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत रह गई। 90 करोड़ कामकाजी उम्र के भारतीयों में आधे से अधिक के पास या तो नौकरी नहीं है या वे उम्मीद छोड़ बैठे हैं। मैंकिन्जी ग्योवल इन्सटीट्यूट की 2020 की रिपोर्ट मेे अनुसार भारत को 2030 तक कम से कम 9 करोड़ नए गैर कृषि रोजगारों के सृजन की आवश्यकता है। इसलिए जीडीपी में कम से कम 8 से 8.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि करनी होगी। 

भारत में तेल व गैस की खोज व उत्पादन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। तेल व गैस की कीमतें बढ़ रही हैं। कोयले व खनिज के भण्डार खोजने व बढ़ाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य सम्बन्धी चुनौतियाँ बढ़ रही हैं । डाक्टरों व प्रशिक्षित नर्सों के आंकड़े निराशाजनक हैं। अस्पतालों में ज्यादा विस्तरों की जरूरत है। केन्द्रीय विद्यालयों में 20,346 के करीब पद खाली हैं। अस्पतालों में मरीजों की संख्या 2020-21 में 4.3 करोड़ हो गई। भारत दुनियां के उन देशों में शुमार है जहां दुनियां के सबसे ज्यादा कुपोषित व नाटे बच्चे हैं। महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देना होगा। भारतीय सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की सूची में 199 देशों में शीर्ष पर है। रेल्वे के हालात भी सुधारने होंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)