4 जुलाई पुण्यतिथि पर विशेष
लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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स्वामी विवेकानन्द ने कहा था ‘‘आज के युवा को जिसमें देश का भविष्य निहित है और जिसमें जागरण के चिन्ह दिखाई दे रहे है, अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित कर लेना चाहिए। हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए कि उनके अन्दर जगी हुई प्रेरणा व उत्साह ठीक पथ पर संचालित हो, नहीं तो शक्ति का अपव्यय या दुरूपयोग हो सकता है जिससे मनुष्य की भलाई के स्थान पर बुराई होगी। युवा वर्ग के भीतर जो प्रबल प्राण शक्ति है, उसे ठीक पथ पर नहीं चलाने पर जो संकट उत्पन्न होगा उससे पूरा देश तथा समाज प्रभावित होगा। उनके सम्मुख सुस्पष्ट आदर्श प्रस्तुत करना होगा। युवा वर्ग को ठीक मार्ग पर चलाकर ही देश गौरवशाली भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है।’’
युवाओं का दिग्भ्रमित होना, व्याधिग्रस्त होना, निराश व अकर्मण्य होना राष्ट्र के विकास के लिए अशुभ है। हमारे महापुरूषों ने सदैव सकारात्मक और आत्मविश्वास की शिक्षा दी है, मूल्यों के प्रति युवा ही सजग हो सकते है परन्तु यदि वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक परिदृश्य को देखे तो युवाओं में आज वैचारिक साहस, मानवीय गरिमा तथा स्वावलम्बिता नहीं है। बुद्धि और संकल्प की दृढ़ता नहीं है। युवाओं में जब निराशा, अवसाद, भ्रम व लाचारी पैदा होती है तो चिन्ता का सबब बन जाता है। युवाओं में विचारधारा सत्य और न्याय व विवेक आधारित होना आवश्यक है। युवा आज गौतम बुद्ध की शिक्षाएं, रविन्द्रनाथ का ‘‘रिलीजन आफ मैन’’ एन.एन.राय की ‘‘उत्कृष्ट मानवतावाद’’, नेहरू की ‘‘डिस्कवरी आफ इंडिया’’, स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास नहीं पढ़ते। कार्ल माक्र्स, महात्मा गांधी, ज्योतिबा फुले, अम्बेडकर को नहीं पढ़ते इसलिए वैचारिक साहस, मानवीय गरिमा तथा स्वावलम्बिता नहीं है। निराशा एवं नकारात्मक भावना रखते हैं।
आज का युवा समाज एवं देश के प्रति अपने दायित्व के प्रति सजग नहीं है, व्यक्तिवादी चिंतन से उपर उठकर समाज और देश के प्रति पूर्ण रूप से सजग नहीं है। युवा नूतनता का सन्देशवाहक है, समाज में फैली कुरीतियों और रूढ़ियों को समाप्त कर समाज सुधार हेतु प्रयास करता है तो सम्पूर्ण समाज में बदलाव आता है, राष्ट्र निर्माण में सहायक होता है। युवावस्था ऊर्जा और शक्ति की भण्डार है, समाज में युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोतों का अभाव है जिससे वे सही रास्ता नहीं देख पाते। सामाजिक, आर्थिक कारणों से बिना किसी उद्देश्य और दिशा के चलते रहते हैं।
भारतीय युवाओं में असीम प्रतिभा है। आवश्यकता है उन्हें उचित दिशा देने की, उनमें रचनात्मकता सृजित करने की, नैतिक मूल्यों के साथ राष्ट्र निर्माण में योगदान के लिए प्रेरित करने की। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था ‘‘उठो जागो और तब तक न रूकों जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न कर लो।’’ युवकों के पास बड़ी शक्ति है, वह बड़ी शक्ति बिल्कुल अनियोजित भटक रही है, उसे कोई नियोजन नहीं है, कोई दिशा नहीं है। दिशाहारा युवक खडा है लेकिन जिम्मेवार युवक नहीं है। पुरानी पीढ़ी को शांति से विचार करना चाहिए, युवकों के निकट आना पड़ेगा, उनकी दिशाएं सोचनी पड़ेगी और साथ खडे होना पडेगा, आशा देने वाले की तरह, सहयात्री की तरह, एल्डर ब्रदर्श की तरह। बुद्धिमता खतरनाक है, एक अर्थो में कि अगर उसे ठीक मार्ग नहीं मिला तो विध्वंसात्मक हो जाती है। हम समानता के सिद्धांत को स्वीकार करें।
युवा जहां नई उंचाईयों को छू रहे है वहीं वे उतनी ही तेजी से अपराध में लिप्त हो रहे है। सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या देश का भविष्य सही दिशा में जा रहा है। कई क्रांतिकारी बदलावों की साक्षी रही युवा शक्ति राह से भटकने लगी है। अपराधों की दुनिया में युवाओं का बढ़ता प्रवेश चिन्ताजनक हो रहा है। भारत में हर साल युवा अपराध में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। बडी संख्या में युवा जेल में है या आपराधिक मामलों में आरोपी है। वर्ष 2002 से 2012 तक 15000 अपराधियों को सजा हुई, महिला अपराधी (18 से 35 साल) 5.4 प्रतिशत है। युवा अपराध के कारण है, अभिवाभकों द्वारा न्यून अपराधों की उपेक्षा, अतिभोग लालसा, संगति का प्रभाव, महंगी जरूरते, अकेलापन, अपराध साहित्य, महत्वाकांक्षायें, पारिवारिक और सामाजिक परिवेश, नैतिक व धार्मिक शिक्षा का अभाव है।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आव्हान किया था कि स्वतंत्र भारत के युवा का संकुचित क्षेत्रीयता, भाषावाद, जातिगत व संकीर्णता से उपर उठकर राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत होकर संगठित हो, देश को एक संतुलित, संयमशील और आदर्श राष्ट्रवाद के मार्ग पर चलकर बुराईयों का प्रतिरोध करें, भावावेश तथा उत्तेजना में आकर या भयभीत होकर मस्तिष्क का संतुलन नहीं खोये, विरोधियों के सामने भी मित्रता का हाथ बढ़ाये रखें। सभी धर्मो का समान रूप से आदर करें, प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की पालना में स्वतंत्र है, किसी अन्य की धार्मिक भावना को ठेस नहीं पहुंचाये। गणतंत्र के लिए अनुशासन, सहिष्णुता, पारंपरिक सद्भावना अत्यन्त आवश्यक है, अपनी स्वतंत्रता के लिए दूसरो की स्वतंत्रता के प्रति आदर का भाव होना आवश्यक है। यदि उत्कृष्ट नैतिक चरित्र का पालन किया जाये तो लोकतंत्र के सफल संचालन में बाधा खड़ी नहीं हो सकती।
देश के अधिकतर युवाओं में जहां असंतोष, असुरक्षा और द्वंद का माहौल घर करता जा रहा है और वे सामाजिक, राजनैतिक और व्यक्तिगत परिस्थितियों से जूझ रहे है। आचार्य रजनीश के अनुसार गुस्से से कोई सृजनात्मक जीवन नहीं जी सकता, जीवन विध्वंसात्मक हो जाता है। वर्तमान में दुनिया में युवा होने का मतलब ही अराजकतावादी व व्यवस्था को नकारने से हो गया। यदि विध्वंस के पीछे कोई उद्देश्य है, यदि तुम सृजन के लिए कर रहे हो तो वह सुन्दर है अन्यथा अराजकता, अस्तव्यस्तता है। जितने भी उद्धारक है उनके विचार, उनके आदर्श, उनकी मान्यताएं, के संबंध में युवकों को मनन करना चाहिए। आचार्य रजनीश के अनुसार नई पीढ़ी भटक नहीं रही है, नई पीढ़ी अधिक ऊर्जा से भरी हुई सामने खड़ी है और हम कोई मार्ग नहीं खोज पा रहे हैं।
शिक्षा के अधूरेपन को दूर किया जायें। शिक्षा प्रणाली की समीक्षा हों, आमूलचूल परिवर्तन किया जायें। शिक्षा जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी करें। शिक्षा का सबसे बडा़ उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। आज शिक्षा का उद्देश्य मात्र मानसिक विकास बन गया है। शारीरिक व भावनात्मक विकास की बात विश्व अर्थव्यवस्था के आने से गौण हो गई है। आजादी के बाद हमने मूल सामाजिक संरचना शिक्षा पद्धति जीवन मूल्यों के बदलने की कोशिश नहीं की। युवा आज सुरक्षा और स्वतंत्रता, समानता और प्रगति की चिंता से जूझ रहा है। आज विकास केवल भौतिक स्मृद्धि पर आधारित है जिसने उपभोक्तावादी संस्कृति को जन्म दिया।
गांवों से पलायन से शहरों की हस्मिता पर का खतरा पैदा हो गया है। ग्रामीण युवाओं को खेत की मिट्टी से एलर्जी होने लगी है, रोजगार व काम धन्धे की तलाश में शहरों की और आने लगे है। गांव से आक्सीजन लेकर शहरों में कार्बनडाई आक्साइड उत्सर्जित करने वाले युवाओं को शहरों की ज्यादातर समस्याओं के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। नव-धनाड्य वर्ग के लाडलों व ग्रामीण दबंगों की टोली ने शहरो की सामाजिक नाकाबंदी कर ली है। युवाओं की उर्जाओं का नकारात्मक दिशाओं की ओर मार्गान्तर व भटकाव होता जा रहा है। लक्ष्यहीनता के माहौल ने युवाओं को दिग्भ्रमीत कर दिया है। धैर्य कि कमी, आत्मकेन्द्रित्ता, नशा, लालच, हिंसा, कामुक्ता उनके स्वभाव के अंग बनते जा रहे है।
इसका अर्थ यह नहीं की सम्पूर्ण युवाशक्ति ही पथ भ्रमीत हो गई है। बहुतरे युवा अनेक कीर्तिमान स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है। युवाशक्ति के बल पर देश दुनिया और समाज आगे बढ़ सकता है। युवाओं में असीम शक्ति है। सही वक्त पर सही मार्गदर्शन देश व समाज को हर क्षेत्र में आगे ले जा सकता है। सशक्त समाज बनाने के लिए युवको का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, आर्थिक सशक्तिकरण, बहुत जरूरी है, सही शिक्षा व मार्गदर्शन जरूरी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)