लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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15 अगस्त 1947 को हमारे नेताओं और आम जनता ने एक मजबूत और समृद्ध भारत देश का सपना देखा था और यही वह स्वप्न था जिसने उनको साथ लाकर एक कर दिया। नये राष्ट्र के समक्ष बहुत भारी चुनौतियां थी। साम्प्रदायिकता, निरक्षरता, भूख, सामाजिक भेदभाव और निर्धनता प्रमुख समस्यायें थी। राष्ट्र के समक्ष मुख्यरूप से बुनियादी ढांचे, भौतिक और संस्थागत, दोनों के निर्माण से संबंधित चुनौतियां थी। राष्ट्र निर्माण के इस चरण में कठिन परिश्रम, समर्पण और दूरदृष्टि की आवश्यकता थी। यह हमारा सौभाग्य था कि उस समय हमारे पास ऐसे नेता थे जिन्होंने तमाम कठिनाईयों के बावजूद इन चुनौतियों को स्वीकार किया।
15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता की मध्यरात्रि को दिये गये देश के पहले प्रधानमंत्री युग पुरूष पं. जवाहरलाल नेहरू के प्रसिद्ध ‘‘नियति के साथ भेंट’’ भाषण में उन्होंने कहा था ‘‘भारत की सेवा का अर्थ है लाखों दुःखी लोगों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता और अज्ञानता, रोगों और अवसर की असमानता को दूर करना। हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति (महात्मा गांधी) की महत्वाकांक्षा प्रत्येक व्यक्ति की आंखों से आंसू पोंछना रही है। यह हमारे सामर्थ्य से परे हो सकता है परन्तु जब तक आंसू और कष्ट है हमारा काम नहीं होगा। यात्रा लम्बी है परन्तु हम दृढ़ प्रतिज्ञ है, हमारे उन राष्ट्रनिर्माताओं की दृढ़ प्रतिज्ञा थी देश का सुनियोजित विकास। भारत का संविधान बना और सुनियोजित विकास की यात्रा प्रारम्भ हुई। शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास, विज्ञान और प्रोद्योगिकी, सामंजस्य, सूचना और संचार प्रोद्योगिकी, अनुसंधान, विकास और मानवीय समाज की रचना लक्ष्य रहा। विकास की गति के साथ समावेशी विकास के लिए कई योजनायें प्रारम्भ की गई। भारत निर्माण, मनरेगा, ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन, सर्वशिक्षा अभियान जैसे अग्रगामी कार्यक्रम शुरू हुए। सार्वजनिक क्षेत्र ने विकास प्रक्रिया को गति दी और बुनियादी ढांचे की रचना की।
भारत में विविधता में एकता वाले देश के रूप में विश्व में एक विशिष्ट पहचान मिली। विभिन्न धर्मो, भाषाओं और रीति रिवाजों को मानने वाले लोगों के देश भारत को एकता की शक्ति प्राप्त हुई। मानवता एकल परिवार वसुधैव कुटुंबकम हमारा मूल मंत्र रहा। जन-जन तक आर्थिक सहायता पंहुचाने हेतु बैंको व बीमा का राष्ट्रीयकरण हुआ। अर्थव्यवस्था को गति देने में बैंकिंग क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, भारत में बैंकिंग क्षेत्र ने बहुआयामी प्रगति की। बीस सूत्री कार्यक्रम लागू हुआ, संविधान संशोधन द्वारा पंचायत राज व्यवस्था सत्ता का विकेन्द्रीयकरण हुआ। महिलाओं, वंचित वर्गो, दलितों, पिछड़ों के संरक्षण व सशक्तिकरण के कानून बने, उन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया गया।
भारतीय अनुभव से स्पष्ट है आजादी के बाद कई दशक तक मिलीजुली अर्थव्यवस्था के माडल और नियोजित विकास की रणनीति द्वारा विकास दर में वृद्धि हुई और वर्तमान औद्योगिक आधार के लिए मजबूत नींव पड़ी। सामाजिक, आर्थिक सचलता में पर्याप्त सुधार हुआ। 1991 में विश्वव्यापी उदारीकरण, वैश्वीकरण, उपभोक्तावाद, निजीकरण, बाजारीकरण को दृष्टिगत रखकर नवीन नीतियां अपनाई गई। अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ नींव रखने के पर्याप्त अवसर मिले और आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में असका सुदृढ़ आधार तैयार किया गया।
हमारे नेतृत्व के कठोर संघर्ष, त्याग व बलिदान से प्राप्त आजादी के दिन से हमारी यात्रा शुरू हुई जिस पर चलकर हम आज इस मुकाम पर पंहुचे। हमारी उपलब्धियां साधारण प्रकृति की प्रतीक है। मानव इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब इतनी बड़ी जनसंख्या के लोग स्वतंत्रता और लोकतंत्र के अपने संकल्प को लेकर एकजुट रहे। भाषा, संस्कृति, इतिहास, स्थानीय अस्मिताओ, धर्मो को लेकर विभाजित यह देश एक हो गया और अपनी विविधता को ताकत में बदल डाला। किसी राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि उसकी प्रगति और विकास का अभिन्न अंग होती है। हमें अपनी उपलब्धियों के बारे में असंतुष्ट नहीं होना चाहिए।
कई ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। ये हैं शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास, मंहगाई व बढ़ती असमानता। विकास के लाभ अभी भी हमारे समाज के सभी वर्गो तक पंहुचाना बाकी है। समाज के वंचित व कमजोर वर्गो की आवश्यकताओं को पूरा किये बिना हम भविष्य की ओर नहीं देख सकते।
शिक्षण संस्थाओं को सुदृढ़ व उन्न्त बनाना होगा। सर्व शिक्षा अभियान को पूरा करना होगा, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर करना होगा। अनुसूचित जातियां, जनजातियां व अन्य कमजोर वर्गो को समर्थ व सशक्त बनाने पर विशेष रूप से जोर देना होगा। उच्च विकास दर के लक्ष्य के साथ हमारे प्रयास व संकल्प देश के सभी लोगों को लाभांवित करने होना आवश्यक है।
बढ़ती असमानता को दूर करना होगा। देश में बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक के नाम पर बढ़ रही सामाजिक, धार्मिक दूरियों को समाप्त करना होगा। हम संकीर्ण मनोवृत्ति व दृष्टिकोण नहीं अपना सकते। समानता व स्वतंत्रता के झंडे तले एक होकर खड़े रहना होगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)