कविता, आर्टिकल और अन्य तरीके के लेखन लिखने वाली डाॅ. शालिनी यादव जो अंग्रेजी की प्रोफेसर और द्विभाषी कवयित्री हैं वे हमारे पेज से जुडी हैं उनके द्वारा लिखी गई प्रस्तुतियां आप तक समय-समय पर हम प्रकाशित करते रहेंगे। पेश है उनका संक्षिप्त परिचय
डाॅ. शालिनी यादव अंग्रेजी की प्रोफेसर और द्विभाषी कवयित्री है। उन्हें भारत, लीबिया और सऊदी अरब में विश्वविद्यालय स्तर पर सौलह साल का प्रगतिशील शिक्षण अनुभव प्राप्त है। अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भित पत्रिकाओं और संकलनों में समय समय पर डाॅ यादव के अंग्रेजी भाषा और साहित्य पर शोध लेख प्रकाशित होते रहते है। इसके अलावा अब तक वह शोध पत्रों के चार संकलन Reconnoitering Post colonial Literature (2022), Emerging Psyche of Indian Woman: A Feminist Perspective (2022), On the Wings of Life: Women Writing Womanhood (2021) संपादित कर चुकी हैं।
उनका अगला संकलन अफ्रीकन महिलाओं के संघर्षों पर लिखे शोधपत्र का है जो जल्द ही प्रकाशित होने वाला है। अंग्रेजी भाषा और साहित्य पर उनकी तीन पुस्तकें पहले भी प्रकाशित हो चुकी है। विविध संकलनों और पत्रिकाओं में उनकी अंग्रेजी और हिन्दी मे लिखित कविताएँ और लघु कथाएं प्रकाशित होती रहती है। हाल में उन्होनें सताइस देशों के 41 बेहतरीन कवियों की अंग्रेजी कविताओं का संकलन Across the Seas (2022) सम्पादित किया है। इसके अलावा अंग्रेजी कविताओं के तीन संग्रह 'Till the End of Her Subsistence' (2013), 'Kinship With You' (2014) और 'Floating Haiku' (2015) और हिन्दी साहित्य में 'क्षितिज के उस पार' (2016) काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके है।
सम्पादन कार्य में विशेष अभिरुचि के तहत डाॅ. यादव कई देशों की अन्तर्राष्ट्रीय ई-पत्रिकाओं के सम्पादकीय दल की सदस्य भी है वह विभिन्न अंग्रेजी साहित्य और काव्य से सम्बंधित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समुहों और संगठनों से भी जुड़ी हुई है। समय समय पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले काव्य पाठन महोत्सवों में भी अपनी कविताओं का पठन करती रहती है।
लेखिका : डाॅ. शालिनी यादव
जयपुर
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किनारे के दर्शन
कभी तो मिलेंगें
इस इंतजार में
भटकती रही
तार्किक विचारों के
भंवर में घिरी
एक कश्ती...
भटकते हुए
जब दूर कही
आभास हुआ
एक टापू का
स्वप्न तैरने लगे
किनारे से मिलन के
कश्ती की आंखों में
चप्पू चलाते हुए
तेजी से
लहरों के बहाव के साथ
अथाह समुद्र के
आगोश में
तुफानी लहरों के बीच
किनारे से मिलन को
तरसती
भटकती
कश्ती
लिखकर देती
प्रेम पाती
किनारे की तरफ
बढती
हर छोटी बड़ी लहर को
किनारे तक पहुंचाने के लिए
दिल की बात...
जब वो बहती जा रही थी
उस झंझावत में
सोचते हुए
क्या किनारा भी
कर रहा होगा उसका इंतजार?
एक लहर आई
किनारे की खबर लेकर
धीरे से कहा उसने
कश्ती के कान में
खत लिखना
किनारे को
अब बंद कर दो
किनारा बिल्कुल बदल गया हैं
वहाँ अब बड़े बड़े जहाज
और बहुत चहल पहल हैं
कुछ नई कश्तियाँ बहुत करीब
उसने दिल में बसाई हैं
और छोटी बड़ी कई कश्तियां
सीने पर उसके खेलने लगी हैं
वो भूल गया हैं
व्यापार की बढ़ती
व्यस्तता में
उस कश्ती को
जो लाती थी प्रेम स्वरूप
कुछ मोती चुनकर संग
उससे मिलने को
और भी बहुत कुछ कहती रही
वो लहर
किनारे के फैलते
कारोबार के बारे में
पर कश्ती तब तक
डूब चुकी थी
उस भँवर में
जिसका सामना कर
जाना चाहती थी वो
देने अपने किनारे को
कुछ विशेष मोती
भेंट में...